Home संवाद कन्हैया लगा पाएंगे बिहार में कांग्रेस की नैया पार

कन्हैया लगा पाएंगे बिहार में कांग्रेस की नैया पार

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Samvad 49

बिहार की अधिसंख्य आबादी युवा है। लालू-नीतीश का दौर थम चुका है। इस चुनाव के बाद सत्ता की बागडोर युवाओं के हाथ में आने की पूरी संभावना है। लेकिन, किसके हाथ? पहली नजर में, नेता विपक्ष के तौर पर तेजस्वी यादव का नाम युवा नेता के तौर पर उभर कर सामने आता है। लेकिन, क्या यह इतना आसान होगा? नहीं। क्योंकि अब बिहार में युवा नेताओं की बहार है। और सिर्फ पारिवारिक विरासत और 40 साल पुराने राजनीतिक समीकरण (माय) के साथ अकेले दम पर सत्ता में आने का ख्वाब, ख्वाब ही न बना रहा जाए। फिर, उपाय क्या है?

बिहार में यह पीढ़ियों को सत्ता हस्तांतरण का वक्त है। सत्ता चाहे जिसे मिले, वह नई पीढी को मिलेगी। नई पीढी से बनेगी। नई पीढी से चलेगी। तेजस्वी यादव अकेले युवा दावेदार नहीं है। चिराग है, कन्हैया की पदयात्रा भितिहरवा आश्रम से शरू हो चुकी है। अखिलेश प्रसाद सिंह को बैकग्राउंड में जाना ही होगा। यह कांग्रेस के हित में भी होगा। पीके की तैयारी मुक्कमल है। पीके के साथ बिहार का बुद्धिजीवी-पढ़ा-लिखा वर्ग साथ आता दिख रहा है। प्रशांत किशोर ने बिहार उपचुनाव के जरिये अपनी ताकत (10 फीसदी वोट) दिखा दी है। उन्हें हलके में लेने वालों को यह समझना होगा कि चिराग पासवान 4-5 फीसदी वोट की राजनीति कर के मोदी के हनुमान बन जाते है। तो जो शख्स अपने पहले ही चुनाव (उपचुनाव) में 10 फीसदी वोट ले आए, क्या उसे राजनैतिक रूप से हाशिये पर देखने की गलती की जा सकती है? अब यह कहना कि कोई फलां का बी टीम है, सी टीम है, इसका राजनीति में कोई अर्थ नहीं है, सिवाए जीत और हार के याकि किसी को जीता देने या हरा देने की क्षमता के। इस लिहाज से प्रशांत किशोर भी तेजस्वी यादव के लिए एक मजबूत चुनौती पेश कर रहे हैं।

