नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते ही हमारी सांसें अटकने लगती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका असर सिर्फ आपकी गाड़ी की टंकी पर नहीं, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है? हाल ही में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (UBI) की एक रिपोर्ट ने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर भारत के लिए एक बड़ी चेतावनी जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में हर $10 की बढ़ोतरी होती है, तो भारत का चालू खाता घाटा (CAD) चौंकाने वाले $15 बिलियन तक बढ़ सकता है। यह आंकड़ा सीधे तौर पर हमारी आर्थिक स्थिरता और भविष्य पर सवालिया निशान लगाता है।
चलिए जानते हैं इसके सरल भाषा में..
चलिए इसे आसान भाषा में समझते हैं। चालू खाता घाटा तब होता है जब कोई देश विदेशों से जितनी वस्तुएं और सेवाएं खरीदता है (आयात), उससे कम वस्तुएं और सेवाएं बेचता है (निर्यात)। यानी, हम खर्च ज्यादा कर रहे हैं और कमा कम रहे हैं। कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात का एक बड़ा हिस्सा है। जब तेल महंगा होता है, तो हमें उसे खरीदने के लिए ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है, जिससे हमारा चालू खाता घाटा बढ़ जाता है।
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कीमतों में यह उछाल भारत के लिए एक ‘जोखिम’
UBI की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि तेल की कीमतों में यह उछाल भारत के लिए एक ‘जोखिम’ है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतीयों के जीवन पर सीधा असर डालने वाली बात है। महंगा तेल मतलब महंगाई, जो आपकी रसोई से लेकर आपकी जेब तक हर जगह महसूस होती है।
भारत के लिए परेशानी का सबब बनती हैं
कच्चे तेल की ऊंची कीमतें कई मायनों में भारत के लिए परेशानी का सबब बनती हैं। सबसे पहले, यह सीधे तौर पर ईंधन की खुदरा कीमतों को प्रभावित करती हैं, जिससे पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस महंगी हो जाती है। इसका सीधा असर परिवहन लागत पर पड़ता है, जो हर वस्तु की कीमत को बढ़ा देता है। सब्जियां, अनाज, फल – सब कुछ महंगा हो जाता है। यह आम आदमी की जेब पर एक अतिरिक्त बोझ डालता है और उसकी खरीदने की शक्ति को कम करता है।
दूसरे, चालू खाता घाटा बढ़ने से रुपए पर दबाव आता है। जब CAD बढ़ता है, तो विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है और रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होने लगता है। कमजोर रुपया आयात को और महंगा कर देता है, जिससे महंगाई का दुष्चक्र शुरू हो जाता है। यह विदेशी निवेश को भी हतोत्साहित कर सकता है, जो देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक है। हमारी अर्थव्यवस्था ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयातित तेल पर निर्भर करती है। भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान या प्रमुख तेल उत्पादक देशों में उत्पादन में कटौती जैसे कारक अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों को तुरंत प्रभावित करते हैं। इन सभी का सीधा असर भारत पर पड़ता है। यह निर्भरता हमें वैश्विक तेल बाजार की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाती है।
सरकार ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर जोर देकर इस निर्भरता को कम करने की कोशिश की है। हालांकि, यह एक लंबी प्रक्रिया है और निकट भविष्य में भारत की तेल पर निर्भरता बनी रहेगी। ऐसे में, तेल की कीमतों में हर उतार-चढ़ाव हमारे लिए बड़ी चुनौती लेकर आता है।