- मेरठ ने देखा है कांग्रेस का ‘गोल्डन पीरियड’, आज ‘बैसाखियों’ का सहारा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ‘क्या बताएं आप से हम हाथ मलते रह गए, गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए’। यह पंक्तियां आज उत्तर प्रदेश कांग्रेस पर सटीक बैठती हैं। आज हम अपने पाठकों को मेरठ में कांग्रेस के उस दौर से रु-ब-रु करा रहे हैं जो कभी उसका ‘गोल्डन पीरियड’ हुआ करता था। वैसे तो राजनीति में ‘साम, दाम, दंड, भेद’ सब जायज है लेकिन मेरठ में कांग्रेस का इतिहास ज्यादातर गैर विवादित ही रहा है।
देश आजाद होने से लेकर आज तक मेरठ में कांग्रेस ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। आजादी मिलने के बाद से कई सालों तक मेरठ में कांग्रेस का ऐसा दबदबा था कि जब यूपी में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी तब मेरठ कांग्रेस कार्यालय ‘वीआईपी’ कैटेगिरी में शुमार था। उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं। इसी तरह का दौर मेरठ में कांग्रेस का भी था।
धीरे-धीरे हालत बदले पार्टी के प्रति लोगों की निष्ठाएं कम होती चली गर्इं और एक दौर ऐसा आया कि मेरठ में पार्टी का ग्राफ शून्य पर पहुंच गया। जिस मेरठ में कांग्रेस की तूती बोलती थी। वहीं आज मेरठ जैसी महत्वपूर्ण सीट पर चुनाव लड़ाने के लिए एकाद कद्दावर नाम को छोड़ कोई दूसरी शख्सियत तक नहीं है। कड़वी सच्चाई यह है कि उस दौर के मुकाबले आज की कांग्रेस मेरठ में ‘बैसाखियों’ पर है।
‘क्रीम लीडरशिप’ के जब पड़ते थे कदम
मेरठ में कभी कांग्रेस के कद्दावरों का आवागमन आम बात हुआ करती थी। मेरठ में पं. जवाहर लाल नेहरु से लेकर महात्मा गांधी और आचार्य कृपलानी तक मंथन करते थे। यहां पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अलावा मोहसिना किदवई, जनरल शाहनवाज, दिलीप कुमार, सुनील दत्त, आॅस्कर फर्नांडीज, अजित सिंह सेठी, नवाब कौकब हमीद, मोती लाल वोरा और जितेंद्र प्रसाद के अलावा न जाने कितने ही नेता मेरठ से लगाव के चलते यहां आते थे।
अब चाहे चुनावी प्रचार हो या फिर कांग्रेस कार्यालय का दौरा। कांग्रेस की समर्पित टीम को देखते हुए यहां पार्टी हाईकमान भी खासी दिलचस्पी लेता था। आॅस्कर फर्नांडीज जैसे नेता ने तो खुद कांग्रेस कार्यालय आने की इच्छा व्यक्त की और आए भी।
मेरठ अधिवेशन बना ‘आजादी का गवाह’
गुलाम भारत में मेरठ में ही कांग्रेस का आखिरी अधिवेशन भी हुआ। इसमें खुद आचार्य कृपलानी ने पं. नेहरु की मौजूदगी में घोषणा की थी कि इंडियन नेशनल कांग्रेस का अगला अधिवेशन अब आजाद भारत में होगा और हुआ भी यही। तब से ही कांग्रेस में मेरठ का रुतबा और बढ़ गया।
शहर और जिला कार्यालय होते थे अलग, इतनी एक्टिव थी कांग्रेस
मेरठ में उस समय की कांग्रेस इतनी एक्टिव थी कि जिला और शहर कमेटियां अलग-अलग दफ्तरों में चलती थीं। बच्चा पार्क स्थित पीएल शर्मा परिसर में पार्टी के अलग-अलग कमरों में अलग अगल दफ्तर चलते थे। आज हालत बिल्कुल विपरीत हैं।
कार्यालय से लखनऊ घनघनाते थे फोन
पार्टी से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी तब मेरठ स्थित पार्टी कार्यालयों की खासी एहमियत हुआ करती थी। हालत यह थे कि सिफारिश करने वालों का यहां जमावड़ा लगा रहता था और यहां से फोन लखनऊ तक घनघनाते थे।
कांग्रेस कार्यालयों पर लगता था मेला
जब प्रदेश में कांग्रेस का दौर था तब मेरठ में पार्टी कार्यालय पर चुनावी बेला में मेले जैसा माहौल हुआ करता था। रात रात भर आंकड़ों की बाजीगरी में नेता उलझे रहते थे। पूराने नेता बताते हैं कि यहीं पर भट्ठी और कढ़ाइयां तक चढ़ती थीं।
टाइपिस्ट से लेकर फोन अटेंडेंट तक कार्यालय में रहता था मौजूद
मेरठ में कांग्रेस कार्यालय इतना एक्टिव था कि हर समय यहां एक टाइपिस्ट से लेकर फोन अटेंड करने वाला व्यक्ति मौजूद रहता था। कोई फरियादी जब भी अपनी फरियाद लेकर आता था तब टाइपिस्ट फौरन उसके आवेदन को टाइप कर सीधे जिला प्रशासन को भेज देता था। यहां हर फरियादी की टेलीफोन कॉल अटेंड की जाती थी।
मेरठ में कांग्रेस के यह रहे ‘आधार स्तम्भ’
आदित्य प्रकाश शर्मा, विनोद मोगा, डॉ. यूसुफ कुरैशी, कृष्ण कुमार शर्मा ‘किशानी’, डॉ. प्रेम प्रकाश शर्मा, हरशरण जाटव, पं. नवनीत नागर, योगराज नम्बरदार, डा. एमएन खान, पं. जय नारायण शर्मा, राकेश मिश्रा, दीपक शर्मा, इकरामुद्दीन अंसारी, सतीश शर्मा, शांति त्यागी, आईडी गौतम, हरिकिशन अम्बेडकर, आफाक अहमद, सतीश चंद जैन, राजीव शर्मा एड., हनीफ कुरैशी, जैनुल राशेदीन, धर्म दिवाकर, नजीर अहमद, एसएस कपूर, जयचंद त्यागी, मुगीस जिलानी, खेमचंद ठेकेदार और मुईनुद्दीन।