Wednesday, July 16, 2025
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आधुनिक असुरों का विनाश कब?

Sanskar 8

शिवानंद मिश्रा

इतिहास में हमने ताड़कासुर, त्रिपुरासुर , महिषासुर, रक्तबीज, रावण, मेघनाद आदि ऐसे बड़े-बड़े राक्षस देखे हैं जिन्हें ऐसा वरदान था कि मानो वे अमर ही हो गए हों और उनका वध असंभव है। लेकिन, इतिहास गवाह है कि… कोई भी अमरता का वरदान किसी राक्षस की रक्षा नहीं कर पाया और अंतत: उनका विनाश हो गया। इसीलिए, दुनिया भर से इस असुर का भी विनाश निश्चित है। लेकिन, कब और कैसे….वो समय के गर्भ में है।

दुनिया के दो हिस्से होते हैं, एक सच की दुनिया और एक खयालों की दुनिया। अधिकतर लोगों के लिए सच की दुनिया काफी होती है। वे उसमें जीते मरते, इश्क करते, परेशान होते है फिर भी जीते रहते हैं। वे कभी कभी खयालों की दुनिया में थोड़ी डुबकी लगाते हैं…वे अपनी जिÞंदगी में व्यस्त रहते हैं खुश या दुखी, जो भी हों, इसी दुनिया के अंदर रहते हैं। एक दुनिया होती है खयालों की। बड़ी सम्मोहक, बड़ी तिलिस्मी, बहुत खूबसूरत। ये दुनिया सबको अच्छी नहीं लगती क्योकि ये दुनिया खुद ही बनानी पड़ती है, ये दुनिया वैसी ही होगी जैसी आप इसे बना पाएँगे। इस दुनिया के शहर, इस दुनिया की सड़कें, इस दुनिया के रंग सब खुद से रचने होते हैं। एक बुनियादी ढाँचा बनाना होता है,जैसा आजकल हमने, आपने अपने आस पास फुर्सत के क्षणों में बना रखा है।पर ये भी एक सच्चाई है कि सच्चाई की दुनिया हमेशा से ही प्रभावी और जीवन के करीब होती है।

सनातनी भगवान राम, भगवान कृष्ण ,नरसिंह भगवान, वराह देव आदि को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। हम न सिर्फ उन्हें अवतार मानते हैं बल्कि रोज उनकी पूजा भी करते हैं। इन हमारे इन सभी अवतारों का वर्णन हमारे अलग-अलग धर्मग्रंथों में विस्तार से किया गया है। लेकिन, अलग-अलग होने के बावजूद सभी में एक बात सामान्य रूप से वर्णित है कि ‘जब राक्षसों के अत्याचार हद से ज्यादा बढ़ गए और लगने लगा कि अब सृष्टि का विनाश हो जाएगा, तब प्रभु ने अवतार लेकर सृष्टि की रक्षा की।’

इसका मतलब ये निकलता है कि संभावित रास्ता बंद हो जाने के बाद ही प्रभु ने अवतार लिया। उदाहरण के तौर पर रामायण को ही लीजिए। रावण बहुत बड़ा राक्षस था लेकिन वो भगवान राम के समकालीन नहीं था। बल्कि, रावण ने तो भगवान राम के दादा जी अर्थात राजा अज से भी युद्ध लड़ने को आया था। जिनकी तीसरी पीढ़ी में भगवान राम का जन्म हुआ था। इसका तात्पर्य ये निकलता है कि… दो पीढ़ियों या फिर शायद इससे भी ज्यादा समय तक रावण का अत्याचार जारी रहा था।

तथ्य तो ये भी बताते हैं कि… इतने समय तक रावण ने अनेकों ऋषि-मुनियों की हत्याएं कीं, व्यभिचार किया, यज्ञ एवं हवन कुंड आदि नष्ट कर दिए। लेकिन, इतना होने के उपरांत भी भगवान विष्णु ने अवतार नहीं लिया। बल्कि, उन्होंने समय आने पर ही अंतिम विकल्प के रूप में या कहें कि पूरी तैयारी करने के बाद ही अवतार लिया…! क्योंकि, हर युग में राक्षस यूं ही अत्याचार करना शुरू नहीं कर देते थे बल्कि पहले वे पहले अपनी तैयारी करते थे। तैयारी मतलब कि… पहले वे तपस्या करते थे और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र एवं वरदान जुटाते थे तदुपरांत ही निर्भीक होकर अत्याचार करते थे। इसीलिए, देवताओं को भी उनसे निपटने हेतु पहले उन वरदानों की काट खोजनी होती थी तदुपरांत तैयारी कर उनपर धावा बोला जाता था।

इतिहास अथवा किसी भी धार्मिक ग्रंथ में ऐसा कहीं नहीं है कि कुछेक घटना को उजागर कर लोग प्रभु श्री हरि को गाली देने लगे हों कि जगत पालन तो आपका काम है तो फिर आप हमें बचा क्यों नहीं रहे हों? क्या आपको आॅस्कर चाहिए जो आप आराम से क्षीर सागर में बैठ कर चुपचाप सबकुछ होते हुए देख रहे हो? बल्कि, नियम ये था कि जब तक अवतार नहीं हो जाता है तबतक अपने जान-माल की हिफाजत करना स्वयं की ही जिम्मेदारी मानी जाती थी। तभी, हमारे ऋषि महर्षि एवं आमजनों ने सिर्फ भगवान के अवतार की आशा न करते हुए अपने तपोबल से विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र जुटा रखे थे जो प्रवास के दौरान उन्होंने भगवान राम को सुपुर्द कर दिए थे ताकि रावण का विनाश हो सके। इसीलिए, जो भी प्रबुद्ध जन हर घटना पर उतावले होकर इन्हें-उन्हें गालियां देने लगते हैं और उन्हें उनका कर्तव्य याद दिलाने लगते हैं उन्हें एक बार अपने धर्मग्रंथों को जरूर पढ़ना चाहिए कि इतिहास में राक्षसों का विनाश कैसे किया गया है?

इन सब में सबसे बड़ी बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि… ये असुर-आसुरी आदि तो बहुत टुच्चे हैं। इतिहास में हमने ताड़कासुर, त्रिपुरासुर , महिषासुर, रक्तबीज, रावण, मेघनाद आदि ऐसे बड़े-बड़े राक्षस देखे हैं जिन्हें ऐसा वरदान था कि मानो वे अमर ही हो गए हों और उनका वध असंभव है। लेकिन, इतिहास गवाह है कि… कोई भी अमरता का वरदान किसी राक्षस की रक्षा नहीं कर पाया और अंतत: उनका विनाश हो गया। इसीलिए, दुनिया भर से इस असुर का भी विनाश निश्चित है। लेकिन, कब और कैसे….वो समय के गर्भ में है।

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