- समाचार को प्रकाशित करने से पहले जनवाणी सभी तथ्यों की बारीकि से पड़ताल करता है
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सोफिया स्कूल पर पहुंची टीम जनवाणी ने बच्चों ढोहने वाली इन तमाम गाड़ियों का पूरा ब्योरा साक्ष्य के साथ जुटाया। किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पहले जनवाणी सभी तथ्यों की बारीकि से पड़ताल करता है, ताकि अन्याय ना हो। ऐसा ही सोफिया स्कूल के ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर इस समाचार के साथ किया गया। स्कूली बच्चों की जिन गाड़ियों का जिक्र यहां किया जा रहा है। उनको पहले कैमरे में कैद दिया गया ताकि सनद रहे। उसके बाद गाड़ियों की भौतिक पड़ताल की बारी आयी तो उनकी दशा देखकर लगा कि ये मासूम बच्चे वाकई खतरों से भरा हुआ सफर पूरा करने को मजबूर हैं।
कुछ गाड़ियों में जहां बच्चों की सीट है, उसके नीचे ही सिलेंडर लगाया गया था। इस प्रकार की गाड़ियों में केवल सीएनजी की गाड़ियां ही नहीं थीं, एलपीजी की गाड़ियां भी थीं। ऐसा नहीं कि केवल एलपीजी की गाड़ियों का सफर ही खतरे से भरा है। ऐसे तमाम मामले हैं, जिनमें तकनीकि चूक के चलते सीएनजी की किट में भी बडेÞ विस्फोट हुए हैं। बात केवल गैस किट की होती तो भी गनीमत थी। जितनी भी गाड़ियों की पड़ताल की गई। उनसे से एक भी गाड़ी ऐसी नहीं पायी गयी। जिसका आरटीओ से फिटनेस कराया गया हो। तमाम गाड़ियां बगैर फिटनेस वाली थी। जिनसे सोफिया के बच्चों को ढोया जा रहा था। किसी एक का इंश्योरेंस नहीं था।
बगैर इंश्यारेंस और फिटनेस वाली गाड़ियों से बच्चों को लाने जाने वालों पर कार्रवाई के बजाए उन्हें संरक्षण देकर पीटीओ इस शहर को क्या संदेश देना चाहती हैं, यही कि पैसा बोलता है…पैसे से कुछ भी किया जा सकता है। पैसे के आगे सीएम के आदेश भी दरकिनार किए जा सकते हैं। यदि ऐसा नहीं है तो पीटीओ बताएं अपना पक्ष रखें, जनवाणी उनकी भी बात और उनका भी पक्ष इतनी प्रमुखता से जनता के सामने लाएगा। अगर इन तमाम बातों की सफाई में कुछ भी नहीं कहना है तो फिर जो कुछ भी देखा व सुना उसको सच मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
फिर तो सोफिया स्कूल के आसपास जितने भी गाड़ी चालक मिले और उन्होंनें पूरे कान्फिडेंस वे बेखौफ होकर कहा कि सर आप कुछ भी कर लीजिए हर माह पैसा जाता है, टाइम से पहले आरटीओ के प्रवर्तन दल के दलाल को महीना पहुंचा देते हैं। उसके बाद किस की मजाल जो उनकी गाड़ी को हाथ भी लगा दे। पहचान ना उजागर करने की शर्त पर एक अन्य चालक ने खुलासा किया कि जहां तक कार्रवाई की बात तो केवल उन पर कार्रवाई होती है जो आरटीओ के दलालों तक पहुंचने का रास्ता नहीं जानते, लेकिन एक बार जब पैसों का लेन-देन हो जाता है
उसके बाद किसी प्रकार की कार्रवाई या फिर गाड़ी के सीज होने का खतरा पूरी तरह से खत्म हो जाता है। उसके बाद तो भले ही गाड़ी पीटीओ की जीप के बराबर से निकाल कर ले जाए किसी की क्या मजाल जो गाड़ी को छू भी दे। भले ही गाड़ी के पेपर ना हों, इंश्योरेंस ना हो, प्रदूषण सर्टिफिकेट ना हो और तो और गाड़ी की दस साल वाली मियाद भी पूरी हो चुकी हो। एक अन्य चालक ने खुलासा किया कि यहां पर कई गाड़ियां ऐसी मिल जाएंगी जो पेपरों में पूरी तरह से कंडम हो चुकी हैं, खत्म हो चुकी हैं उसके बाद भी चल रही है। उसने बताया कि पैसा बोलता है।
आरटीओ के प्रवर्तन दल के दलालों से सेटिंग व महीना बंधने भर की देरी है। उसके बाद भले ही स्कूटी के नंबर पर मेरठ में वैन तो छोड़ों आप ट्रक चला लो। ऐसी ही एक गाड़ी उन्होंने दूर से संवाददाता को दिखाई भी और बताया कि इस गाड़ी का कुछ भी असली नहीं। यहां तक कि नंबर प्लेट भी असली नहीं। उसके बाद भी दो हजार महीने वाले टोकन के बूते यह दौड़ रही है। अरसे से बच्चों को सोफिया स्कूल लाने ले जाने में प्रयुक्त की जा रही है। इस गाड़ी को भी ना कोई रोक सकता है ना कोई टोक सकता है, क्योंकि पैसा बोलता है…