सीताराम गुप्ता
पेड़-पौधों द्वारा मनोरोगों का उपचार करने के लिए अमरीका के गैटिस्बर्ग मैरीलैंड में अमरीकन हॉर्टीकल्चर थेरेपी एसोसिएशन नामक समिति का गठन किया गया है जिसने इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण प्रयोग और शोधकार्य किए हैं। प्रयोगों और शोधकार्यों के आधार पर समिति का दावा है कि मिट्टी की मनभावन महक भी मन-मस्तिष्क एवं स्नायुतंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
पौधों को उगाना, उनकी देखभाल करना और उनकी पैदावार से लाभ कमाना एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन यह एक रचनात्मक कार्य भी है। विशेष रूप से शौकिन बागबानी या गमलों में पौधे उगाना और रचनात्मक कार्य से न केवल हमारे ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी हमारी क्षमता और कार्य कुशलता में वृद्धि होती है। जब हताशा हावी हो जाए, निराशा से नींद न आए और अवसाद का अंत न हो तो ऐसे में शरीर के तने हुए तंतुओं को तनाव रहित करने के लिए तथा मन-मस्तिष्क को शांत करने एवं संयत रखने के लिए मनोचिकित्सक अब खेती-बाड़ी और बाग़्ाबानी करने का परामर्श देते हैं।
आॅक्यूपेशनल थेरेपी या व्यावसायिक चिकित्सा में सिलाई-कढ़ाई, टोकरी बुनना, दरी-कालीन बुनना, मिट्टी अथवा धातु से मूर्तियाँ बनाना, लकड़ी, बांस अथवा बेंत का सामान बनाना या चित्रकला आदि सहायक होते हैं लेकिन बागबानी इन सबमें महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हमारी रचनात्मकता के स्तर में वृद्धि के साथ-साथ प्रकृति से भी हमारा जुड़ाव हो जाता है। बीजों से अंकुर निकलना, कलमों की गांठों से पत्तियां विकसित होना, पौधों का बढ़ना, निरंतर नई-नई पत्तियों का आना और उनके रंग में परिवर्तन होना, कलियों का दृष्टिगोचर होना तथा फूलों का खिलना ये सब ऐसी क्रियाएं हैं जिनका अवलोकन हमें प्रकृति से जोड़ कर हममें एक नई स्फूर्ति, एक नई चेतना भर देता है।
सर्दियों में पत्र-पुष्प विहीन कोई ठूंठ-सा लगने वाला पौधा जब बसंत ऋतु का स्पर्श पाकर गांठ दर गांठ फूटने लगता है, पल्लवित-पुष्पित होकर अपनी छटा बिखेरने लगता है तो उसे देख कर हमारा मन भी पल्लवित-पुष्पित होने लगता है। हमारी कल्पनाशीलता का विकास होता है तथा रचनात्मकता के स्तर में वृद्धि होती है। मन प्रसन्न होने लगता है। मन प्रसन्न हो तो तन के प्रसन्न अर्थात् स्वस्थ होने में देर नहीं लगती। प्रकृति अपने नए-नए रूपों में प्रकट होने लगती है। प्रकृति की इस अनुपम रचनात्मकता को देखकर हम स्वयं रचनात्मक होने लगते हैं, एक कलाकार बन जाते हैं और पुन: दुगने वेग से पौधों की देखभाल में जुट जाते हैं। मैंने अपने जीवन में जो पहली कविता लिखी थी, वह पौधों की देखभाल के दौरान ही नि:सृत हुई थी।
पौधों की देखभाल, कटाई-छंटाई उचित मात्र में खाद-पानी देना, उनको सलीके से रखना तथा सजाना-संवारना हमारे स्वयं के अंदर एक सुव्यवस्था को उत्पन्न कर देता है। हम अपने जीवन में अधिकाधिक व्यवस्थित होने लगते हैं और इस सब का हमारे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पौधों की कटाई-छँटाई अथवा प्रूनिंग और उसके बाद नई-नई कोंपलों का विकसित होना इस बात का प्रतीक है कि हम अपने मन में समाए नकारात्मक तथा अनुपयोगी विचारों से मुक्त होकर उनके स्थान पर उपयोगी सकारात्मक विचारों को ग्रहण करने के लिए तत्पर हैं।
पेड़-पौधों द्वारा मनोरोगों का उपचार करने के लिए अमरीका के गैटिस्बर्ग मैरीलैंड में अमरीकन हॉर्टीकल्चर थेरेपी एसोसिएशन नामक समिति का गठन किया गया है जिसने इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण प्रयोग और शोधकार्य किए हैं। प्रयोगों और शोधकार्यों के आधार पर समिति का दावा है कि मिट्टी की मनभावन महक भी मन-मस्तिष्क एवं स्नायुतंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। जंगली खर-पतवार की कटाई-छंटाई से अवसाद कम होता है और गहन हरीतिमा तथा प्रतिदिन बढ़ते पेड़-पौधे निराशा को दूर कर जीवन के प्रति आशा तथा उत्साह का संचार करने में पूरी तरह सक्षम होते हैं। प्रकृति के सान्निध्य से लाभांवित होकर अद्वितीय आनंद की प्राप्ति करने तथा पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं उत्साहित बने