Saturday, July 27, 2024
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क्यों ठिठक गया ‘इंडिया’ का कारवां?

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Nazariya 22


Anil Jain 4चार महीने पहले बने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया में अब गजब का सन्नाटा छाया हुआ है। किसी को पता नहीं है कि चार महीने पहले बने इस गठबंधन में क्या हो रहा है। इसके गठन के सिलसिले में जून में हुई पटना की बैठक के बाद से अचानक जो तेजी आई थी और हर महीने बैठकों का जो दौर शुरू हुआ था वह थम गया है। विपक्षी गठबंधन की ओर से कोई बड़ा तो क्या, छोटा साझा कार्यक्रम भी नहीं हुआ है। हां, इस गठबंधन के नेताओं की सार्वजनिक रूप से परस्पर विरोधी बयानबाजी और गठबंधन से अलग होने के संकेत देने का सिलसिला जरूर जारी है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन की ज्यादातर पार्टियां अलग-अलग लड़ने की तैयारी करते हुए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर रही हैं। इस गठबंधन में शामिल विपक्षी दलों के नेता आखिरी बार 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में मिले थे। उसके बाद से कोई मीटिंग नहीं हुई है। कहा गया था कि गठबंधन के नेताओं की अगली मीटिंग दिल्ली में होगी लेकिन कब होगी, यह आज तक तय नहीं हुआ है। ‘इंडिया’ के सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि गठबंधन की पहली साझा रैली नागपुर में होगी। लेकिन उस दिशा में भी कोई प्रगति नहीं हुई है। महाराष्ट्र में पहले से बने विपक्षी गठबंधन ‘महा विकास अघाड़ी’ के नेताओं की भी कोई बैठक नहीं हुई है। उनकी पहले से साझा रैलियां हो रही थीं लेकिन हैरानी की बात है कि उन रैलियों का सिलसिला भी अब थम गया है। शरद पवार की पार्टी एनसीपी में टूट के बाद ‘महा विकास अघाड़ी’ की कोई रैली नहीं हुई है।

मुंबई की बैठक में ‘इंडिया’ की जो समन्वय समिति बनी थी उसमें सीपीएम ने अपना कोई प्रतिनिधि शामिल करने से इनकार कर दिया है। इस समन्वय समिति की पहली बैठक 13 सितंबर को दिल्ली में शरद पवार के घर पर हुई थी। उसमें कोई खास फैसला तो नहीं हुआ लेकिन बताया गया था कि उस समय सीटों के बंटवारे के बारे में कुछ बातचीत हुई थी। उस मीटिंग के बाद से सीटों के बंटवारे की कहीं भी कोई चर्चा नहीं है। सो, अब स्थिति यह है कि विपक्षी गठबंधन की चौथी बैठक के बारे में कोई सूचना नहीं है। पहली साझा रैली के बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं है और सीट बंटवारे के बारे में भी कोई बात सुनाई नहीं दे रही है। विपक्षी नेता कह रहे हैं कि हर बात मीडिया के सामने करने की जरूरत नहीं है। उनका कहना है सीट बंटवारे को लेकर चुपचाप सब कुछ हो रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि कुछ नहीं हो रहा है। कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है और उसने इन पांचों राज्यों में किसी सहयोगी पार्टी से तालमेल को लेकर कोई बात नहीं की है, बल्कि यूं कहें कि वह करना भी नहीं चाहती है।

बताया जा रहा है कि तेलंगाना में कम्युनिस्ट पार्टियों, मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी को कुछ सीटें देने की बात थी, लेकिन कांग्रेस ने इस पर चुप्पी साधी है। ‘इंडिया’ की समन्वय समिति के अघोषित प्रमुख के तौर पर काम कर रहे एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार चाहते थे कि पांच राज्यों में विपक्ष एक होकर चुनाव लड़े। पवार का कहना था कि अगर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहे पांच राज्यों के चुनाव में विपक्ष बिखरा दिखेगा और अलग-अलग लड़ेगा तो लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ हर सीट पर एक साझा उम्मीदवार देने के संकल्प का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। पवार चाहते थे कि चुनावी राज्यों में जहां भी जिस पार्टी का थोड़ा बहुत भी आधार है उसे प्रतीकात्मक रूप से ही सही, लेकिन कुछ टिकट देकर एकजुटता बनानी चाहिए। पवार का कहना बिल्कुल सही है लेकिन उनकी इस बात को कांग्रेस में सुनने वाला कोई नहीं है। चुनावी राज्यों के कांग्रेसी क्षत्रपों अशोक गहलोत, कमलनाथ, भूपेश बघेल आदि की भी इसमें कोई रुचि नहीं है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अकेले ही भाजपा को हराने में सक्षम हैं। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में भी ऐसे ही अति आत्मविश्वास चलते अकेले चुनाव लड़ा था। जब नतीजे आए तो वह बहुमत से दूर रही थी और उसे कुछ निर्दलीय विधायकों के अलावा बहुजन समाज पार्टी के दो और समाजवादी पार्टी के एक विधायक का समर्थन लेना पड़ा था।

तेलंगाना के कांग्रेसी नेता भी कर्नाटक में कांग्रेस की जीत और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिले समर्थन से अति आत्मविश्वास के शिकार हैं और उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस अपने अकेले के दम पर ही के. चंद्रशेखर राव की पार्टी को चुनौती देने में सक्षम है। इसी अति आत्मविश्वास के चलते वहां कांग्रेस और वाईएस शर्मिला की वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के बीच गठबंधन की चर्चा सिरे नहीं चढ़ पाई है, जबकि कुछ दिनों पहले तक कहा जा रहा था कि वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का कांग्रेस में विलय हो जाएगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में शामिल जरूर है, लेकिन वह गठबंधन राजनीति की आवश्यकता को अभी भी स्वीकार नहीं कर पाई है। उसकी यह मानसिकता ही इंडिया गठबंधन के कारवां को आगे बढ़ने में बाधक बनी हुई है।

यही स्थिति बनी रही तो भले पांच में दो-तीन राज्यों में वह जीत जाए, लेकिन पांच साल पहले 2018 में भी वह मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को हरा कर अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई थी लेकिन 2019 के लोकसभा में चुनाव में वह इन तीनों राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से महज तीन सीटें ही जीत सकी थी।


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