Saturday, June 29, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादईश्वर पर भरोसा

ईश्वर पर भरोसा

- Advertisement -

Amritvani 13


जब हनुमान जी संजीवनी बूटी हेतु पर्वत लेकर लौटते हैं तो भगवान से कहते हैं, प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था।। आपने तो मुझे मेरा इस बात का अंहकार दूर करने के लिए भेजा था कि हनुमान जी ने पवित्र नाम ‘राम’ का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है, प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया।

भगवान श्री राम ने पूछा, कैसे, प्रिय हनुमान? हनुमान जी बोले, वास्तव में तो भरत जी ही संत हैं और उन्होंने ही राम नाम जपा है। आपको पता है, जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया, पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया। कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर। उन्होंने बस ये ही कहा, यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए।

यह वचन सुनते ही, मेरी मूर्छा, थकावट और बाण की पीड़ा सब एक क्षण में दूर हो गए और मैं श्री राम कहता हुआ उठ बैठा। मैं नाम तो लेता हूं, पर भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने ही क्यों जाता? दूसरी बात प्रभु! बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योंकि पर्वत तो आप उठाए हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाए हुए हूं।

मर्म यह है कि हम भी नाम तो भगवान का लेते हैं, पर भरोसा नहीं करते। उस समय हम भूल जाते हैं कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं, वह है और जब वह है तो संभाल भी वो ही करेगा। इसी तरह हम सोच लेते हैं कि गृहस्थी के बोझ को मैं उठाए हुए हूं, जबकि इस पूरी सृष्टि का बोझ उठाने वाला तो परम पिता परमेश्वर है। फिर अभिमान किस बात का?
                                                                 प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


janwani address 6

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments