Tuesday, June 24, 2025
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धन सिंह कोतवाल के पूरे गांव को अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था

  • गांव के बागी किसानों को चुकानी पड़ी क्रांति की कीमत
  • जो रिश्तेदारी में भेजे गए परिवारों से चली वंशावली

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: कोतवाल धन सिंह गुर्जर को 1857 की पहली क्रांति के जनक के रूप में याद किया जाता है। मेरठ में जहां उनके नाम पर पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है, वहीं उनके पैतृक गांव पांचली बुजुर्ग स्थित एक इंटर कालेज का नाम भी कोतवाल धन सिंह के नाम पर किया जा चुका है।

उन्हें भारत के प्रथम स्वतंत्रा संग्राम के प्रथम क्रान्तिकारी के रूप में याद किया जाता है। जिन्होंने 10 मई 1857 को मेरठ से क्रान्ति शुरुआत की। इस क्रांति की कीमत पांचली खुर्द को चुकानी पड़ी, जब अंग्रेजों के खाकी रिसाले ने पूरे गांव को तोप से उड़ा दिया था।

इतिहासकारों द्वारा जुटाए गए साक्ष्य और जनश्रुति के अनुसार कोतवाल धन सिंह गुर्जर का जन्म 27 नवंबर 1814 को ग्राम पांचली खुर्द में किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जोधा सिंह गुर्जर और माता का नाम मनभरी देवी था। उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुलिस में भर्ती हो गए। ब्रिटिश हुकूमत में मेरठ शहर के कोतवाल बने।

इतिहास की पुस्तकों में जो तथ्य दर्ज हैं उनके मुताबिक 1857 की क्रान्ति की शुरुआत 10 मई 1857 की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष क्रान्ति दिवस के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरुआत करने का श्रेय कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है।

मेरठ में चर्बी वाले कारतूस को मुंह से खोलकर चलाने से इनकार करने वाले 85 भारतीय बटालियन के सिपाहियों को कैद कर लेने की घटना के बाद 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरुद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आसपास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए।

इसी कोतवाली में धनसिंह गुर्जर कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ जिनमें सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान शामिल रहे, उनके बीच एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। धन सिंह के नेतृत्व में 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता ने रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।

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इसके बाद जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। जिनकी भनक पाकर धन सिंह कोतवाल तीन जुलाई की शाम को ही वह अपने गांव पहुंच गए।

धनसिंह ने पांचली, नंगला व घाट के लोगों को हमले के बारे में बताया और तुरंत गांव से पलायन की सलाह दी। तीनों गांव के लोगों ने अपने परिवार की महिलाओं, बच्चों, वृद्धों को बैलगाड़ियो में बैठाकर रिश्तेदारों के यहां रवाना कर दिया। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार चार जुलाई, 1857 को प्रात: चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज खाकी रिसाले ने तोपों से हमला किया।

रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची जबकि 160 रायफल आदि आधुनिक हथियारों से लैस थे। जिन्होंने पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।

आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी नौ लोगों को दशहरे के दिन फांसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया।

पिता, किसानों को मिली सजा ने बनाया बागी

पांचली और उसके निकट के ग्रामों में जो बातें कही जाती हैं, उनके अनुसार अप्रैल का महीने में दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में आराम करने के लिए रुके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह अथवा भज्जड़ सिंह से उनकी किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई, इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया।

जबकि एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक खेतों पर काम कराया। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे।

इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी गांव के मुखिया धन सिंह के पिता जोधा सिंह को सौंपी गई। नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया, किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया।

धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छह माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया। जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरुआत कर इतिहास रच दिया।

धन सिंह कोतवाल की नहीं संतति, भाइयों से चली वंशावली

बागपत रोड स्थित पाचली खुर्द गांव के तत्कालीन मुखिया सालगराम रहे हैं। सालगराम मुखिया के सात बेटे थे, जिनके नाम चैनसुख, नैनसुख, हरिसिंह, धनसिंह, मोहर सिंह, मैरूप सिंह व मेघराज सिंह थे, इनमें धनसिंह सालगराम मुखिया के चौथे पुत्र थे, धन सिंह का जन्म 27 नवम्बर सन् 1814 को हुआ था। धन सिंह कोतवाल की हालांकि दो शादियां हुर्इं, जिनमें दूसरी पत्नी से दो पुत्रियां भी हुर्इं।

लेकिन देवयोग से दोनों पुत्रियां बाल अवस्था में ही संसार को छोड़कर चली गर्इं। वर्तमान में धन सिंह कोतवाल के भाइयों की संतति मौजूद हैं। जिनमें मेघराज सिंह के पुत्र महाराजा सिंह उनके पुत्र झंडा सिंह, इनके बाद देवी सिंह, गुलाब सिंह ओर वर्तमान में डा. तस्वीर सिंह चपराना अपने परिवार के साथ मेरठ महानगर में रह रहे हैं। जबकि अन्य परिजन गांव और दूसरे स्थानों पर निवास करते हैं।

कब, कहां हुई धन सिंह कोतवाल की शहादत!

धन सिंह कोतवाल के वंशज डॉ. तस्वीर चपराना ‘1857 के क्रांतिनायक शहीद धन सिंह कोतवाल शोध संस्थान’ के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रम चला रहे हैं। वे बताते हैं कि कोतवाल धनसिंह की मृत्यु कब हुई, अभी तक इस तिथि की पुष्टि नहीं हो सकी है। वे बताते हैं कि यहां मौजूद अभिलेखों में शहादत की पुष्टि किसी भी अभिलेख में यहां नहीं हो पाती है।

जनश्रुति के हवाले से डा. तस्वीर चपराना का कहना है कि 1857 की क्रांति के दमन के बाद धन सिंह कोतवाल को कुछ स्थानों पर देखने का दावा भी किया गया है। उसके बाद यह भी संभावना बनती है कि उन्होंने अपने आप को गुमनाम रखते हुए आजादी की लड़ाई को जारी रखा। इसी दौरान बिजनौर, हिंडन नदी, काला आम जैसी जो बड़ी बगावत हुई हैं, इन सभी में कहीं न कहीं कोतवाल धन सिंह को देखे जाने की बात सामने आती रही है।

इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया गया है कि धन सिंह कोतवाल के साथ उनका घोड़ा हमेशा रहता था। जिसे इन सभी देखे जाने की बात उस समय चर्चा में रही है। अपने शोध अभियान के दौरान वे लंदन की लाइब्रेरी में जाकर 1857 की क्रांति से जुड़े हुए तत्कालीन समाचार पत्रों पर एक नजर डालने का कार्यक्रम बना रहे हैं।

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