तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर सिंह, उनके वित्त सलाहकार- मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री- यशवंत सिन्हा और आरबीआई गवर्नर- एस. वेंकटरमणन ने मिलकर सोना गिरवी रखा था।
नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। राजीव गांधी को पता था कि 1989 में होने वाले चुनावों में उनकी सरकार वापस नहीं आने वाली। लेकिन एक आस तो हमेशा ही बनी रहती है। इसी ‘आस’ के चलते उन्होंने या उनके वित्त मंत्रालय ने कोई कदम नहीं उठाए। ये कहानी है उस उम्मीद की। उम्मीद जो कांग्रेस को थी कि ‘लाइसेंस परमिट’ राज देश का विकास करेगा। आस जो राजीव गांधी को थी कि बिना कुछ किए ही देश की अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन आने वाले हैं। उम्मीद जो गवर्नर एस. वेंकटरमणन को थी कि सोना सबसे अच्छा विकल्प है। उम्मीद जो नरसिम्हा राव को थी कि उनका वित्त मंत्रालय कुछ करेगा और उम्मीद जो मनमोहन सिंह को थी कि उदारीकरण ही अंतिम विकल्प है।
आज हम जानेंगे कहानी उस दौर की जब भारत को अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था। क्यों? क्या हुआ इस सोने का? इन सवालों का जवाब जानने के लिए, चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं।