एक बार नारद मुनि ने श्री हरी से प्रश्न किया, भगवन, माया क्या है? श्री हरी मुस्करा दिए और बोले, किसी दिन प्रत्यक्ष रूप से दिखा देंगे। संयोग से श्री हरी और नारद जी को मृत्यु लोक जाना पड़ा। रास्ते में भगवान श्री हरी को प्यास लगी तो नारदजी को पानी लाने भेजा। नारद जी पानी की खोज में बहुत दूर निकल गए।
बहुत थक गए थे खजूर के एक झुरमुट में सुस्ताने लगे कि गहरी नींद लग गई और एक सुंदर सपने में खो गए। सपने में वह किसी वनवासी के दरवाजे पर पहुंचे हैं। द्वार खटखटाया तो एक सुंदर युवती निकली। नारद ने अपना परिचय दिया और कन्या से विवाह का आग्रह किया। कन्या सहमत हो गई और नारद सुंदर पत्नी के साथ बड़े आनंदपूर्वक दिन बिताने लगे।
कुछ ही दिनों में उनका पुत्र भी हो गया। एक दिन भयंकर वर्षा हुई और बाढ़ आ गई। नारद अपने उस परिवार को लेकर बचने के लिए भागे। पर बचा नहीं पाए , बच्चा और पत्नी दोनों बाढ़ में बह गए। नारदजी तो बच गए, पर पूरा परिवार गंवा देने के दुख के कारण फूट-फूट कर रोने लगे। सोने और सपने में एक घंटा बीत चुका था। उनके मुख से रुदन की आवाज अब भी निकल रही थी।
भगवान नारद जी को ढूंढ़ते हुए खजूर के झुरमुट पर पहुंचे और उन्हें जगाया। नारद हड़बड़ा कर बैठ गए। भगवान ने उनके आंसू पोंछे और रुदन रुकवाया। भगवान ने पूछा, हमारे लिए पानी लाने गए थे सो क्या हुआ? नारद ने सपने में परिवार बसने और बाढ़ में बहने के दृश्य की चर्चा की और समय चले जाने के कारण क्षमा मांगी। भगवान ने कहा, देखा नारद! यही माया है। ऐसा असत्य जो सत्य लगता हो वही माया है।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा