Friday, June 20, 2025
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खरीफ की खेती के लिए सुझाव

KHETIBADI 2


खरीफ सीजन की शुरुआत होते ही किसानों की तैयारियों में तेजी आ जाती है। खरीफ फसलों की बुवाई जून से जुलाई के बीच होती है और इसकी कटाई सितंबर से अक्टूबर के बीच होती है। इस मौसम में मुख्यत: धान, मक्का, सोयाबीन, बाजरा, मूंग, उड़द, और कपास की खेती की जाती है। यहां पर कुछ महत्वपूर्ण खेती टिप्स और सुझाव दिए जा रहे हैं, जो इस खरीफ सीजन में आपकी खेती को सफल बना सकते हैं।

फसल का चयन : खरीफ सीजन में फसल का चयन करते समय अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु और सिंचाई सुविधा को ध्यान में रखें। धान, मक्का, और बाजरा जैसी फसलें अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं, जबकि मूंगफली और सोयाबीन कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी होती हैं।

मिट्टी की तैयारी : खरीफ फसलों के लिए मिट्टी की गहरी जुताई आवश्यक है। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और खरपतवारों की वृद्धि पर नियंत्रण रहता है। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने के लिए जैविक खाद और हरी खाद का प्रयोग करें।

बीज की गुणवत्ता : उन्नत किस्मों के उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करें। बुवाई से पहले बीजों का उपचार अवश्य करें ताकि बीमारियों से बचा जा सके। प्रमाणित बीजों का उपयोग फसल उत्पादन में वृद्धि करता है।

सिंचाई प्रबंधन : खरीफ सीजन में मॉनसून की अनिश्चितता को देखते हुए सिंचाई की उचित व्यवस्था करें। वर्षा जल संचयन के लिए तालाब, चेकडैम और वॉटर हार्वेस्टिंग पिट का निर्माण करें। सिंचाई के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली का उपयोग जल की बचत के लिए करें।

खाद और उर्वरक का प्रयोग : मृदा परीक्षण करवा कर उर्वरकों का उपयोग करें। संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करें। जैविक खादों का अधिक उपयोग करें ताकि मिट्टी की संरचना में सुधार हो सके।

खरपतवार नियंत्रण : खरपतवारों की समय पर सफाई फसलों की अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक है। यांत्रिक और रासायनिक दोनों तरीकों से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। बुवाई के बाद शुरूआती 20-30 दिनों में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है।

कीट और रोग प्रबंधन : फसल के रोगों और कीटों का समय पर निदान और प्रबंधन आवश्यक है। जैविक पद्धतियों का अधिक उपयोग करें और रासायनिक कीटनाशकों का संतुलित उपयोग करें। फसलों की नियमित निगरानी करें ताकि रोगों का प्रारंभिक चरण में ही उपचार हो सके।

फसल विविधीकरण : एक ही प्रकार की फसल उगाने की बजाय फसल विविधीकरण अपनाएं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और किसी एक फसल के खराब होने पर दूसरे से मुआवजा मिल सकता है।

फसल बीमा योजना : फसल बीमा योजना का लाभ अवश्य उठाएं। इससे प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसल का बीमा कराएं।

तकनीकी सलाह : कृषि विशेषज्ञों और कृषि विज्ञान केंद्रों से नियमित सलाह लेते रहें। नई तकनीकों और खेती के उन्नत तरीकों को अपनाएं। कृषि मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेकर नवीनतम जानकारी प्राप्त करें।

इन सुझावों का पालन कर किसान अपनी खरीफ फसलों की उपज और गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। सही समय पर सही कदम उठाना सफल खेती का मूल मंत्र है।


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