जब कोई राष्ट्र प्रमुख तीन घंटे तक खुलकर बात करता है, तो यह केवल एक इंटरव्यू नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संवाद होता है। ऐसा संवाद, जो केवल विचारों को प्रस्तुत नहीं करता, बल्कि एक विशेष छवि भी निर्मित करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रसिद्ध अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के बीच हालिया बातचीत भी इसी श्रेणी में आती है। यह इंटरव्यू केवल आत्मकथात्मक नहीं था, बल्कि इसमें विचारधारा, नीतियां और भविष्य की योजनाओं का सुव्यवस्थित संप्रेषण किया गया। लेकिन यह संवाद कितना स्वतंत्र था, और कितना पूर्व-नियोजित छवि निर्माण का प्रयास? यही प्रश्न इस बातचीत का विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस इंटरव्यू में अपने जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को साझा किया बचपन और प्रारंभिक संघर्ष,हिमालय में बिताए गए साधना के दिन,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (फरर) से जुड़ाव,राजनीति में प्रवेश और प्रधानमंत्री बनने तक का सफर यह संवाद मोदी जी की एक दृढ़निश्चयी, अनुशासित और दूरदर्शी नेता की छवि को और मजबूत करता है। उन्होंने आत्मसंयम, त्याग और कठोर अनुशासन की चर्चा की, खासकर ध्यान और उपवास जैसे विषयों के माध्यम से। यह केवल उनकी व्यक्तिगत जीवनशैली का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक संदेश था—भारत को एक अनुशासित और भावनाओं से परे नेतृत्व की आवश्यकता है। इस वार्ता में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ जैसे विषयों पर चर्चा की। उनका संदेश स्पष्ट था—भारत अब तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ रहा है। हालांकि, इस डिजिटल क्रांति के कुछ महत्वपूर्ण पहलू चर्चा से गायब रहे। डेटा सुरक्षा और गोपनीयता: भारत में डेटा संरक्षण कानून अभी भी विकसित हो रहे हैं। क्या सरकार अपने नागरिकों की डिजिटल निजता को लेकर ठोस नीतियां बनाएगी? बिग टेक कंपनियों का प्रभाव: गूगल, फेसबुक, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां भारत में अपना प्रभुत्व बढ़ा रही हैं। क्या सरकार इन पर नियंत्रण रखने के लिए कोई रणनीति बना रही है? मोदी जी ने डिजिटल इंडिया को एक सकारात्मक पहल के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इन चुनौतियों पर गहराई से चर्चा नहीं हुई।
लेक्स फ्रिडमैन के इंटरव्यू आमतौर पर गहन विश्लेषण और कठिन प्रश्नों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस वार्ता में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न नदारद दिखे—मीडिया की स्वतंत्रता भारत में कई पत्रकारों और विपक्षी नेताओं पर कानूनी कार्यवाही हुई है। क्या यह सरकार की आलोचना दबाने की कोशिश है, या ये सभी कार्यवाहियां कानून के दायरे में हैं? इंटरनेट शटडाउन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत में इंटरनेट बंदी के मामले बढ़े हैं। क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा है, या सरकार की शक्ति का विस्तार? फ्रिडमैन इन विषयों को अधिक गहराई से छू सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ पर आधारित विदेश नीति की बात की, लेकिन कुछ प्रमुख सवाल अनुत्तरित रहे चीन के साथ संबंध भारत-चीन सीमा विवाद वर्षों से चला आ रहा है। क्या भारत इस मुद्दे का कोई स्थायी समाधान खोज रहा है? रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख भारत ने रूस के खिलाफ कठोर रुख नहीं अपनाया है। क्या यह तटस्थता भारत के दीर्घकालिक हित में होगी? मोदी जी ने भारत की कूटनीतिक स्थिरता की बात की, लेकिन इन प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर नहीं मिले। प्रधानमंत्री मोदी ने इस इंटरव्यू में भारतीय आध्यात्मिकता, काशी, गंगा और सनातन संस्कृति पर भी बात की। यह भारतीय मूल्यों और परंपराओं का वैश्विक मंच पर प्रस्तुतीकरण था। विपक्ष का आरोप: सरकार धर्म और राजनीति को मिलाकर एक नया नैरेटिव गढ़ रही है। समर्थकों का मत: भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण आवश्यक है। यह इंटरव्यू इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच एक बहस का अवसर हो सकता था, लेकिन यह एकपक्षीय संवाद बनकर रह गया।
इस इंटरव्यू के बाद अंतरराष्ट्रीय और भारतीय मीडिया में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। पश्चिमी मीडिया ने इसे मोदी की छवि निर्माण की रणनीति बताया। भारतीय समर्थक मीडिया ने इसे ऐतिहासिक संवाद करार दिया। विपक्षी नेताओं ने इसे एकतरफा इंटरव्यू बताया और स्वतंत्र पत्रकारों के कठिन सवालों से बचने का आरोप लगाया। इस संवाद ने भारत की वैश्विक छवि को मजबूत किया, लेकिन विपक्ष को यह एक नियंत्रित वार्ता लगी। अगर इस इंटरव्यू का विश्लेषण किया जाए, तो यह आत्मावलोकन और रणनीतिक संचार का मिश्रण था प्रधानमंत्री ने अपने संघर्षों और सिद्धांतों को प्रस्तुत किया, जिससे जनता से जुड़ाव बना। भारत की तकनीकी और आर्थिक शक्ति को वैश्विक मंच पर रखा गया। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर चर्चा कर भारत की स्थिति को स्पष्ट किया। भारतीय संस्कृति और पहचान को उजागर किया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर खुलकर चर्चा नहीं हुई। बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक असमानता के विषय नहीं उठाए गए। विदेश नीति में चीन और रूस पर अधिक स्पष्टता नहीं दी गई। इस इंटरव्यू ने मोदी की छवि को और मजबूत किया निस्संदेह। लेकिन यह भारत के ज्वलंत मुद्दों पर संतुलित चर्चा थी शायद नहीं? तो यह आत्मावलोकन था या रणनीतिक संचार? संभवत: दोनों का मिश्रण। फ्रिडमैन ने सवाल पूछे, प्रधानमंत्री ने उत्तर दिए, लेकिन जो प्रश्न पूछे ही नहीं गए, वे अधिक महत्वपूर्ण थे।