Wednesday, July 3, 2024
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फिल्मों का चुनावों के लिए इस्तेमाल

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09 26पिछले कुछ वर्षों से प्यार, मोहब्बत, दोस्ती, भाईचारा और कुर्बानी की मिसालें पेश कर दिलों में नजदीकियां पैदा करने वाली फिल्मों के लिए मशहूर इंडस्ट्री में कुछ अलग किस्म की मूवी बनाने का क्रेज बढ़ा है। इससे मानवता, बंधुत्व, लोकतांत्रिक व्यवस्था और आपसी भाईचारा प्रभावित होने का खतरा उत्पन्न हो़ गया है। धार्मिक उन्माद बढ़ाने, नफरत कीोती करने और दिलों में दूरियां पैदा करने वाली फिल्में जिस तरह रफ्तार पकड़ रही हैं, निकट भविष्य में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। भगवा संगठनों की मंसूबाबंदी के तहत चुनाव से पहले ऐसी फिल्में दिखाने से स्पष्ट है कि अब सत्ता में आने के लिए किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं किया जाता। ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ के बाद ‘अजमेर-92’ और ‘72-हूरें’ इसकी जिं़दा मिसालें हैं।

कभी माया नगरी में प्यार मोहब्बत, धर्म, सुखांत, दुखांत, गरीबी, भुखमरी, खेती, मजदूरी, जमींदारी, शिक्षा, रोजगार, विकास, ऐतिहासिक घटना और देश की रक्षा को केंद्र में रखकर फिल्में बनाई जाती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। समय के साथ बदलाव का दौर शुरू हुआ तो फिल्में भी इससे अछूती नहीं रहीं। वर्तमान समय की त्रासदी यह है कि कई ऐसी फिल्में रिलीज हो चुकी या हाने वाली हैं, जिनमें राजनीतिक हित के द्देनजर तथ्यों को संदिग्ध तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

किसी फिल्म का निर्माण एकदम नहीं हो जाता। बाकायदा योजना बनानी पड़ती है। कहानी को अपनी सोच और नजरियात के मुताबिक लिखवाया जाता है। फसादात के ऊपर फिल्में पहले भी बनी हैं, लेकिन कहानी इस तरह प्रस्तुत की जाती रही कि लोग फसादात से नफरत करने पर मजबूर हो जाएं। फिल्मों में हत्या को नापसंदीदा कृत्य मानते हुए आपसी सद्भाव के लिए जी जान से कार्य किया गया।

मकसद लोगों को यह संदेश देना था कि एकता, भाईचारा और सहिष्णुता हमारी ताकत है। यह गंगा-जमनी सभ्यता के अस्तित्व और हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के लिए बहुत जरुरी है। उधर, संकुचित मानसिकता इसे नाकाम बनाने, समाज में जहर घोलने, नफरत की खेती करने और धर्म विशेष को निशाना बनाने का कोई मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहती।

हिंदू मुस्लिम क्रोनोलॉजी को समझें, तो मालूम पड़ेगा कि इस तरह की फिल्म बनाना और रिलीज करने का संबंध किसी न किसी चुनाव से है। चुनाव से पहले मतों के ध्रुवीकरण के लिए भड़काऊ और हिंसात्मक फिल्म रिलीज करना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए किसी भी स्थिति में लाभदायक नहीं है। 1990 में कश्मीर से पंडितों के निष्कासन और नरसंहार पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का 21 फरवरी 2022 को प्रोमो हुआ।

उस समय उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के कारण आचार संहिता लागू थी। ट्रेलर आते ही वबाल मच गया। भाजपा के पूर्व उच्च सदन के सदस्य सुभाष चंद्र के जी स्टूडियो प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म को भाजपा के प्रचार तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह के समर्थन से पार्टी को लाभ हुआ। डबल इंजन वाली रियासतों में इसे कर मुक्त किया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिल्म में दिखाए गए आधे सच का मकसद बहुसंख्यक समुदाय का ध्रुवीकरण करना है।

मार्च 2023 में त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई। भाजपा के लिए बड़े राज्य कर्नाटक में जीत हासिल करनी जरूरी थी। पहले हिजाब और फिर बजरंग बली को मुद्दा बनाया गया। बात नहीं बनी तो 26 अप्रैल 2023 को पड़ोसी राज्य केरेला के लव जिहाद पर आधारित प्रोपेगंडा फिल्म ‘द केरेला स्टोरी’ का ट्रेलर जारी कर 5 मई को फिल्म रिलीज की गई।

विशेषज्ञों का मानना है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ में धर्म विशेष के खिलाफ हिंदुओं के मन में नफरत का जहर भरने में जो कमी रह गई थी, उसे ‘द केरेला स्टोरी’ ने पूरा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव रैली में ‘द केरेला स्टोरी’ का जिक्र कर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की, लेकिन बदलाव का मन बना चुकी जनता ने बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कर्नाटक की सत्ता कांग्रेस को सौंप दी।

2024 के आम चुनाव से पहले इसी वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। जून 2023 में नफरत को बढ़ावा देने वाली एक अन्य फिल्म ‘अजमेर-92’ का ट्रेलर जारी किया जा चुका है। यह फिल्म 1992 में अजमेर के स्कूल, कॉलेजों में पढ़ने वाली करीब 250 लड़कियों के साथ हुए रेप और वीडियो द्वारा ब्लैकमेल की वारदातों पर आधारित है।

इसे 7 जुलाई से दिखाया जाएगा। अनिल अंबानी के रिलायंस प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म का मकसद राजस्थान के चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण नहीं तो फिर क्या है? इसी क्रम में एक अन्य फिल्म ‘72-हूरें’ बनाई गई। मुसलमानों को टारगेट करके बनाई गई प्रोपेगेंडा फिल्म का एक ही मकसद है, चुनाव! वोट!! और ध्रुवीकरण!!! पवित्र कुरआन और हदीसों में हूर मिलने का जिक्र उन लोगो ंके लिए है, जो ईमान के

साथ नेक और अच्छे कर्म करके जन्नत में जाएंगे। किसी मुस्लिम देश में रहने और मुस्लिम के द्वारा किसी गैर मुस्लिम या किसी दूसरे संप्रदाय के व्यक्ति की हत्या करने वाला शख्स आतंकवादी है। दहशतगर्द को हूर मिलना तो दूर, उसे जन्नत की खुशबू भी नहीं मिलेगी। अकारण आतंकवादी को 72 हूरें मिलने का प्रचार किया जा रहा है, जबकि दुनिया में फसाद फैलाने वाले शख्स के लिए जन्नत है ही नहीं।


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