Wednesday, June 26, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादक्या नर्मदा ‘मातेसरी’ रह पाएगी?

क्या नर्मदा ‘मातेसरी’ रह पाएगी?

- Advertisement -

Samvad 1


medha patkarपिछले कुछ महीनों से नर्मदा को ‘मातेसरी’ मानने वाली, पूजने वाली, परिक्रमावासियों का स्वागत, सम्मान करने वाली, बड़वानी जैसे नर्मदा से कुल 5 किलोमीटर दूर के शहर की जनता हैरान है। कुछ दिनों से अलग-अलग समूह ‘जल’ के लिए तड़पते और आवाज उठाते रहे हैं। क्या जनता पिछले 37 सालों से दी जा रही नर्मदा आंदोलनकारियों की चेतावनी समझकर अब जागृत हुई है? बड़वानी, नर्मदा-तट के अनेक शहरों में से एक है जो नर्मदा के पानी पर जीता रहा है। यहां पीने, सिंचाई और निस्तार के दूसरे जरूरी उपयोगों के लिए नर्मदा से पंप या ‘इंटेकवैल’ के जरिए पानी लिया जाता रहा है। शहरवासी अन्न से लेकर श्रमिकों के श्रम तक हर अपरिहार्य पूंजी और वस्तुएं ग्रामीण क्षेत्रों से लाते हैं, जहां आज तक थोड़ी-बहुत प्रकृति और श्रमाधारित संस्कृति बची है।

आज जलवायु ही नहीं, अर्थव्यवस्था भी बदल जाने से प्रकृति का विनाश हुआ है और ग्रामीणों के साथ शहरवासियों को भी इसकी वंचना भुगतनी पड़ रही है। इसका सबसे भयावह उदाहरण नर्मदा के पानी का है, जिसके लिए आवेदन देते बड़वानी के लोग अगर समझेंगे कि इस वंचना की नींव में क्या है, तो ही वे बच पाएंगे। महिलाओं ने मटके फोड़े, किसानों ने सूखी नहरों में पानी छोड़ने की मांग रखी, लेकिन गहराई में उतरकर देखना आज भी बाकी है।

राजनेताओं और सामाजिक कार्यकतार्ओं समेत संवेदनशील अधिकारियों, कर्मचारियों को भी इसे समझना हो्गा। आखिर बड़वानी शहर, घाटी का हिस्सा रहे गांव और पुनर्वसित विस्थापितों को पानी क्यों नहीं मिल रहा? करोड़ों रुपए खर्च करके बिठाये ‘इंटेकवैल’ जो ‘90 ऌढ’ तक की क्षमता के हैं, काम क्यों नहीं कर रहे?

क्यों बार-बार बिगड़ रहे हैं? कारण है, नर्मदा का सूखना! एक ओर 138.68 मीटर तक ‘सरदार सरोवर’ को बढ़ाया गया, जिसमें 67,000 करोड़ रुपए ‘सरदार सरोवर निगम लिमिटेड’ का खर्च हुआ (जबकि मूल लागत 4200 करोड़ रुपए मानी गई थी!) और दूसरी ओर, नर्मदा का जलस्तर लगातार नीचे गया।

गर्मी में भी 105-10 मीटर के नीचे प्रवाहित जलस्तर कई कारनामों का नतीजा है। सबसे पहला और बेहद गंभीर कारनामा है, अवैध याने बिना-परवाना, बिना-मर्यादा, बिना-शर्त अंधाधुंध चल रहा रेत खनन! 2010 में केंद्रीय मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर 2012 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था।

रेत खनन से, भूमि के नीचे का जलस्तर घटता है, तो नदी सूखेगी नहीं तो क्या होगा? जिस तरह यमुना सूखी, जिसे बचाने के लिए उपवासकर्ता स्वामी निगमानंद ने अपनी जान गंवायी! नर्मदा उसी रास्ते बह रही है! बड़वानी के नर्मदा किनारे की जो कृषि भूमि, आबादी, शासकीय भूमि ‘सरदार सरोवर’ के लिए ही अर्जित की गई थी।

वह कार्यपालन यंत्री, ‘नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण’ के नाम होते हुए, कौन खुदाई कर सकता है? उसमें खुदाई के लिए कोई विभाग न लाइसेंस दे सकता है, न मंजूरी। छह मई 2015 का बड़वानी,धार,अलीराजपुर, खरगोन के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को ‘मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय’ का स्पष्ट आदेश है, फिर भी किसी को डर नहीं है, ना ही अवैधता और उसके असर की कोई चिंता है।

नर्मदा घाटी के किसानों की फसलें, मूंग की हो या चने की, कम-अधिक बर्बाद होती रही हैं, पाइप लाइनें तोड़-फोड़कर खननकर्ता अपनी कमाई कर ही रहे हैं। जिनकी जो जमीन आंदोलन के कानूनी-मैदानी संघर्ष से 60 लाख और 15 लाख देकर अर्जित हुर्इं, उन पर मालिकाना हक न होते हुए भी उन्हें लाखों रुपयों में रेत-माफियाओं को बेचा जा रहा है।

