Friday, July 5, 2024
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बेरोजगारी और आवारा पशु बड़ी चुनौती

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Nazariya 17


Ahseesh Vashist 1योगी आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ लेकर इतिहास रचने जा रहे हैं। लेकिन अब इस यकीन से आगे बढ़कर उन तमाम मुद्दों, परेशानियों और मसलों से पार पाने की चुनौती योगी आदित्यनाथ के समक्ष है, जिन्हें विपक्ष ने चुनाव प्रचार के दौरान अस्त्र-शस्त्र के तौर पर प्रयोग किया था। विपक्ष ने आवारा पशुओं की समस्या, बेरोजगारी, किसानों, श्रमिकों की समस्याओं के साथ ही साथ मंहगाई को भी मुद्दा बनाया था। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा आवारा पशुओं की समस्या और बेरोजगारी पर हुई। अपने दूसरे कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ के समक्ष इन दो मुद्दों से निपटने की बड़ी चुनौती है। वास्तव में ये दोनों समस्याएं किसानों और युवाओं से सीधे तौर पर जुड़ी हैं। आवारा पशुओं के कारण किसानों की रातों की नींद हराम है। तो वही बेरोजगारी के चलते प्रदेश के युवा पलायन के लिए विवश हैं।

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प्रदेश के बेरोजगार युवाओं की अच्छी खासी संख्या है। चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ प्रदेश के युवाओं को सरकारी नौकरी देने और प्राईवेट सेक्टर में रोजगार उपलब्ध कराने के आंकड़े गिनाते रहे लेकिन आवारा पशुओं की समस्या को लेकर उनके पास कोई संतुष्टिदायक उत्तर उपलब्ध नहीं था। यूपी में योगी सरकार के आने के बाद अवैध बूचड़खाने बंद हो गए। इसके चलते आवारा पशुओं की तस्करी भी बंद है। अब हालत यह है कि निर्बल हो चुके या बेकार हो चुके पशुओं की देखभाल करने के बजाय लोग उसे छुट्टा छोड़ देते हैं।

सबसे बड़ी बात ये है कि कोई भी दल इस मुद्दे को लेकर मुख्य मुद्दा बनाकर जनता के बीच नहीं आना चाहता है। केवल प्रदेश सरकार पर हमला करने के लिए कहा जाता है कि किसान परेशान है। कोई भी दल इस समस्या के हल के लिए यह कहने की स्थिति में नहीं है कि हमारी पार्टी की सरकार आने पर अवैध बूचड़खाने को फिर से चालू करा दिया जाएगा।

मीडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि यूपी में 2019 में हुई 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक 11 लाख 84 हजार 494 आवारा पशु हैं। डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आवारा मवेशियों पर 355 करोड़ खर्च कर दिए पर प्रदेश में किसान अभी भी इनके चलते त्रस्त हैं। 2017 के बाद बेसहारा मवेशियों के लिए यूपी सरकार ने कई कदम उठाए। जैसे गौशालाएं, कांजी हाउस, गौसंरक्षण केंद्रों का निर्माण आदि। इसके लिए 2018-19 में छुट्टा गोवंश के रखरखाव के मद पर सहायता अनुदान के तौर पर 17.52 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। राज्य के बजट डॉक्यूमेंट बताते हैं कि यह राशि खर्च भी हो गई, जबकि इससे अगले साल यानी 2019-20 में 203.11 करोड़ रुपए इस मद पर खर्च किए गए। जबकि बजट में प्रावधान केवल 72 करोड़ रुपए का किया गया था। यही वजह रही कि अगले साल के बजट में 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया।

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2019-20 में गौसंरक्षण केंद्रों के निर्माण पर लगभग 136 करोड़ रुपए के खर्च का प्रावधान किया गया, जिसे बढ़ा कर 2020-21 में 147.60 करोड़ रुपए कर दिया गया, लेकिन इस मद पर खर्च 115 करोड़ रुपए किए गए। इसके अलावा बुंदेलखंड गोवंश वन्य विहार की स्थापना पर 19.20 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। यानी कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार पिछले तीन साल में लगभग 355 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इतना सब होने के बावजूद समस्या जस की तस है। दरअसल जब तक व्यवहारिक योजनाएं नहीं बनेंगी समस्या का समाधान नहीं होता है। सरकारी योजनाओं के पैसे की बंदरबांट होती है। यूपी में सरकार एक गाय पर प्रतिदिन 30 रुपए देती है, जिसमें उसका चारा, उनके रहने के लिए टिन शेड, पीने के पानी की व्यवस्था भी शामिल है। इतने में सरकारी अधिकारियों को कमीशन भी देना भी जोड़ लीजिए तो गाय के लिए क्या बचता होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है।

विपक्ष बेरोजगारी के मामले में योगी सरकार पर लगातार हमलावर है। बेरोजगारी की अहम समस्या से चुनौती पाना योगी आदित्यनाथ के लिए आसान नहीं होगा। अपने पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने साढ़े चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरिया दी हैं। प्रदेश में प्राइ्रवेट सेक्टर में निवेश आने के बाद इस क्षेत्र में नौकरियां बढ़ी हैं। वहीं सहायक शिक्षक भर्ती मामला भी सरकार की गले की फांस बना है। कई महीनों से लखनऊ में 69 हजार शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता भी अहम मसला है।

आंकड़ों के आलोक में बात करें तो मार्च 2017 में जब योगी सरकार सत्ता में आई तब बेरोजगारी दर 2.4 फीसदी थी। ये आंकड़ा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) ने ही 2017 में जारी किया था। सीएमआईई द्वारा पिछले दिनों जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार यूपी में बेरोजगारी 2.7 फीसदी है। मतलब योगी के सत्ता में आने के बाद और अब में 0.3 फीसदी बेरोजगारी दर बढ़ी है। जबकि देश की बेरोजगारी दर 7.4 फीसदी है।

अखिलेश यादव ने लोकसभा त्याग कर यह साफ कर दिया है कि वो प्रदेश की राजनीति में ही रमेंगे। विपक्ष किसान, श्रमिक, महिला सुरक्षा, दलित, वंचित, अल्पसंख्यकों और कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों के साथ आवारा जानवरों और बेरोजगारी के मसले पर योगी सरकार को घेरने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देगा। इस वर्ष स्थानीय निकाय के चुनाव और 2024 के आम चुनाव के दृष्टिगत विपक्ष की सक्रियता चरम पर रहेगी। ऐसे में आवारा पशुओं और बेरोजगारी के मुद्दे पर योगी सरकार की कड़ी परीक्षा आने वाले दिनों में होने वाली है।


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