Saturday, April 20, 2024
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आखिर एनजीटी नगरायुक्त से नाराज क्यों?

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  • भारी जुर्माना लगाने की तैयारी, निगम द्वारा आखिर कैसे उड़ाई जा रही एनजीटी नियमों की धज्जियां?

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: नगर निगम पर आखिर एनजीटी के सख्त तेवर क्यों है कि वह भारी जुर्माना लगाने की तैयारी में है। एक महीने के अंदर प्रगति रिपोर्ट ईमेल के जरिए भेजने के साथ ही नगरायुक्त पर सख्त टिप्पणी करते हुये एनजीटी कोर्ट ने आगामी सुनवाई में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित रहने को कहा। शायद ही किसी कोर्ट ने किसी नगरायुक्त पर इतनी तल्ख टिप्पणी की हो जितनी मेरठ के नगरायुक्त पर की। कोर्ट में बहस के दौरान एनजीटी के अधिवक्ता की तरफ से यहां तक कह दिया गया कि नगरायुक्त की कुर्सी को क्यों न कूड़े के ढ़ेर पर डलवा दी जाये।

बहस के दौरान निगम के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुये ओर फंड की मांग की गई तो एनजीटी की तरफ से आगामी फंड जारी करने पर आपत्ति दर्ज कराते हुये कहा कि फंड आपका पेट भरने को या फिर बेगमपुल के पेट्रोल पंप पर उड़ाने के लिये दिया जाये। बहस के दौरान इतनी तल्ख टिप्पणी की गई। शायद ही प्रदेश या देशभर में किसी नगरायुक्त के खिलाफ किसी कोर्ट में बहस के दौरान हुई होगी। आखिर एनजीटी कोर्ट नगर निगम व नगरायुक्त से नाराज क्यों है? उसके मुख्य कारण हो सकते हैं।

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देश में राष्टÑीय हरित अधिकरण की स्थापना सन् 18/10/2010 को इस उदेश्य से की गई थी कि हाईकोर्ट में चलने वाले इस तरह के वादों की संख्या कम हो सके और उच्च न्यायालय का भार कुछ कम हो सके। जिसका प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण बचाओ एवं वन संरक्षण को बढ़वा दिया जाये उस क्षेत्र में एनजीटी विशेषकर ऐसे मामलों का निस्तारण करें, जिसमें समस्याएं आ रही हैं। इसमें सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 के अंतर्गत निर्देशित किया गया कि घरों से निकलने वाला गीला व सूखा कूड़ा घर से ही प्रथक-प्रथक किया जायेगा।

जिसके लिये गीला कचरा के लिये हरा डस्टबिन एवं सूखा कूड़े के लिये नीला डस्टबिन की व्यवस्था की गई। साथ ही जो वाहन डोर-टू-डोर कूड़ा एकत्रित करें वह भी अलग-अलग एकत्रित करें। जिसके लिये निगम के द्वारा बीबीजी कंपनी को एक वर्ष पूर्व टेंडर दिया गया और जिसके बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं आया। वहीं, दूसरी तरफ एक वर्ष में रेवेन्यू के रूप में 58 लाख 78 हजार रुपये का कलेक्शन दिखाया और खर्च के नाम पर निगम से करीब 6 करोड़ रुपये खर्चा दर्शाया गया बताया जा रहा है।

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हालांकि प्रभारी मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी एवं पशु कल्याण अधिकारी डा. हरपाल सिंह ने रेवेन्यू के रूप में 58 लाख 78 हजार की जगह एक करोड़ रुपये का रेवेन्यू प्राप्त होना बताया। वहीं बीबीजी कंपनी ने छह करोड़ रुपये खर्च के नाम पर निकाले उस पर संतोषजनक जवाब नहीं दिया। बस इतना बताया कि फाइल आॅडिट में गई है। जिसमें अभी तक फाइल आॅडिट से वापस नहीं आना बताया जा रहा है।

तमाम ऐसे मामले नगर निगम में एनजीटी से जुडेÞ हैं, जिसमें रेवेन्यू कम व खर्च अधिक दिखाया गया है। कोर्ट में सुनवाई के दौरान एनजीटी के अधिवक्ता की तरफ से यह भी कहा गया कि जो कूड़ा निस्तारण के बाद मेटेरियल तैयार हुआ। उससे कितना रेवेन्यू प्राप्त हुआ। जिसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा सका। कुछ ऐसे बिंदू भी सामने आ रहे हैं। जिसको लेकर भी एनजीटी निगम व नगरायुक्त पर सख्त दिखाई दे रहा है।

गीला एवं सूखा कूड़ा एकत्रित करने को रखे गये थे डस्टबिन, आज दिखाई नहीं देते

सूखा कूड़ा व गीला कूड़ा अलग-अलग कैसे डाला जा सकेगा। जब महानगर में हरे व नीले रंग के जो डस्टबिन रखवाए गये थे। वह आज दिखाई नहीं देते, वह चोरी हो गये या टूट गये। उसका कोई हिसाब व रिकॉर्ड नगर निगम से पूछे जाने पर नहीं बताया जाता।

गीला और सूखा कूड़ा डोर-टू-डोर किया जाना चाहिए

नियम यह है कि जो सूखा व गीला कूड़ा पृथक्करण किया जायेगा वह घर से ही किया जायेगा न कि दूसरी जगह पर ले जाकर, लेकिन अक्सर देखा गया है कि एक ही गाड़ी में दोनो प्रकार का कूड़ा एकत्रित किया जाता है। वह लोहिया नगर या अन्य जगह पर ले जाकर अलग-अलग कराया भी जाता है तो उस पर अलग से खर्च दिखाया जाता है। जिसके चलते कूड़ा निस्तारण पर डबल खर्च कर दिया जाता है।

वहीं कुछ ऐसा कूड़ा भी होता है। जिसमें लकड़ी एवं प्लास्टिक एवं लोहे का सामान होता है। उसे प्रथक कर कबाड़ी आदि को बेच दिये जाने का भी नियम है। ताकि इस तरह का ठोस अपशिष्ठ गीले कूडेÞ में न मिल सके। वहीं कांच आदि भी गीले कूडेÞ सब्जी आदि में न मिल सके, लेकिन सभी तरह का कूड़ा एक ही वाहन में एकत्रित किया जाता है और उसे पृथक्करण के नाम पर अलग से खर्च दिखाया जाता है।

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आखिर काम्पेक्टर का कार्य क्या होता है। वह सूखे कूड़े व गीले कूडेÞ को अलग-अलग होने के बाद वह गाड़ी में डालता है, लेकिन काम्पेक्टर से सूखे व गीले कूडेÞ को एक ही साथ वाहन में भर दिया जाता है। काम्पेक्टर की खरीद पर भी नगर निगम द्वारा काफी रुपया खर्च किया गया। बावजूद उसके सही तरह से कूडेÞ का पृथक्करण नहीं किया जाता। तमाम ऐसे सवाल हैं कि जिन पर एनजीटी नगर निगम पर सख्त दिखाई पड़ रहा है। चर्चा है कि यदि इसी तरह से लापरवाही बरती जाती रही तो बड़ा जुर्माना नगर निगम पर लगना तय माना जा रहा है।

प्रदेश सरकार के संयुक्त सचिव ने एनजीटी की सख्त टिप्पणी पर लिया संज्ञान

दिल्ली की एनजीटी कोर्ट में 9 मई को हुई बहस के दौरान जो तल्ख टिप्पणी एनजीटी कोर्ट ने प्रदेश सरकार एवं निगम के नगरायुक्त को लेकर की और मामले में प्रदेश सरकार से भी जवाब तलब किया। इस मामले में एनजीटी कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद प्रदेश सरकार के संयुक्त सचिव ने कमिश्नर, जिलाधिकारी एवं नगरायुक्त को पत्र जारी कर मामले की संपूर्ण जानकारी मांगी है। ताकि प्रदेश सरकार एनजीटी कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रख सके।

प्रदेश सरकार के संयुक्त सचिव उत्तर प्रदेश शासन कल्याण बनर्जी ने 12 मई 2023 को एक पत्र मंडलायुक्त मेरठ, जिलाधिकारी मेरठ, नगरायुक्त मेरठ को जारी किया। जिसमें नगर विकास अनुभाग-5 विषय-मा. राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई दिल्ली में योजित ओए संख्या-108/2023 लोकेश खुराना/उत्तर प्रदेश सरकार एवं नगर निगम मेरठ को आदेश संख्या-09/05/2023 के अनुपालन के संबध में पत्र जारी किया।

जिसमें अवगत कराया गया कि जो एनजीटी में मामला चल रहा है उसका अवलोकन करें। साथ ही यथाशीघ्र मामले से शासन को भी अवगत कराएं। जिसमें प्रदेश सरकार अभी तक इस पूरे प्रकरण की जानकारी नही है। अतएवं शीर्ष प्राथमिकता/व्यक्तिगत ध्यान देकर इस मामले में गंभीरता से देखें। इस संबंध में एक प्रतिलिपि राज्य मिशन निदेशक स्वच्छ भारत मिशन नगरीय, नगर निकाय निदेशालय उत्तर प्रदेश लखनऊ को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रेषित की गई है।

शासन से जारी इस पत्र ने जहां एक तरफ नगरायुक्त की मुश्किल बढ़ाई हुई हैं। वहीं, इस मामले में मंडलायुक्त एवं डीएम की मुश्किलों को भी बढ़ा सकता है। नगर निगम में हुई इस बडी धांधली के मामले में जहां एक तरफ एनजीटी कोर्ट ने नगरायुक्त पर तल्ख टिप्पणी की है तो वहीं अब डीएम व मंडलायुक्त को भी पत्र जारी होते ही डीएम व कमिश्नर की मुश्किल बढ़ सकती है।

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