आॅस्ट्रेलिया के संसदीय चुनावों में प्रधानमंत्री स्टॉक मॉरिसन के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन लिबरल पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी के नेता एंथोनी अल्बनीज देश के नए प्रधानमंत्री होंगे। चुनाव परिणाम के बाद मॉरिसन ने पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी के नेता पद से इस्तीफा देने की बात कही। चुनाव के प्रारंम्भिक दौर से ही मॉरिसन की पार्टी कमजोर रही। मतदान से पहले आए सभी चुनाव सर्वेक्षणों में लेबर पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ दिखाई दे रहा था। सर्वे में लेबर पार्टी को 54 प्रतिशत व लिबरल नेशनल पार्टी को 46 फीसदी मत मिलते हुए दिखाई दे रहे थे। शनिवार को घोषित चुनाव नतिजों ने सर्वे के अनुमानों को सच साबित कर दिया। पिछले आम चुनाव के सर्वे में मॉरिसन की पार्टी पिछड़ती हुई दिखाई दे रही थी। लेकिन मॉरिसन तमाम सर्वेक्षणों और एग्जिट पोल के अनुमानों को झुठा साबित कर अप्रत्याशित ढंग से जीत हासिल कर प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे थे। उस वक्त वे बहुत मामुली अंतर से जीते थे।
इस बार चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, जलवायु परिर्वतन, चीनी हस्तक्षेप व राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे हावी रहे। इसके अलावा चीन-सोलोमन आइलैंड समझोते का मुद्दा भी चुनाव में छाया रहा। दोनों दलों ने इस समझौते को आॅस्ट्रेलिया की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा बताकर एक-दूसरे को घेरने की कोशिश की। लेबर पार्टी सोलोमन आइलैंडस के चीन के खेमे में चले जाने के लिए मॉरिसन सरकार को दोषी ठहरा रही थी।
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पार्टी का आरोप था कि मॉरिसन विदेश नीति के मोर्चें पर पूरी तरह विफल रहे है। पार्टी का कहना था कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से चीन, सोलोमन आइलैंड के साथ सुरक्षा समझौता करने में कामयाब हुआ है। लेबर पार्टी मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रही कि आस्ट्रेलिया की सीमा से सटे देश से सुरक्षा समझौता कर चीन ने आस्ट्रेलिया की सुरक्षा को संकट में डाल दिया है।
जबकि दूसरी ओर लिबरल पार्टी का आरोप था कि लेबर पार्टी का रुख चीन के प्रति नरम है। पार्टी के हित चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं, तथा देश के प्रमुख नेता चीन के संपर्क में है। पार्टी का तो यहां तक कहना था कि लेबर पार्टी के उप नेता रिचर्ड मार्लेस पिछले पाचं वर्ष में दस बार चीन सरकार के अधिकारियों से मिल चुके हैं। लिबरल पार्टी ने चीन पर चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर नतीजों को प्रभावित करने का आरोप भी लगाया था। चुनाव से महज कुछ ही घंटे पहले मॉरिसन के रक्षामंत्री ने कहा था कि इस बात के सबूत हैं कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी आॅस्ट्रेलिया में सत्ता परिवर्तन कर केंद्र में लेबर पार्टी को लाने का प्रयास कर रही है।
कुल मिलाकर लिबरल पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर मतदाताओं को आकर्षित करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन पार्टी का यह दांव कारगर नहीं हुआ। हां, लेबर पार्टी सोलोमन आइलैड्स के मुद्दे पर आक्रामक रुख अपना कर सत्ताधारी दल को हाशिए पर धकेलने में जरूर कामयाब रही।
