Monday, July 1, 2024
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क्रोमियम कचरे का कहर

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PANKAJ CHATURVEDIकभी कानपुर के चमड़ा कारखाने वहां की शान हुआ करते थे, आज यही यहां के जीवन के लिए चुनौती बने हुए हैं। एक तरफ नमामि गंगे के दमकते इश्तेहार हैं, तो सामने रानिया, कानपुर देहात और राखी मंडी, कानपुर नगर आदि में गंगा में अपशिष्ट के तौर पर मिलने वाले क्रोमियम की दहशत है। वह तो भला हो एनजीटी का जो क्रोमियम कचरे के निबटान के लिए सरकार को कसे हुए है। यह सरकारी अनुमान है कि इन इलाकों में गंगा किनारे सन 1976 से अभी तक कोई 122800 घन मीटर क्रोमियम कचरा एकत्र है। विदित हो क्रोमियम ग्यारह सौ सेंटीग्रेड तापमान से अधिक पर पिघलने वाली धातु है और इसका इस्तेमाल चमड़ा, इस्पात, लकड़ी और पेंट के कारखानों में होता है। यह कचरा पांच दशक से यहां की जमीन और भू जल को जहरीला बनाता रहा और सरकारें कभी जुर्माना तो कभी नोटिस दे कर औपचारिकताएं पूरी करती रहीं। हालात ये हैं कि हिमाचल से पावन हारा के रूप में निकलती गंगा कानपुर आते-आते कराहने लगती है। सरकारी मशीनरी इसमें गंदगी रोकने के संयंत्र लगाने पर खर्चा करती है, जबकि असल में इसके किनारों पर कम कचरा उपजाने की बात होना चाहिए। सन 2021 का एक शोध बताता है कि कानपुर में परमट से आगे गंगाजल अधिक जहरीला है। इसमें न सिर्फ क्रोमियम की मात्रा 200 गुना से अधिक है, बल्कि पीएच भी काफी ज्यादा है।

यह जल सिर्फ मानव शरीर को नहीं, बल्कि जानवर और फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह खुलासा छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग; बीएसबीटी विभाग की ओर से हुई जांच में हुआ है। विभाग के छात्र और शिक्षकों ने नौ घाटों पर जाकर गंगाजल का सैंपल लिया। इनकी जांच कर टीम ने रिपोर्ट तैयार की है जो काफी चौंकाने वाली निकली है। कन्नौज के आगे गंगाजल की स्थिति बहुत अधिक भयावह नहीं है, मगर परमट घाट के आगे अचानक प्रदूषण और केमिकल की स्थिति बढ़ती जा रही है।

मार्च 2022 में कानपुर के मंडल आयुक्त द्वारा गठित एक सरकारी समिति ने स्वीकार किया कि परमिया नाले से रोजाना 30 से 40 लाख लीटर, परमट नाले से 20 लाख और रानीघाट नाले से 10 लाख लीटर प्रदूषित कचरा रोजाना सीधे गंगा में जा रहा है। कानपुर में गंगा किनारे कुल 18 नाले हैं। इनमें से 13 नालों को काफी पहले टैप किए जाने का दावा किया गया है। हकीकत यह है कि अक्सर ये नाले ओवरफ्लो होकर गंगा को गंदगी से भर रहे हैं। टैप नालों में एयरफोर्स ड्रेन, परमिया नाला, वाजिदपुर नाला, डबका नाला, बंगाली घाट नाला, बुढ़िया घाट नाला, गुप्तार घाट नाला, सीसामऊ नाला, टेफ्को नाला, परमट ड्रेन, म्योर मिल ड्रेन, पुलिस लाइन ड्रेन और जेल ड्रेन शामिल हैं। बिना टैप किए गए नालों में रानीघाट नाला, गोलाघाट नाला, सत्तीचौरा नाला, मैस्कर और रामेश्वर नाला शामिल हैं।

क्रोमियम की सीमा से अधिक मात्रा जाजमऊ और वाजिदपुर में भयावह हालात पैदा किए हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पानी में क्रोमियम की मात्रा 0.05 होनी चाहिए। कन्नौज से लेकर गंगा बैराज तक स्थिति लगभग सामान्य है, मगर जाजमऊ और वाजिदपुर में अचानक क्रोमियम की मात्रा खतरनाक होती जा रही है। 85 गांवों के करीब पांच लाख लोगों की जिंदगी में जहर घोल दिया है। किसी परिवार में गोद सूनी है तो किसी गर्भ से उपजा नवजात मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग है। इसके अतिरिक्त भूजल में क्रोमियम की मौजूदगी ने सैकड़ों लोगों को कैंसर की सौगात बांटी है। क्रोमियम युक्त पानी ने धरती को भी बंजर किया है। इलाके में पैदावार घट गई है और फसल भी पकने से पहले मुरझाने लगती है।

