- स्मृति शेष: साहित्यकार से.रा. यात्री पर देश भर में हुई 35 पीएचडी, चौधरी चरण सिंह विवि के हिंदी विभाग में भी हुआ शोध
- दुनिया को अलविदा कह गए सेवाराम यात्री, गाजियाबाद में हिंडन तट पर पंचतत्व में विलीन
- निम्य मध्यवर्गीय परिवारों की जिंदगी की दुश्वारियों पर खूब चली कलम
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मुजफ्फरनगर के जड़ौदा गांव में 13 अगस्त 1933 को जन्मे हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार सेवाराम यात्री ने शुक्रवार को गाजियाबाद में अंतिम सांस ली। वह 91 वर्ष के थे। सेवाराम अग्रवाल के प्रख्यात साहित्यकार सेरा यात्री बनने का सफर अनोखा और दिलचस्प रहा। यात्री ने 18 कहानी संग्रह, 33 उपन्यास, दो व्यंग्य संग्रह, एक संस्मरण, 300 से अधिक कहानियों और एक संपादित कथा साहित्य का सृजन किया।
से.रा. यात्री को उनके बड़े भाई वैध बनाना चाहते थे। उनका दाखिला एनआर पाठशाला में कराया गया। ह्ययह बच्चा जिंदगी भर संस्कृत नहीं सीख सकता, ये कहकर उन्हें पाठशाला से निकाल दिया गया। इसके तीन साल बाद यात्री की पढ़ाई वहीं से शुरू हुई जहां खत्म हुई थी। बाद में यात्री बड़े साहित्यकार बन गए। उन पर देश भर में 35 पीएचडी हुईं। चौधरी चरण सिंह विवि के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नवीन चंद लोहनी के निर्देशन में मेरठ की मीनू शर्मा ने से. रा. यात्री के उपन्यासों में जीवन मूल्यों पर पीएचडी की।
यात्री के रचना संसार पर यह तब दूसरा शोध था। मीनू बताती हैं कि यात्री ने अपने उपन्यासों में निम्न मध्यवर्गीय समाज की दुश्वारियों को प्रमुखता से उठाया। वे प्रेमचंद से खासे प्रभावित प्रतीत होते हैं। उन्होंने बेरोजगारों के बारे में लिखा, नारी जीवन के बारे में लिखा। रोजगार की तलाश में भटकते नौजवानों के संघर्ष पर कलम चलाई। शोधकर्ता डॉ मीनू इन दिनों दिल्ली में प्रवक्ता हैं। मीनू ने दूरदर्शन के पत्रिका कार्यक्रम के लिए प्रोफेसर लोहनी और सेरा यात्री से उनके रचना संसार पर साक्षात्कार किया था। यह साक्षात्कार यू टयूब पर उपलब्ध है।
बिन बताए नाम बदलने पर हुई थी यात्री की पिटाई
बचपन में से. रा. यात्री का नाम सेवाराम अग्रवाल था। पंडित ने उनका नाम सेवाराम निकाला था। उन्हें अपने नाम के तीनों शब्द सेवा, राम और अग्रवाल पसंद नहीं आए। हाईस्कूल का फॉर्म भरते समय उन्होंने अपना नाम सेवाराम यात्री भर दिया। रिजल्ट में सेवाराम अग्रवाल नाम न होने पर घर में खाना नहीं बना। शाम को सेवाराम घर आए तो बताया कि अव्वल नंबर से पास हुए हैं
और उन्होंने अपने नाम में अग्रवाल की जगह यात्री लगा लिया है। पास होने की खुशी में गले लगाने के बजाय घर में उनकी पिटाई हुई। उपेंद्र नाथ अश्क ने उनके नाम का मजाक उठाया तो उन्होंने अपना नाम अपने हस्ताक्षर में प्रयुक्त किए जाने वाले एसआर यात्री की जगह से रा यात्री लिखना शुरू कर दिया। इस नाम से छपी उनकी पहली कहानी गर्द और गुबार ने साहित्य की दुनिया में तहलका मचा दिया।
गांव की गलियों से साहित्य के शिखर तक
यात्री ने गांव की गलियों से साहित्य के शिखर तक का सफर तय किया। उन्होंने आगरा विवि से राजनीति विज्ञान और साहित्य में एमए किया। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर कॉलेज के बाद गाजियाबाद, खुर्जा समेत कई शहरों में अध्यापन किया। वह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि में राइटर इन रेजीडेंस पद पर भी रहे। इन दिनों वह अपने बेटे आलोक यात्री के साथ गाजियाबाद के कविनगर में रहते थे। उप्र हिंदी संस्थान ने उन्हें छह बार पुरस्कर दिया था।
एक दिन पहले ही पुरस्कर की घोषणा
निधन से एक दिन पूर्व ही यात्री को दीपशिखा संस्थान ने सम्मान की घोषणा की थी। घर पर ही एक समारोह में उन्हें ये सम्मान 18 तारीख को दिया जाना था। प्रोफेसर नवीन चंद लोहनी ने यात्री के निधन को समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।