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पूछते क्या हो जिंदगी का रंग
देख लो तुम किसी नदी का रंग
इसके चढ़ते ही होश आए मुझे
है अजब मेरी बेखुदी का रंग
मेरे चेहरे में मैं नहीं हूं आज
मल के आया हूं मैं किसी का रंग
जितना बे रंग वक़्त होता है
उतना गहराये शायरी का रंग
सज संवर कर रहना जरूरी है
है मगर और सादगी का रंग
वो टहलने जो आए हैं छत पर
निखरा निखरा है चांदनी का रंग
यू ‘जिया’ की तरफ न देखो तुम
बेवफाई है आप ही का रंग
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