दरअसल, अप्रैल के दूसरे सप्ताह में चीन ने प्रशांत महासागर में स्थित सोलोमन आइलैंड के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के बाद चीन सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस आइलैंड का उपयोग सैनिक अड्डे के रूप में कर सकेगा। समझौते के तहत युद्ध व दूसरी आपातस्थिति में चीन अपने जंगी जहाजों के लिए सोलोमन के तट का इस्तेमाल कर सकेगा। इसके अलावा आइलैंडस के भीतर जब कभी भी अराजकता व तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है, तो चीन शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए यहां सुरक्षा बल भेज सकता है।
पिछले साल नवंबर में जब राजधानी होनिआरा में दंगे हुए तो दंगों को रोकने के लिए आॅट्रेलिया ने सुरक्षा बल भेजे थे। ताजा समझौते के बाद अब चीन को भी वहां सुरक्षा बल भेजने का अधिकार प्राप्त हो गया है। यद्यपि, आस्ट्रेलिया ने अंतिम समय तक समझौते को रुकवाने की कोशिश की थी, लेकिन आइलैंडस के प्रधानमंत्री मानासे सोगोवारे इसके लिए तैयार नहीं हुए।
आस्ट्रेलिया सोलोमन आइलैंडस को सबसे ज्यादा मदद देने वाले देशों में शुमार है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आॅस्ट्रेलियाई मदद की अनदेखी कर सोलोमन आइलैंड चीनी खेमे में कैसे चला गया? इस समझौते के बाद प्रशांत पैसिफिक रीजन में चीन के विस्तारीवादी मनसूबों को बल मिलेगा। समझौते से न केवल आॅस्ट्रेलिया बल्कि पश्चिमी देशों के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई है|
विदेश नीति के मोर्चे पर मॉरिसन की इस नाकामी को लेबर पार्टी ने चुनाव में प्रमुख हथियार के रूप इस्तेमाल किया। इससे सत्ताधारी गठबंधन बैकफुट पर आ गया था। हालांकि, मॉरिसन के रक्षा मंत्री पीटर डूटन ने चुनाव से ठीक पहले प्रेस कॉफ्रेंस कर चुनाव में पार्टी की वापसी की कोशिश की थी।
लेकिन यह कोशिश भी कामयाब नहीं हई। रक्षामंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आस्ट्रेलिया के तट पर चीन के जासूसी जहाज के देखे जाना का दावा किया था। रक्षा मंत्री ने पत्रकारों से कहा कि इससे पहले भी कई दफा आॅस्ट्रेलिया के जल क्षेत्र में चीनी जहाज प्रवेश कर चुके हैं। रक्षामंत्री का इशारा इस बात की ओर था कि देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा है इसलिए मॉरिसन जैसे नेता को पुन: सत्ता में आना चाहिए।
प्रशांत पैसिफिक रीजन में चीन के विस्तावादी मनसूबों के चलते पिछले कुछ समय से चीन व आॅस्ट्रेलिया के बीच तनातनी चल रही है। नवंबर 2020 में दोनों देशों के बीच तनाव उस वक्त और अधिक बढ़ गया, जब आॅस्ट्रेलिया ने यूरोप के बाकी देशों के साथ मिलकर कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए चीन को दोषी ठहराया था।
चीन से मिल रही चुनौतियों और संभावित खतरे को देखते हुए पिछले कुछ समय से मॉरिसन अमेरिका सहित दुनिया के दूसरे देशों से संपर्क बढ़ा रहे हैं। सितंबर 2021 में आॅस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका के साथ आॅकस समझौते में शामिल हुआ है। समझौते में शामिल होने के बाद उसे अमेरिका द्वारा परमाणु ऊर्जा से संचालित होने वाली पनडुब्बियां मिलेंगी। इसके अलावा वह भारत, जापान व अमेरिका के साथ क्वाड से भी जूड़ा हुआ है।
हालांकि, मॉरिसन रूढ़िवादी हैं। वे समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं। क्लाइमेट चेंज की समस्या को हल्के में लेने के लिए यूरोप के भीतर उनकी आलोचना होती है। लेकिन इसके बावजूद पिछले तीन में उन्होंने जिस तरह से चीन की चुनौती और कोरोना महामारी के बावजूद आॅस्ट्रेलिया के विदेश व घरेलू मोर्चे पर आगे बढ़ाया है।
निसंदेह वह प्रशसंनीय है। लेकिन आॅस्ट्रेलिया के चुनाव इतिहास में एक तथ्य यह भी है कि साल 2007 के बाद कोई भी प्रधानमंत्री लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं आया है। ऐतिहासिक रेकॉर्ड और मौजूदा संकट के बावजूद मॉरिसन चुनाव जीत जाते तो यह चमत्कार ही होता। आॅस्ट्रलियनस को शायद इस चमत्कार की जरूरत नहीं थी!