Friday, June 20, 2025
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क्यों नहीं किया जा रहा ध्वस्तीकरण ?

  • एमडीए तान्या मीट प्लांट की बिल्डिंग को घोषित कर चुका है अवैध, फिर भी नतीजा सिफर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: तान्या मीट प्लांट की बिल्डिंग को एमडीए अवैध घोषित कर चुका हैं, लेकिन इसके बाद भी उसका ध्वस्तीकरण क्यों नहीं किया जा रहा है? इसके मानचित्र को एमडीए बोर्ड की बैठक भी रिजेक्ट कर चुकी हैं। फिर भी इसमें कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही हैं? यह बड़ा सवाल है। दरअसल, पिछले चार वर्षों से तान्या मीट प्लांट अवैध तरीके से संचालित किया जा रहा था।

शिकायत हुई तो एमडीए ने इसका संज्ञान लिया था। तब इस पर सील की कार्रवाई कर दी गई थी। बाद में तान्या के मालिकों ने कहा था कि प्लांट में बड़े स्तर पर मीट रखा है, जो सील के चलते खराब हो जाएगा। इसके लिए मीट प्लांट को खोलने की मांग की थी। बाद में एमडीए अधिकारियों ने गोदाम में स्टॉक लगे मीट को निकलवाया था, लेकिन इसके बाद से ही इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पायी।

चार वर्ष का लंबा समय निकल गया, लेकिन ध्वस्तीकरण भी नहीं हो पाया। अब फिर से यह मामला चर्चा में इस वजह से है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अवैध मीट प्लांट को लेकर सख्त है, फिर इनकी बिल्डिंग पर बुलडोजर क्यों नहीं चलाया जा रहा है। तान्या का मामला हाईकोर्ट में भी चल रहा है। शमन प्रक्रिया पर रोक हैं, फिर भू-उपयोग परिवर्तन कर मीट प्लांट बनाया गया है, जिसके चलते मानचित्र स्वीकृति नहीं मिल पा रही है।

शमन प्रक्रिया पर रोक से एमडीए की अर्थव्यवस्था बिगड़ी
शमन प्रक्रिया बंद होने से मेरठ विकास प्राधिकरण (एमडीए) की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गई है। कभी प्रति माह शमन प्रक्रिया से एमडीए को रिकॉर्ड दस करोड़ रुपये का राजस्व भी मिला है। इसके अलावा प्रत्येक माह तीन से चार करोड़ रुपये मिलना तो शमन प्रक्रिया से आम बात थी, लेकिन पिछले छह माह से शमन प्रक्रिया पर हाईकोर्ट की रोक हैं, जिसके बाद एमडीए की अर्थ व्यवस्था धड़ाम हो गई है। एमडीए को मानचित्र स्वीकृति करने से भी आर्थिक लाभ होता हैं, वहीं नई कॉलोनियों के तलपट मानचित्र स्वीकृति करने से भी, लेकिन पिछले पांच वर्षों से शहर में कोई नई बड़ी कॉलोनी एमडीए से स्वीकृत ही नहीं हुई है। क्योंकि रियल एस्टेट मंदी के दौर से गुजर रहा है। बिल्डरों के मकान बने खड़े है बिक नहीं रहे। प्लाट कुछ बिक जाते हैं, लेकिन मकानों की तो हालत खराब हैं। जो फ्लैट के टावर बनाये गए हैं, वह भी नहीं बिक रहे हैं। खुद एमडीए के समाजवादी आवास बने खड़े हैं, जिस पर एमडीए 150 करोड़ रुपये खर्च कर चुका हैं, लेकिन एमडीए को इन मकानों का कोई खरीददार नहीं मिल रहा है। प्रॉपर्टी नोट बंदी के बाद से ही गरत में चली गई, जिसके बाद से रियल एस्टेट का कारोगार उठ नहीं पाया। रहा-सहा दम तोड़ गया कोरोना काल में। उम्मीद की जा रही थी कि यह कारोबार उठेगा, लेकिन यहां तो रियल एस्टेट का कारोबार करने वाले बिल्डरों को बड़ा झटका लगा है। जब कॉलोनी विकसित नहीं होगी, तो उनका तलपट मानचित्र भी स्वीकृत नहीं होगा, इसलिए एमडीए को मानचित्र स्वीकृत कराने के लिए तलपट मानचित्र स्वीकृति के लिए जो 1240 रुपये प्रति मीटर दिया जाता है, वह बिल्डर स्वीकृत नहीं करा रहे हैं। बड़े बिल्डर कॉलोनी काटने से बच रहे हैं, क्योंकि प्रॉपर्टी धड़ाम है। इस तरह से एमडीए की अर्थ व्यवस्था भी गड़बड़ा गई है। शमन से एमडीए की आमदनी होती थी, जो फिलहाल नहीं हो पा रही है। इसमें भी बड़ा नुकसान एमडीए का हो रहा है। राज्य सरकार ने तो शमन 2021 योजना लेकर आयी थी, जिससे एमडीए को बड़ा आर्थिक लाभ होने वाला था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद से शमन प्रक्रिया बंद हैं। एमडीए कर्मचारियों को प्रत्येक माह दो करोड़ रुपये वेतन बटता है। अब आगे चलकर एमडीए कर्मियों का वेतन निकालना भी मुश्किल होगा।

कहा जा रहा है कि हाईकोर्ट में मानचित्र स्वीकृति के लिए आग्रह किया गया हैं, लेकिन फिलहाल एमडीए हाईकोर्ट में बोर्ड बैठक द्वारा रिजेक्ट किये गए प्रस्ताव की जानकारी देगा। इसके अलावा भी हापुड़ रोड पर कई मीट प्लांट अवैध तरीके से चल रहे हैं, इसकी शिकायत भाजपा नेता राहुल ठाकुर ने की हैं।

उनका कहना है कि कई बड़े लोग है, जो अवैध तरीके से मीट प्लांट चला रहे हैं, जिन पर नगर निगम के अफसर भी मेहरबान है। इनकी जांच कराने की मांग की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी इसकी शिकायत भेजी गई हैं, ताकि अवैध तरीके से मीट प्लांट चलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो सके।

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