फिर मुकेश सहनी है। वे बस थोड़ा कन्फ्यूज्ड है, लेकिन युवा वर्ग के प्रतिनिधि हैं। एक खास वोट बैंक है उनके पास। हालांकि, वे गठबंधन और उम्मीदवार का चयन करने में तकरीबन हर बार गलती करते है और उसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ता है। फिर भी, जीतने से अधिक उनके पास हराने की ताकत हर चुनाव में रही है। बोचहा, कुढनी उपचुनाव में मुकेश सहनी अपनी इस ताकता को दिखा चुके है। इधर, भाजपा के पास सम्राट चौधरी है। सम्राट युवा है और वे कोइरी-कुशवाहा बिरादरी से आते हैं। एक ही दिक्कत है कि उपमुख्यमंत्री होने के बाद भी वे अपनी एक अलग मुक्कमल पहचान/छवि नहीं बना पा रहे हैं। भाजपा आमीन आगे बढ़ने के लिए उन्हें दल की सीमा से बाहर जा कर कुछ ऐसा करना होगा, जिससे उनकी एक स्वतंत्र छवि बन सके। उपमुख्यमंत्री रहते हुए भी अगर वे इस मौके का फायदा न उठा पाए, तो यह उनकी अपनी गलती होगी। हालांकि, युवा और ओबीसी चेहरा होने के कारण भाजपा ने अभी तक उन्हें फ्रंटफूट पर खेलने का मौका दिया है। फिर भी, व्यक्तिगत तौर पर मैं मानता हूँ कि शाहनवाज हुसैन अगर बिहार में एक्टिव होते तो भाजपा एके लिए कुछ बेहतर कर पाते। उनके साथस अबसे बड़ी खासियत है कि वे मुसलमान है, फिर भी अपनी एक उदार छवि के कारण खुद को सबके बीच स्वीकार्य बना पाते हैं। मसलन, अपने चंद महीनों के मंत्री वाले कार्यकाल में उन्होंने बिहार के औद्योगिक विकास के लिए काफी उम्मीदें जगाई थी। बाकी बिहार भाजपा में अब भी ‘बूढ़ों’ का कब्जा है। भाजपा को इससे निकलना होगा। तो, इतने युवाओं के बाद भी युवा बिहार अपने लिए युवा राजनीति नहीं चुन पाएगा तो यह दुर्भाग्य ही होगा। वैसे मुझे उम्मीद है, युवा बिहार अपने लिए युवा नेतृत्व ही चुनेगा।

यह वक्त तेजस्वी यादव के लिए सचेत हो जाने का है। कन्हैया कुमार एक्टिव हुए हैं। प्रशांत किशोर पहले से एक्टिव है। निशांत कुमार की एंट्री तकरीबन तय है। ऐसे में तेजस्वी इनमें से किसी को हलके में लेने की गलती करंगे तो शायद वे भी बहुत लंबे समय तक आडवानी जी (पीएम इनवेटिंग) की तरह कहीं सीएम इन वेटिंग ही न बने रह जाए। माई और दाई जैसे पुराने पड़ चुके समीकरण के सहारे अब कोई बिहार का सर्वमान्य नेता बन पाएगा, मुझे शंका है। तेजस्वी यादव अभी भी 30 फीसदी वोट बैंक, जो उन्हें अपने पिता की विरासत से मिला है, से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। वे ए टू जेड की बात करते जरूर है, लेकिन बिहार की हाल की घटनाओं पर नजर दौड़ाएंगे, तो साफ दिखेगा कि वे ‘माय’ समीकरण से बाहर निकल पाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। कन्हैया कुमार के साथ एक पॉजिटिव बात यह है कि वह जाति से भूमिहार है, लेकिन कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि से आने के कारण तकरीबन सभी जातियों और धर्मों में स्वीकार्य है। कांग्रेस ने उन्हें ऐसे ही आगे नहीं किया है। कांग्रेस का बिहार प्लान ‘एपीडी’ जल्द ही दिख सकता है। यानी, अगड़ा-पिछड़ा-दलित का फॉमूर्ला। पप्पू यादव हो, कन्हैया कुमार हो या कुछ दलित बुद्धिजीवी, इन सबको आगे कर के कांग्रेस इस चुनाव में अपना दमखम दिखाना चाहेगी। कांग्रेस लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की छाया से बाहर निकालने की कोशिश करेगी। और उसी कोशिश का नतीजा है कन्हैया कुमार का पलायन रोको नौकरी दो पदयात्रा।

तेजस्वी यादव को इन युवा नेताओं की फौज का सामना करने के लिए सर्वजन का सर्वमान्य नेता होना होगा। उन्हें एंटी-थीसिस गढ़नी होगी। पुराने प्रतिमानों को खंडित करना होगा। युवा नेताओं की भीड़ में तेजस्वी अकेले ऐसे युवा नहीं, जिनमें सुरखाब के पर लगे हों। कन्हैया कुमार से प्रशांत किशोर तक और चिराग पासवान से निशांत कुमार तक, बिहार अब अनेकों युवाओं का रणक्षेत्र बनेगा।

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