Tuesday, July 9, 2024
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बेकसूर था, घर में मौजूदगी के बाद भी आरोपी बनाया

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  • आरोपी कैलाश भारती के घर बरी होने वालों का लगा रहा तांता

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: मलियाना दंगा कराने के आरोप में पकड़े गए 39 लोगों की रिहाई के बाद हिंदू बाहुल्य मोहल्लों में खुशी का माहौल है और लोग अदालत के फैसले का तहेदिल से स्वागत किया जा रहा है। एडवोकेट कैलाश भारती के घर बरी होने वालों का आने जाने वालों का तांता लगा रहा। दंगे के बाद भी मलियाना में हिंदू मुस्लिम सद्भाव बरकरार है।
कैलाश भारती ने बताया कि जिस वक्त दंगा हो रहा था उस वक्त वो घर में बैठा था।

छत से गोलियों की आवाज आ रही थी। बच्चे जब बाथरूम जाने की बात कर रहे थे तो बाथरूम के बजाय बर्तनों में लघुशंका कराई थी। उस दिन मैं कभी घर से बाहर नहीं निकला। मुझे नहीं पता चला कि दंगा हो गया। 22 मई 1987 को देशी शराब के ठेका लूटने की बात आई थी। मुसलमानों की तरफ से जो मुकदमा दर्ज कराया गया, उसमें मुझे भी जेल भेजा गया। मुझे जेल में साढ़े तीन महीने बंद रखा गया। एनएसए भी लगाया गया जो हाईकोर्ट से खारिज हो गया।

कैलाश भारती ने बताया कि गरीबों को नामजद किया गया। इन लोगों को कचहरी जाने के लिये पैसे तक नहीं थे। उन्होंने बताया कि न्याय की जीत हुई है। अदालत ने जो फैसला किया वो न्यायिक प्रक्रिया से गुजार कर किया गया। याकूब रात आये और बोले आपको बेगुनाह पकड़ा गया था, बरी होने के लिये बधाई। 1987 के बाद से माहौल बदला। बरी हुए जुगल किशोर ने बताया कि 36 साल बेगुनाह बनने के लिये संघर्ष किया।

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पड़ोसी होने के कारण मुझे बेवजह फंसाया गया। घर के लोग त्रासदी में दिन गुजार रहे थे। राकेश कुमार ने बताया कि मुसीबत में 36 साल कैसे गुजरे यह दिल को पता है। जिन मुसलमानों ने मुकदमे में नाम लिखवाया उनके घर उस वक्त भी आना जाना था और आज भी चल रहा है। अब राहत मिली है क्योंकि अदालत ने सही फैसला दिया है।

थका जरूर हूं, लेकिन टूटा नहीं: याकूब

36 साल पहले हुए मलियाना दंगे को लेकर सरकार ने कोई मदद नहीं की। अदालत से जो फैसला आया वो सही है। अब हम लोग हाईकोर्ट जाएंगे। पीएसी ने गोली तो नहीं मारी मुझे, लेकिन हाथ-पैर तोड़ दिये थे। हम लोगों ने अदालत में तमाम साक्ष्य पेश किये, लेकिन वो नाकाफी रहे। हम लोगों की लड़ाई में कोई जिम्मेदार व्यक्ति नहीं आया और न ही कोई पैसा लगाने आया। कहीं न कहीं गवाही में चूक हुई और फैसला मनमाफिक नहीं आया।

मलियाना निवासी याकूब ने टीपी नगर थाने में नामजद और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या, आगजनी और लूटपाट की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। याकूब का कहना है कि 23 मई 1987 को आंखों के सामने जो कत्लेआम पीएसी और पुलिस के साथ साथ दंगाइयों ने किया उसे पूरी दुनिया ने देखा था। 36 साल कोई कम नहीं होते और अकेले दम पर जितना बन पड़ा उतनी लड़ाई लड़ ली। इस कठिन लड़ाई में चूक होना भी स्वाभाविक है।

दुर्भाग्य की बात यह है कि इस बड़ी लड़ाई में जिम्मेदार लोगों ने साथ नहीं दिया और न ही किसी ने आर्थिक मदद भी की। चूंकि दंगे में मरने वाले ज्यादातर मजदूर तबके के लोग थे, इस कारण उनके परिजन भी आर्थिक तंगी के कारण अदालतों में गवाही देने नहीं जा पा रहे थे। इसका फायदा भी आरोपी पक्ष को मिलना स्वाभाविक था। याकूब ने बताया कि वो थका भले हो,

लेकिन टूटा नहीं है और आगे की लड़ाई भी खुद लड़ेगा। दुख इस बात का है सरकार और पुलिस की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। पुलिस ने मजबूत गवाही तक नहीं कराई। सामाजिक संस्थाओं ने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी और इस मामले को लेकर पीड़ितों की न तो आर्थिक और न ही कानूनी मदद की।

सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी दिखा

1987 के भीषण दंगे ने काफी दिनों तक सांप्रदायिक सद्भाव की धज्जियां उड़ा दी थी। हर कोई एक-दूसरे को शक की निगाहों से देखने लगा था। वक्त आगे बढ़ता रहा और दिलों पर लगे घाव भी भर गए थे। शनिवार को जब अदालत ने 39 आरोपियों को बरी किया तो दंगे में मारे गए लोगों की तरफ से मुकदमा लड़ने वाले याकूब ने दंगे के आरोपी कैलाश भारती के घर जाकर उनको बाइज्जत बरी होने की बधाई भी दी।

दंगे के आरोपी और रासुका में निरुद्ध रहे एडवोकेट कैलाश भारती ने बताया कि शनिवार की रात 11 बजे के करीब दंगों की पैरवी कर रहे याकूब घर आये और बधाई देते हुए कहा अदालत ने आपको सुकून दिया। याकूब ने बताया कि 36 साल पहले किन परिस्थितियों में दंगा हुआ वो बीते वक्त की बात है। मलियाना में सांप्रदायिक एकता है और लोग मिलजुल कर रहते हैं। अदालत का फैसला अपनी जगह है और इंसानी रिश्तों की अलग जगह है। दंगों के बाद जब कैलाश भारती जेल से बाहर आए तब भी दोनों समुदायों ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाकर रखा था।

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