इसमें बड़वानी के पूंजी-निवेशक हैं, सेंधवा से इंदौर तक के वाहन मालिक हैं और हर स्तर पर कार्यरत, हर रास्ते पर खड़े मजदूर हैं, ड्राइवर हैं। ट्रैक्टर्स, डम्पर्स, जेसीबी, पोकलेन मशीनें तक नदी किनारे और नदी या जलाशय के जल में उतारी जा रही हैं।

तमाम कानून, आदेश और 2022 तक के राज्य शासन के आदेशों का उल्लंघन करते हुए यह जारी है, लेकिन पुलिस, राजस्व, खनिज और ‘एनवीडीए’ की नजरें इन पर नहीं पड़तीं। कोई कार्यकर्ता, नर्मदा बचाने की कटिबध्दता के साथ पीछे पड़ें तो संबंधित अधिकारी या उनके कार्यालय से सीधे खननकर्ताओं को खबर पहुंचती है।

अपशिष्ट, प्रदूषित पदार्थ और जबलपुर से लेकर हर शहर से रोज निकलता करोडों लीटर्स गंदा पानी अनेक जलमार्गों से नर्मदा में मिल रहा है। मध्यप्रदेश शासन ने विश्वभर की साहूकार संस्थाओं से करोड़ों रुपए लेकर भी कोई शुद्धीकरण संयंत्र नहीं बनाया। तो क्या पी रही है, नर्मदा घाटी की जनता?

यह सब जानते हैं कि नदी में पानी कम होने से प्रदूषण की मात्रा बढ़ती है। जरूरत है यह बताने की कि ऊपरी क्षेत्र में बढ़ते बांध और पानी का अ-नियमन तथा हर बांध में डूबता हजारों हेक्टर्स का जंगल, क्या नर्मदा जैसी, मध्यप्रदेश की एकमात्र साल भर बहती नदी को सतत, अविरल और निर्मल प्रवाहित रखेगा?

‘नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण’ (ट्रिब्यूनल) ने भी जब 22.7 ‘मिलियन एकड फीट’ (एमएएफ) के बदले 28 ‘एमएएफ’ पानी की उपलब्धता मानकर लाभों का बंटवारा किया था और ‘सरदार सरोवर’ के एक बूंद पानी पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को हक नहीं दिया था।

तो क्या नर्मदा किनारे लगे हजारों पंप भी सरकार जब चाहे तब उखाड़ेगी? उसी के लिए किसान, खेत-मजदूरों की, ग्रामसभा की हकदारी नकारकर ‘पाटी परियोजना’ जैसी योजना से सिंचित रहे खेतों को खोदकर पाइप लाइन से सिंचाई देने का खेल खेला जा रहा है।

पीढ़ियों से बहती नदी, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर घाटी, नदी को रोकने से 60 किलोमीटर तक नदी के जल-प्रवाह में समुन्दर के अंदर घुसने से, क्या नर्मदा ‘मातेसरी’ रह पाएगी? एक बार खोल दिया जंगल, जमीन और ध्वस्त किए किनारे, तो फिर क्या नोचेंगे और बेचेंगे, प्राकृतिक संसाधनों की ‘पूंजी’ के चोर?

क्या शासन भी मुनाफाखोरों से गठजोड़ करे बिना रहेगा? आज बड़वानी से केवड़िया तक, मंजूरी के बिना ही, पर्यटन और जल-परिवहन में बड़े क्रूज की घोषणा की जा रही है। जल की मात्रा और गहराई कम होने से, गाद से भरी गंगा में धंसे क्रूज जैसा धंस सकता है, नर्मदा में भी क्रूज जहाज?

क्रूज से पानी, हवा, नदी के प्रदूषण पर ‘केंद्रीय पर्यावरण सुरक्षा मंडल’ की रिपोर्ट ‘हरित न्यायाधिकरण, भोपाल’ में पेश है तो क्या इसे पढ़कर, जानकर गांव और नगरवासियों की मंजूरी ली है? कोई जनसुनवाई हुई है? नहीं! ‘विकास’ के नाम पर हो रहे आक्रमण और अतिक्रमण का विकल्प मुश्किल नहीं है।

हर साल बरसता पानी अपने-अपने खेत में और छत से उतारकर शहरी बन गई भूमि में भी उतारना संभव है। इस विकेंद्रित नियोजन के लिए अगुवाई और जिम्मेदारी होगी, स्थानीय संस्थाओं की, ग्राम पंचायत और नगरपालिका की!

ऊपर से थोपी जाने वाली परियोजनाएं और पूंजी बाजार के प्रभाव- दबाव में हो रहा प्राकृतिक दोहन न केवल जलवायु में परिवर्तन लाता है, बल्कि जीवन और आजीविका ध्वस्त करता है, इसे समझकर जात, धर्म, लिंग, वर्ग, भेद के पार, एकजुटता से आवाज उठायें, अहिंसक सत्याग्रही बनकर विकास के नाम पर बढ़ रही हिंसा को रोकें।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments