Wednesday, June 26, 2024
- Advertisement -
HomeNational Newsमुस्लिमों को आरक्षण देने पर घमासान, इन राज्यों ने दिए रिजर्वेशन, पूरी...

मुस्लिमों को आरक्षण देने पर घमासान, इन राज्यों ने दिए रिजर्वेशन, पूरी साइड स्टोरी पढ़कर रह जाएंगे हैरान

- Advertisement -

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। अभी हाल ही में वेस्ट बंगाल की कोलकाता हाईकोर्ट ने अन्‍य पिछड़ा वर्ग श्रेणी (OBC) के तहत राज्‍य में 2010 के बाद जितने भी लोगों को प्रमाण पत्र जारी किए हैं, उन्‍हें रद्द कर‍ दिया है। लोकसभा चुनाव के बीच आए इस जजमेंट ने राज्‍य ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी भूचाल पैदा कर दिया है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि ओबीसी के तहत ममता बनर्जी सहित कांग्रेस व विपक्षी दलों ने मुसलमानों को आरक्षण दिया था। भारतीय जनता पार्टी और अन्‍य विपक्षी दल अपने अपने तरीके से इसे चुनवी मुद्दा बना लिए हैं। अब सवाल उठता है कि देश के कितने राज्‍यों में मुस्लिमों को आरक्षण दिया गया है? चलिए इस खबर की हम पूरी पड़ताल करते हैं।

हैरान कर देने वाली खबर यह है कि देश के नौ राज्‍यों में मुस्लिमों को आरक्षण की व्‍यवस्‍था बनाई गई है। इस समय केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक (कोर्ट का स्टे), वेस्ट बंगाल (अब रद्द कर दिया गया), तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में यह व्‍यवस्‍था है।

केरल में शिक्षा में आठ फीसदी और नौकरियों में 10 फीसदी सीटें मुस्लिम समुदाय के लिए जहां आरक्षित हैं तो वहीं तमिलनाडु में मुसलमानों को 3.5 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। कर्नाटक में मुस्लिमों के लिए चार फीसदी आरक्षण दिया गया था जिसे भाजपा सरकार ने ख़त्म कर दिया था। अब कांग्रेस ने राज्‍य की सत्‍ता में वापसी करते ही दोबारा मुस्लिम आरक्षण को लागू करने की कोशिश की जिस पर कोर्ट ने स्टे लगा दिया है।

इसी तरह तेलंगाना में मुस्लिमों को ओबीसी कैटेगरी में चार फीसदी आरक्षण है। आंध्र प्रदेश में ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम रिजर्वेशन का कोटा सात से 10 फीसदी तक है।

उत्‍तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां 28 मुस्लिम जातियों को ओबीसी में आरक्षण मिल रहा है। इसके अलावा बिहार, राजस्थान समेत कई राज्यों में जाति के आधार पर मुस्लिमों को ओबीसी आरक्षण में शामिल किया गया है।

आपको बता दें कि धर्म-आधारित आरक्षण पहली बार साल 1936 में केरल में लागू किया गया था, जो उस समय त्रावणकोर-कोच्चि राज्य था। साल 1952 में इसे 45 फीसदी के साथ सांप्रदायिक आरक्षण से बदल दिया गया। 35 फीसदी आरक्षण ओबीसी को आवंटित किया गया था, जिसमें मुस्लिम भी शामिल थे।

साल 1956 में केरल के पुनर्गठन के बाद लेफ्ट की सरकार ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया। जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षण 40 फीसदी शामिल था। सरकार ने ओबीसी के भीतर एक सब-कोटा बना दिया, जिसमें मुसलमानों की हिस्सेदारी 10 फीसदी थी।

हालांकि भारत के संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है। खुद संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर भी कहते थे कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। लेकिन केरल की लेफ्ट सरकार ने संविधान के प्राविधानों को दरकिनार करते हुए धर्म-आधारित आरक्षण लागू की।

सुप्रीम कोर्ट में है विचाराधीन

अगर कोई दलित व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम या ईसाई धर्म कबूल कर लेता है, तो क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा? ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में संविधान के उस आदेश पर भी फै़सला होना बाक़ी है, जिसमें कहा गया है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों के अलावा किसी और धर्म के लोगों को अनूसूचित का दर्जा नहीं दिया जा सकता। आदेश में ये भी कहा गया था कि ईसाई और इस्लाम धर्म को आदेश से इसलिए बाहर रखा गया है, क्योंकि इन दोनों धर्मों में छुआछूत और जाति व्यवस्था नहीं है।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments