Friday, May 16, 2025
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खून के आंसू रो रहे हैं ठेली-खोमचे और रेहड़ी वाले

  • कालाबाजारी करने वालों की बल्ले-बल्ले, उठ रहे सवालिया निशान

वरिष्ठ संवाददाता |

सहारनपुर: शासन स्तर से शनिवार-रविवार की बंदी तो ठीक समझ में आती है लेकिन, स्थानीय प्रशासन का हर रोज छह बजे के बाद बाजार बंदी समझ से परे है। देखने में आता है कि पांच बजते ही बाजारों में अफरा-तफरी मच रही है। लोग एक-दूसरे पर टूट पड़ते हैं।

दुकानों के शटर गिराते-गिराते हालात जुदा हो जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी मार पड़ रही गरीबों पर। उन गरीबों पर जो ठेली, खोमचा, रेहड़ी लगाकर अपना और परिवार का पेट पालते हैं। इन दिनों प्रशासन के इस फरमान से ऐसे लोग खून के आंसू रो रहे हैं। वहीं, कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों की बल्ले-बल्ले है।

बता दें कि सहारनपुर में कोरोना का कहर कम नहीं हो रहा है। अब तक यहां ढाई हजार के करीब कोरोना संक्रमित पाए जा चुके हैं। कोरोना से अब तक 34 लोगों की जान जा चुकी है।

बहरहाल, लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराने को पुलिस और प्रशासन ने पूरी रणनीति बनाई लेकिन, वह कारगर साबित नहीं हुई। लाक डाउन में भी नियम-कायदों की धज्जियां उड़ती रहीं। चाहे वह दवा मार्केट हो, सब्जी मंडियां हों या कोई और स्थल। कहीं भी लाक डाउन के नियमों का ठीक से पालन नहीं हुआ।

अलबत्ता कालाबाजारी करने वाले व्यापारी पुलिस से साठगांठ कर अपनी दाल गला रहे थे और अब भी गला रहे हैं। इधर, कुछ सप्ताह पहले शासन स्तर से शनिवार और रविवार को पूर्णतया बंदी घोषित की गई। सहारनपुर में भी इसका असर रहा। चूंकि अब केस अधिक हो रहे हैं।

इसलिए प्रशासन ने पिछले सप्ताह शनिवार, रविवार के अतिरिक्त सोमवार को भी लॉकडाउन घोषित कर दिया। जानकारों का कहना है कि यह अदूरदर्शी कदम था। तीन दिन के बाद जब अचानक बाजार खुला को भीड़ बर्र की तरह टूट पड़ी। ऐसे में लॉकडाउन के नियमों को तार-तार होते देखा गया।

इधर, प्रशासन ने नया फरमान जारी कर दिया है। यानि कि शाम छह बजे के बाद बाजार बंद किया जाए। कल से पुलिस वाले इस पर अमल भी करा रहे हैं। लेकिन, देखा जा रहा है कि पा्ंच बजते ही बाजारों में अफरा-तफरी, भागम भाग का माहौल है।

आम तौर पर नौकरीपेशा या अन्य कामकाज निपटा कर लोग शाम छह के बाद ही बाजार निकलते हैं। लेकिन, छह बजे से बंदी के नाते उनका प्लान उलट-पुलट हो रहा है। बाजारों में भी दुकानदार जल्दबाजी में रहते हैं। इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ रही है गरीबों पर। उन ठेले वालों, खोमचे वालों, रेहड़ी वालों और फुटपाथ पर छोटी-मोटी दुकानें लगाकर छोटी-मोटी कमाई के जरिये तवा गर्म करने वालों के सामने मुसीबत आन पड़ी है।

महानगर में यही कोई बीस हजार से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो ठेली लगाकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। अब उनके सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। शराब के ठेके भले ही खुले हों किंतु होटल-रेस्टोरेंट अभी बंदी में हैं। इनके स्वामी भी खून के आंसू रो रहे हैं। सच तो यह है कि प्रशासन की रणनीति का कोई ठोस आधार नहीं है।

अगर होता तो कोरोना का संक्रमण थम गया होता। जानकारों का कहना है कि भीड़ रोकने के लिए बाजार में और ज्यादा ढील होनी चाहिए। शाम छह बजे से बंदी तो आफत लेकर आई है। इसका नजारा बाजार में देखा जा सकता है। फिलहाल, कालाबाजारी करने वाले चंद व्यापारी चाहते हैं कि लॉकडाउन बढ़े और उनकी दाल गलती रहे।

लॉकडाउन के शुरुआती 55 दिनोें में दाल से लेकर तंबाकू उत्पादों की जमकर कालाबाजारी हुई। इसमें पुलिस की भी मिली भगत रही। फिलहाल, यहां उल्टी गंगा बह रही हैं। अधिकारियों को इससे कोई लेना-देना नहीं। कथित व्यापारी नेता भी प्रशासन की हां में हां मिलाकर मीटिंगों से चले आते हैं। खामियाजा आम-अवाम को भोगना पड़ रहा है।

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