Tuesday, July 9, 2024
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गंगा में बढ़ रहा घड़ियालों का कुनबा

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  • अनुकूल प्रवास मिलने से घड़ियालों की संख्या में हो रही वृद्धि
  • बिजनौर बैराज से निचले इलाकों तक है इनका साम्राज्य

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: गंगा का निर्मल पानी घड़ियालों के लिए अनुकूल साबित हो रहा है। इस समय गंगा में 800 से ज्यादा घड़ियाल हैं जो मुजफ्फरनगर से लेकर बलिया तक अपना वंश बढ़ाने में लगे हुए हैं। गंगा की तेज रफ्तार धाराएं घड़ियाल के अनुकूल मानी जाती है। बिजनौर बैराज में पूर्व में जो घड़ियाल छोड़े गए थे, वो बिजनौर से आगे निकल कर प्रदेश के तमाम शहरों से गुजरने वाली गंगा में अपना सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

जिला वन अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि घड़ियाल प्रोजेक्ट काफी सफलतापूर्वक चल रहा है। घड़ियालों की वास्तविक संख्या का अभी खुलासा भले न हुआ हो, लेकिन वन विभाग को उम्मीद हैं कि इस समय आठ सौ से ज्यादा घड़ियाल गंगा की सैर कर रहे हैं। जिला वन अधिकारी ने बताया कि मेरठ, मुजफ्फरनगर, हापुड़, बिजनौर आदि जगहों पर घड़ियालों के विकास के लिए सरकार के अलावा डब्लूडब्लूएफ भी काम कर रही हैं।

मेरठ के हस्तिनापुर सेंचुरी इलाके में अब गंगा किनारे घड़ियाल धूप सेंकते नजर आने लगे हैं। संरक्षण के चलते इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले 11 साल में 788 घड़ियाल गंगा में छोड़े जा चुके हैं। ये जल प्रदूषण को दूर करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहां छोड़े गए घड़ियाल 11 सौ किलोमीटर (जल मार्ग) दूर मिर्जापुर जिले तक की सैर कर रहे हैं। 100 साल पहले तक गंगा और दूसरी नदियों में लाखों घड़ियाल पाए जाते थे।

प्रदूषण और शिकार आदि के चलते घड़ियालों की संख्या इतनी घट गई थी कि 70 के दशक में ये सिर्फ 200 के करीब ही रह गए थे। सन् 1974 में सरकार और वन विभाग ने घड़ियालों को संरक्षण व पुनर्वास के प्रयास शुरू किए तो 30 वर्षों में इनकी संख्या बढ़कर 15 सौ के करीब हो गई, लेकिन इसके बाद फिर से इनकी संख्या घटने लगी।

घड़ियाल को बचाने के लिए वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और वन विभाग की तरफ से हस्तिनापुर सेंचुरी से घड़ियालों के संरक्षण का काम किया गया। घड़ियाल पुनर्वास केंद्र कुकरैल लखनऊ में घड़ियाल के अंडों को संरक्षित किया जाता है। इसके बाद अंडों से बच्चे निकलने के तीन साल तक उनको वहीं पर रखा जाता है। तीन साल की उम्र के बाद जब वह तेज बहाव पानी में रहने के अनुकूल हो जाते हैं तो उनको गंगा समेत दूसरी नदियों में छोड़ दिया जाता है।

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