Tuesday, June 10, 2025
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Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी व्रत कब? जानें तिथि और नियम

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत पावन महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का प्रमुख साधन माना जाता है। पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन इन सभी में सबसे कठिन और पुण्यदायक मानी जाती है निर्जला एकादशी, जो ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आती है। इस एकादशी का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे “सभी एकादशियों का फल देने वाली” एकादशी कहा गया है। इस दिन व्रती जल तक का सेवन नहीं करता, इसलिए इसे ‘निर्जला’ कहा जाता है।

यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को अपने भीतर संयम, श्रद्धा और भक्ति का समुच्चय लाकर भगवान विष्णु की उपासना करनी होती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत को सबसे पहले भीमसेन ने किया था, जो अपने भोजन प्रेम के कारण अन्य एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। लेकिन जब उन्होंने इस निर्जला व्रत का पालन किया, तो उन्हें वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर फल की प्राप्ति हुई। इसलिए इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी न केवल कठिन तप का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में धैर्य, त्याग और आस्था के गहन भाव को जागृत करती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में वैकुण्ठधाम की प्राप्ति होती है।

कब है निर्जला एकादशी?

वैदिक पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी तिथि इस वर्ष 6 जून 2025 को देर रात 2:15 बजे से शुरू होकर, अगले दिन 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी। चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।

निर्जला एकादशी पर पानी पिया जा सकता है या नही

हालांकि इस दिन जल ग्रहण नहीं किया जाता, परन्तु कुछ स्थितियों में जल का प्रयोग मान्य है।

पूजा के समय आचमन हेतु

व्रतधारी व्यक्ति को पूजा के समय तीन बार आचमन करना होता है, इसमें थोड़ा-सा जल लिया जाता है।

दवा या शारीरिक कमजोरी की स्थिति में

यदि व्रतधारी अस्वस्थ है या कमजोरी अधिक हो जाए, तो थोड़ी मात्रा में जल पीना धर्मसम्मत माना गया है, लेकिन इसे व्रत का पूर्ण पालन नहीं माना जाता।

व्रत का पारण

अगले दिन द्वादशी तिथि के समय व्रत का पारण (उपवास का समापन) जल और फलाहार से किया जाता है।

जल ग्रहण करने का सही समय

  • यदि बहुत आवश्यक हो, तो जल सूर्यास्त के बाद नहीं, बल्कि दिन के समय, अधर्य या पूजा के समय लिया जा सकता है।
  • आचमन या भगवान को जल अर्पित करते समय थोड़ा-सा जल ग्रहण करना व्रत को भंग नहीं करता।

आध्यात्मिक महत्व

इस एकादशी को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन ने इस कठिन व्रत को रखा था और उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति हुई थी। यह व्रत न केवल संयम का अभ्यास कराता है, बल्कि यह माना जाता है कि इसे करने से सालभर की सभी एकादशियों का फल एकसाथ मिल जाता है, यहां तक कि अधिकमास की एकादशियों का भी। यही कारण है कि इसे साल की सबसे पुण्यदायक एकादशी माना जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य इंद्रियों पर संयम और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है। जो व्यक्ति साल भर की एकादशियाँ नहीं कर पाते, वे सिर्फ इस एक निर्जला एकादशी को करके पूरा पुण्य अर्जित कर सकते हैं। इसलिए इसे महाएकादशी भी कहा जाता है।

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