उन्नाव जनपद में गंगा कटरी में आबाद कालूखेड़ा, त्रिभुवनखेड़ा, बंदीपुरवा, लखापुरा, जैसे एक दर्जन गांवों में दर्जनों कैंसर रोगी हैं। जब यह पता चला कि कैंसरग्रस्त अधिकांश लोग तम्बाकू या धुम्रपान करते ही नहीं हैं तो तीन साल पहले राज्य सरकार ने अध्ययन कराया। मालूम हुआ कि कैंसर फैलने का असल कारण भूजल में क्रोमियम है। गंगा किनारे आबाद 85 गांवों में भूजल में क्रोमियम की मौजूदगी ने फसलों को भी बर्बाद कर दिया है। ट्यूबवेल से सिंचाई करने पर फसल झुलस जाती है।

गंगा की समस्या केवल जल-मल या रसायन के मिलने से पानी कि गुणवत्ता गिरना मात्र नहीं है-जलवायु परिवर्तन के दौर में अनियमित बरसात और जंगल कटाई व् शहरीकरण के कारण यह बार-बार रास्ता बदल रही है। इसकी जैविक संपदा समाप्त हो रही है। आज गंगा को दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में छठे स्थान पर रखा गया है। गंगा के किनारे खेतों को अधिक गन्ना उगाने का चस्का लगा है और इसके लिए जहरीले रसायन को धरती में झोंका जाता है। अनुमान है कि नदी तट के करीब हर साल सौ लाख टन उर्वरकों का इस्तेमाल होता है, जिसमें से पांच लाख टन बहकर गंगा में मिल जाता है। 1500 टन कीटनाशक भी मिलता है।

सैकडों टन रसायन, कारखानों, कपड़ा मिलों, डिस्टलरियों, चमड़ा उद्योग, बूचडखाने, अस्पताल और सैकड़ों अन्य फैक्टरियों का निकला उपद्रव्य गंगा में मिलता है। 400 करोड लीटर अशोधित अपद्रव्य, 900 करोड अशोधित गंदा पानी गंगा में मिल जाता है। नगरों और मानवीय क्रियाकलापों से निकली गंदगी नहाने-धोने, पूजा-पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन और दाह संस्कार से निकला प्रदूषण गंगा में समा जाता है। भारत में गंगा तट पर बसे सैकड़ों नगरों का 1100 करोड लीटर अपशिष्ट प्रतिदिन गंगा में गिरता है।इसका कितना भाग शोधित होता होगा, प्रमणित जानकारी नहीं है।

गंगा में उद्योगों से 80 प्रतिशत, नगरों से 15 प्रतिशत तथा आबादी, पर्यटन तथा धर्मिक कर्मकांड से 5 प्रतिशत प्रदूषण होता है। आबादी की बाढ़ के साथ, पर्यटन, नगरीकरण और उद्योगों के विकास ने प्रदूषण के स्तर को आठ गुना बढ़ाया है। ऐसा पिछले चालीस वर्ष में देखा गया ऋषिकेश से गंगा पहाडों से उतरकर मैदानों में आती है, उसी के साथ गंगा में प्रदूषण की शुरुआत हो जाती है। धर्मिक, पर्यटन, पूजा-पाठ, मोक्ष और मुक्ति की धारणा ने गंगा को प्रदूषित करना शुरू किया, हरिद्वार के पहले ही गंगा का पानी निचली गंगा नहर में भेजकर उत्तर प्रदेश को सींचता है। नरौरा के परमाणु संयंत्र से गंगा के पानी का उपयोग और रेडियोधर्मिता के खतरे गंभीर आयाम हैं। प्रदूषण की चरम स्थिति कानपुर में पहुंच जाती है, चमड़ा शोधन और उससे निकला प्रदूषण सबसे गंभीर है। उस समूचे क्षेत्र में गंगा के पानी के साथ भूमिगत जल भी गंभीर रूप से प्रदूषित है।


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