डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
फिल्म अभिनेता गोवेर्धन असरानी भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के बादशाह हैं। गोवेर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी 1940 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुआ था। उनके चार बहनें और तीन भाई हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरूआत सेंट जेवियर स्कूल जयपुर से की। उसके बाद उन्होंने स्नातक की पढ़ाई राजस्थान कॉलेज से पूरी की। पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने कई वर्षो तक बतौर रेडियो आर्टिस्ट काम किया था। असरानी की शादी अभिनेत्री मंजू बंसल ईरानी से हुई। असरानी ने अपनी पत्नी के साथ भी कई फिल्मों में भूमिकाएं अदा की हैं। असरानी अब तक 300 से अधिक हिंदी व गुजराती फिल्मों में अभिनय कर चुकें हैं। वह पिछले पांच दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा के अमूमन सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया है। फिल्मी दुनिया में अभिनय के अलावा वह एक राजनीतिज्ञ भी हैं। उन्होंने सन 2004 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी व लोकसभा चुनावों के दौरान उहोने कांग्रेस की जनसभाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया था।
‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं!’ फिल्म ‘शोले’ का यह डायलॉग उनकी जिंदगी में शोहरत लेकर आया जो आज भी याद किया जाता है। इस डायलॉग को मशहूर बनाने के पीछे असरानी का ही हाथ है। इस फिल्म में उनका शानदार अंदाज सभी ने देखा है। असरानी की गिनती बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेताओं में होती हैं। उन्होंने अधिकांश फिल्मों में कॉमेडी रोल और सपोर्टिव रोल ही किए हैं परन्तु अपने अभिनय कौशल से सभी किरदारों में जान डाल दी। असरानी के अंदर सिंगिंग का भी हुनर है ,यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि असरानी ने कई हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा है। असरानी के पिता की कारपेट की दुकान थी मगर, परिवार के बिजनेस में असरानी की बिल्कुल दिलचस्पी न थी। ऊपर से गणित की पढ़ाई में भी वे कमजोर थे।
राजस्थान कॉलेज से स्नातक करने के बाद इन्होंने आॅल इंडिया रेडियो, जयपुर में वॉइस आर्टिस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। 1964 में उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया में दाखिला लिया और वहीं से अभिनय सीखा। असरानी ने करीब पांच दशक तक फिल्मों में काम किया है। शुरूआत में असरानी को ज्यादा रोल नहीं मिले इसलिए वो एफटीआईआई में ही शिक्षक बन गए थे। असरानी ने दर्शकों को सिर्फ हंसाया ही नहीं बल्कि मधुर संगीत भी सुनाया है। सन 1977 में आई फिल्म ‘आलाप’ में असरानी ने दो गाने गाए, जो उन्हीं पर फिल्माए गए। इसके अलावा ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ में मशहूर गायक किशोर कुमार के साथ भी एक गाना गाया था। असरानी ने अधिकतर फिल्मों में साइड रोल किए हैं मगर ‘चला मुरारी हीरो बनने’ और ‘सलाम मेमसाहब’ जैसी फिल्मों में उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर भी काम किया। असरानी ने सन 1967 में रिलीज हुई फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से फिल्मों में कदम रखा था। असरानी ने कई फिल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ी है, लेकिन ‘शोले’ में जेलर के किरदार ने इन्हें खूब लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने ‘मेरे अपने’, ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अभिमान’, ‘महबूब, ‘बंदिश’, ‘चुपके-चुपके’ जैसी फिल्मों में भी शानदार अभिनय किया है। आठ दशक के अपने जीवन मे असरानी ने लोगो को न सिर्फ खुलकर हंसाया बल्कि एक अच्छे इंसान के रूप में लोगो की जरूरत पड़ने पर मदद भी की। वे शतायु हों और यूं ही हंसाते रहें, यही दुआ है।