गहराइयों मे जाना बहुत जरूरी होता है, ऊपर से देखने में तो सिर्फ बाह्य चमक ही दिखायी देती है। ठीक उसी तरह से जैसे कुछ वस्तु दूर से बहुत कीमती प्रतीत होती है, परंतु नजदीक से देखो तो महसूस होता है कि यह तो अति साधारण था।
ठीक उसी तरह से जैसे कई बार हम साधारण से कांच के टुकडे को हीरा समझने की भूल कर देते हैं। इंसान भी ठीक इसी तरह से होते है। बाह्य तौर पर देखने में कई बार हमें बड़े कीमती से महसूस होते हैं, बिल्कुल अलग निश्चल से, पर असल में सच ये नहीं होता है। निदा फाजली ने कहा है- हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
जो आज का दौर चल रहा है, वो बिल्कुल इसी तरह से चल रहा है, कौन कैसा है सच में जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है। फिर भी लोग आजकल बहुत जल्दी में है, उन्हें 5 मिनट वाली मैगी ही ज्यादा पसंद होती है।
वो भूल जाते हैं अगर कुछ अच्छा जिंदगी में चाहिए तो वक्त लगता है, ऊपर से जो चीज अच्छी दिख रही है, जरूरी नहीं कि वो हमारे लिए अच्छी ही हो। जिंदगी में रिश्ते भी ठीक इसी तरह से होते हैं, किसी को सच में जानने के लिए, समझने के लिए वक्त देना होता है।
कुछ समय बिताना है और एक लंबे समय के बाद ही इस निर्णय पर पहुंचा जा सकता है कि कोई शख्स सच में कैसा है? परंतु इतने के बाद भी किसी को समझा नहीं जा सकता है क्योंकि अपवाद के नियम नहीं होते हैं।
प्रस्तुति: सुप्रिया सत्यार्थी
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