सत्ता, गोदी मीडिया व ‘अंधभक्तों’ की जमाअत संयुक्त रूप से भारत को विश्वगुरु साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। 7 नवंबर 2024 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘ज्ञान’ व उसकी विचारधारा को भारतीय शिक्षा से जोड़ने का अथक प्रयास करने वाले, शिक्षा बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक दीनानाथ बत्रा का 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे एक राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था विद्या भारती के महासचिव भी थे। बत्रा ने अपना सारा जीवन इसी तरह की बातों को सही साबित करने की कोशिशों में खपा दिया कि हवाई जहाज का अविष्कार राइट ब्रदर्स ने नहीं किया बल्कि यह भारतीय पौराणिक काल की उपलब्धि थी। इसी तरह टेलीविजन के आविष्कार को वे वर्तमान आधुनिक विज्ञान की देन नहीं मानते थे, बल्कि इसे महाभारतकाल के पहले की भारतीय खोज बताते थे। ऐसे सैकड़ों विज्ञान सम्मत बातों पर उनके निजी विचार भले ही विश्व स्वीकार्य हों या न हों परंतु भारत को कथित तौर से ‘विश्वगुरु’ साबित करने के दिशा में ही एक उठाए गए कदम थे।
परंतु भारत को पुन: विश्वगुरु के रूप में विश्व में स्थापित करने की इन्हीं कोशिशों के बीच शायद हम यह भूल जाते हैं कि विश्व का नेतृत्व करने की आकांक्षा रखने वाले हमारे देश के अपने नागरिकों की जान माल आखिर कितनी सुरक्षित है? और दशकों से इंसानी जान से खिलवाड़ करने वाली ऐसी कमजोर कड़ियों से निपटने का हमने अब तक क्या उपाय किया है? कोई उपाय किया भी है या नहीं? या सत्ता इस बात को ही अंगीकार कर चुकी है कि बिना सुरक्षित उपायों के ही जब जनता को आसानी से मूर्ख बनाया जा सके तो ऐसे किसी उपायों की जरूरत ही क्या है? मिसाल के तौर पर बोरवेल में बच्चों के गिरने की देश में कितनी घटनाएं हो चुकीं। कहीं जांबाज सहायता कर्मियों ने अपने अथक प्रयासों से बच्चे को बोरवेल से बाहर निकाल कर उन्हें बचाया तो कई जगह बच्चों को बचा पाना संभव नहीं हो सका। परंतु ऐसी खबरों का सिलसिला आज भी थमा नहीं है।
कहीं मेन होल टूटने या उसका ढक्कन न होने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के कारण लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है तो कभी इसी मेन होल की सफाई करते समय कोई सफाई कर्मचारी जहरीली गैस के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठता है। जगह जगह सड़कों पर बने गड्ढे दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। सांड़, गाय व आवारा कुत्ते तो देश के किसी न किसी भाग में रोजाना राहगीरों की जान लेते ही रहते हैं। इन्हीं आवारा पशुओं के कारण अनेक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। कभी कभी तो ट्रेन हादसों की भी झड़ी सी लग जाती है। कभी 30 अक्टूबर 2022 की गुजरात के मोरबी नामक शहर के मच्छु नदी में बने मोरबी पुल टूटने जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित होती है, जिसमें 141 लोगों की नदी मन बह जाने से मौत हो जाती है। कभी अस्पतालों में यहां तक कि बच्चों के अस्पतालों में आग लग जाती है, जिसमें जीवित शिशु झुलस कर मर जाते हैं। आॅक्सीजन की कमी या अभाव से भी लोगों के मरने की खबरें आती ही रही हैं। ऐसे और भी अनेक कारणों से ‘विश्वगुरु’ देश के वासी स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करते।
इंसान की जान से खिलवाड़ करने वाली सरकारी लापरवाही की ऐसी ही एक दिल दहलाने वाली घटना पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बरेली के निकट फरीदपुर- बदायूं मार्ग पर स्थित राम गंगा नदी पर निर्माणाधीन एक पुल पर हुई। पुल का रास्ता किसी अवरोध या संकेत के माध्यम से बंद नहीं किया गया था। उधर गूगल मैप ने भी इसी आधे अधूरे पुल का मार्ग बताया। उसी मार्ग पर शादी से लौट रहे तीन दोस्त अपनी बुलेरो गाड़ी से पूरी रफ़्तार से इसी विश्वास से चल पड़े कि चूंकि पुल का मार्ग खुला है और गूगल मैप भी यह रास्ता सुझा रहा है लिहाजा मार्ग चालू ही होगा। परन्तु वह अर्धनिर्मित पुल हवा में लटका हुआ था। नतीजतन तेज रफ़्तार बुलैरो नदी में जा गिरी जिससे तीनों दोस्तों की मौके पर ही मौत हो गई। अब जानकारी मिल रही है कि रामगंगा नदी पर पिछले साल सितंबर में संपर्क मार्ग बह जाने के बाद से ही यह पुल अर्धनिर्मित अवस्था में ही पड़ा हुआ है। अब यह भी बताया जा रहा है कि लोक निर्माण विभाग ने रामगंगा नदी पर निर्माणाधीन पुल से पहले किसी तरह का बैरियर या अवरोध नहीं लगाया था। इस हादसे का जिम्मेदार पुल निर्माण करने वाली कंपनी, इसके ठेकेदार व प्रशासन की लापरवाही को भी बताया जा रहा है। वाहनों को पुल पर आने से रोकने के लिए लोगों को सावधान करने की गरज से यहां कोई बोर्ड, संकेत या सूचना नहीं लगाई गई है अथवा किसी तरह का अवरोध नहीं लगाया गया था। यहां तक कि संबंधित विभाग ने गूगल मैप पर रूट में बदलाव भी नहीं करवाया था। अर्थात यह पुल अर्धनिर्मित है, इस बात की जानकारी गूगल पर अपडेट नहीं थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में लोक निर्माण विभाग के चार लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ है। पुलिस को दी गई तहरीर में गूगल मैप्स के क्षेत्रीय प्रबंधक को भी जिम्मेदार माना गया है। इसी तहरीर में आरोप है कि -लोक निर्माण विभाग के इन अधिकारियों ने जानबूझकर पुल के दोनों किनारों पर मजबूत बैरिकेडिंग, बैरियर या रिफ़्लेक्टर बोर्ड नहीं लगवाए, न ही रोड के कटे होने की सूचना के बोर्ड आदि लगवाए गए। बरेली में हुए इस हादसे के बाद जब खोजी पत्रकारों ने दूर दराज के ही नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली के कई ऐसे पुल व फ़्लाई ओवर व एक्सप्रेस वे ढूंढ निकाले जो इसी तरह के हादसों को न्यौता देते हैं। इनमें भी कई जगह वाहनों को रोकने के लिए कोई संकेत या अवरोध नहीं हैं। धर्म रूपी अफीम की चाशनी में डूबकर विश्व गुरु बनने के सपने लेते रहें।