नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिंदू धर्म में चैत्र अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके श्रद्धालु जाने अनजाने में किए गए पापों का नाश करते हैं। स्नान और ध्यान के बाद, वे देवों के देव महादेव और मां गंगा की पूजा करते हैं। इस दिन भगवान शनिदेव राशि परिवर्तन करेंगे, और साथ ही चैत्र अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण भी होगा।
इस दिन पूजा, जप-तप और दान-पुण्य करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। ऐसे मं चलिए जानते है चैत्र अमावस्या की सही तारीख, इसके महत्व और पूजा विधि के बारे में…
चैत्र अमावस्या तिथि
- चैत्र माह की अमावस्या तिथि आरंभ: 28 मार्च, शुक्रवार, रात्रि 07:55 मिनट पर
- चैत्र माह की अमावस्या तिथि समाप्त: 29 मार्च, सायं 04:27 मिनट पर
- सनातन धर्म में उदयातिथि मान है, इसलिए 29 मार्च को चैत्र अमावस्या मनाई जाएगी।
चैत्र अमावस्या पर शुभ योग
इस दिन ब्रह्म और इंद्र योग का संयोग बन रहा है। साथ ही दुर्लभ शिववास योग भी बन रहा है। इन शुभ योगों में गंगा स्नान और भगवान शिव की पूजा करने से परम पुण्यदायी फल मिलता है और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, पितृ दोष से भी छुटकारा पाने के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र अमावस्या वर्ष की पहली अमावस्या होती है और इसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन का व्रत इसलिए खास है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन से निराशा और नकारात्मकता को दूर करने में सहायक होता है। भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और चैत्र अमावस्या के व्रत के अंतर्गत, पापों से मुक्ति पाने के लिए गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं।
इसके अतिरिक्त, भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त करने के साथ-साथ, यह दिन मृत आत्माओं के लिए श्राद्ध कर्म करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। चैत्र अमावस्या का एक और महत्व यह है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से दुख और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। पूजा के माध्यम से व्यक्ति अपनी कुंडली में मौजूद पितृ दोष से भी मुक्ति पा सकता है। यह जानने के लिए कि आपकी कुंडली में यह दोष है या नहीं, किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श किया जा सकता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महाभारत के दौरान कर्ण की मृत्यु हो गई, और उसकी आत्मा को स्वर्ग भेज दिया गया, तो उसे नियमित भोजन नहीं दिया गया और इसके बजाय उसे सोना और जवाहरात दिए गए। उसने इंद्र से पूछा कि उसे सामान्य भोजन क्यों नहीं मिल रहा है। इस पर, भगवान इंद्र ने कहा कि उसने अपने पूरे जीवनकाल में दूसरों को सभी प्रसाद चढ़ाए, लेकिन अपने पूर्वजों के लिए कभी कुछ नहीं किया। कर्ण द्वारा अनुरोध किए जाने पर और यह पता लगाने के बाद कि वह उनके बारे में नहीं जानता था, भगवान इंद्र ने कर्ण को 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर लौटने का फैसला किया ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन प्रदान कर सके। इस 16 दिवसीय अवधि को पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है।