हर कैलेंडर वर्ष अपने दामन में तमाम तरह की कड़वी-मीठी यादें समेटते हुए विदा होता है। ये यादें अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी होती हैं और राष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक, विज्ञान और खेल आदि क्षेत्रों जुड़ी कड़वी-खट्टी-मीठी यादों की वजह से उस साल को याद किया जाता है। कभी-कभी भीषण प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदाओं के लिए भी कोई साल इतिहास के पन्नों में यादगार साल के तौर पर दर्ज हो जाता है। अगर भारत के संदर्भ में देखें तो साल 2024 चौंकाने वाले राजनीतिक घटनाक्रमों और सामाजिक टकरावों, न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की साख पर सवालों और अभूतपूर्व बेरोजगारी व महंगाई के चलते आम लोगों के लिए दुश्वारियों से भरा रहा। हमेशा की तरह प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही भ्रष्टाचार जनित मानव निर्मित आपदाएं भी इस साल खूब देखने में आईं। इस साल रेल दुर्घटनाओं भी जबरदस्त इजाफा हुआ। इन सबके अलावा हमने हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और कारोबारी जीवन को रोशन करने वाली कई हस्तियों को भी इस साल खोया।
विवादों के बीच अयोध्या में आधे-अधूरे राम मंदिर का उद्घाटन, चुनावी बांड की खूंखार योजना पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, आम चुनाव में भाजपा का कमजोर प्रदर्शन लेकिन नरेंद्र मोदी का लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना, कांग्रेस की हालत में सुधार होकर राहुल गांधी का लोकसभा में नेता विपक्ष बनना इस साल की उल्लेखनीय घटनाएं रहीं। ओडिशा और आंध्र प्रदेश में सत्ता परिवर्तन, ‘बटोगे तो कटोगे’ जैसे वीभत्स नारे के बीच महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होना, मणिपुर में जातीय हिंसा का सिलसिला जारी रहना और उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे पर संसद की कार्यवाही लगातार बाधित रहना भी इस साल की अफसोसनाक खासियत रही।
ऐसे में सवाल है कि बीता साल 2024 किन खास बातों के लिए याद रखा जाएगा या इस वर्ष की कौन सी ऐसी बातें या घटनाएं हैं, जिनकी यादें देश-दुनिया के इतिहास में दर्ज हो जाएंगी और जो हमारे भविष्य को भी प्रभावित करती रहेंगी? आज से कुछ सालों बाद जब यह सवाल पूछा जाएगा तो जो लोग इस देश की विविधताओं से, इस देश के स्वाधीनता संग्राम की अगुवाई करने और उसमें कुबार्नी देने वाले महानायकों से और इस देश के संविधान से प्यार करते हैं, उनके लिए इस सवाल का जवाब देना बहुत आसान होगा। ऐसे सभी लोगों का यही जवाब होगा कि पिछले कुछ सालों की तरह यह साल भी भारतीय संविधान और देश की विविधताओं पर सांप्रदायिक नफरत से भरी विचारधारा के निर्मम हमलों का साल रहा।
इन हमलों से आम आदमी के जीवन की दुश्वारियों में तो इजाफा हुआ ही, देश के संविधान और हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान विकसित हुए वे उदात्त मूल्य भी बुरी तरह लहूलुहान हुए, जो भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक भावनात्मक तौर पर इस देश की एकता और अखंडता बनाए रखने की गारंटी हैं। साल 2024 न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थाओं की साख गिरने के लिए भी याद किया जाएगा। इस साल लोकसभा के चुनाव सहित आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। लोकसभा चुनाव में सीटों के लिहाज से भाजपा को भले ही तगड़ा झटका लगा, लेकिन वह लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाब रही। इसके अलावा पांच राज्यों में भी उसके गठबंधन की सरकार बनी। इन सभी चुनावों में मतदान से लेकर मतगणना तक में गड़बड़ियों की शिकायतें आम रहीं, लेकिन किसी भी शिकायत पर समाधानकारक कार्रवाई करने के बजाय मुख्य चुनाव आयुक्त ने सस्ती शायरी सुनाते हुए शिकायत करने वालों की खिल्ली उड़ाई। यही नहीं, चुनाव आयोग की सिफारिश पर सरकार ने चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता खत्म करने के लिए कानून तक बदल दिया।
साल 2024 को भारतीय अर्थव्यवस्था के चरमराने के लिए भी याद रखा जाएगा, जिसके नतीजे के तौर पर देश में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी किस स्तर तक पहुंच गई है, यह जानने के लिए ज्यादा पड़ताल करने की जरूरत नहीं है। इसकी स्थिति को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के जरिए बहुत आसानी से समझा जा सकता है। खुद सरकार का दावा है कि इस योजना के तहत 80 करोड़ राशनकार्ड धारकों को हर महीने मुफ्त राशन दिया जा रहा है। इसके अलावा अघोषित तौर पर हर राज्य में चुनाव के वक्त हर व्यक्ति को 2000 से 5000 हजार रुपये तक का लिफाफा दिया जा रहा है सो अलग। हालांकि इसके बावजूद सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर लोगों को दिखाई जा रही है और विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनने का दावा किया जा रहा है और आंकड़ों की बाजीगरी के जरिये जीडीपी की विकास दर को 7.2 फीसदी बताया जा रहा है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया के देशों में 125वें नंबर पर है और ढोल पीटा जा रहा है कि हम जल्दी ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने का सिलसिला इस साल भी बना रहा और वह सबसे बुरी तरह पिटने वाली एशियाई मुद्रा बन गया। पिछले दो वर्षों में भारत सरकार ने अपना खर्च चलाने के लिए रिजर्व बैंक के रिजर्व कोष से एक बार नहीं, दो-दो बार पैसे लिए थे, इस साल उसने जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ाया, शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में कटौती की और सरकारी उपक्रमों और सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का सिलसिला जारी रखा।
भारत सरकार भले ही दावा करे कि आर्थिक तरक्की के मामले में पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि वैश्विक आर्थिक मामलों के तमाम अध्ययन संस्थान भारत की अर्थव्यवस्था का शोकगीत गा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनडीपी ने तमाम आंकड़ों के आधार पर बताया है कि है भारत टिकाऊ विकास के मामले में दुनिया के 166 देशों में 109वें स्थान पर है। मानव विकास रिपोर्ट में भारत का स्थान 193 देशों में 134वां है। अमेरिका और जर्मनी की एजेंसियों के मुताबिक ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के 127 देशों में भारत 105 वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक में भारत की स्थिति में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है और ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वह 143 देशों में 126 वें स्थान पर है। वैश्विक स्तर पर भारत की साख सिर्फ आर्थिक मामलों में ही नहीं गिर रही है, बल्कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकार और मीडिया की आजादी में भी भारत की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग इस साल पहले से बहुत नीचे आ गई है। बहुत मुमकिन है कि इस पूरे सूरत-ए-हाल से बेखबर हिंदुत्ववादी विचारधारा के संगठन और विकास का झांसा देकर सत्ता में आए उनके लोग देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के अपने मंसूबे को पूरा करने की दिशा में इस साल को अपने लिए उपलब्धियों से भरा मान लें।