- महिलाओं के शृंगार करने के प्रमाण मुद्राओं से लेकर मूर्तियों व पांडुलिपियों में मिलते हैं
- अंतिम संस्कार के दौरान महिलाओं के शव के पास कंघा व शीशा रखने की प्रथा थी
जनवाणी संवाददाता |
बड़ौत: महिलाएं आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से अपने सौंदर्य व श्रृंगार पर बेहद ध्यान देती थीं। कहावत है कि महिलाएं जरूरी कार्य भूल सकती हैं, लेकिन श्रृंगार करना नहीं भूल सकती हैं।
सजने-संवरने के प्रमाण हर जगह मिलते हैं। मुद्राओं से लेकर मूर्तियों व पांडुलिपियों से लेकर कलाकृतियों में दुर्लभ प्रमाण मिलते हैं। जिसका खुलासा सिनौली, बड़का व बरनावा में उत्खनन के दौरान मिले दुर्लभ प्रमाणों से हुआ है। ताम्रयुग में भी महिलाएं तांबे से बने शीशे व हड्डियों से बने कंघे से अपने बाल संवारती थीं।
आज के चमक-धमक वाले समय में हर गली-मोहल्लों में ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं, जिनमें महिलाएं सजने, संवरने के लिए जाती हैं। लोग कहते हैं कि जब से ब्यूटी पार्लर खुले हैं, तब से महिलाओं में श्रृंगार करने का अधिक क्रेज बढ़ा है, जबकि पहले नहीं था।
लेकिन ऐसा नहीं है, प्रमाणों के आधार पर लोगों की यह धारण पूरी तरह से गलत साबित होती है। महिलाएं आज के समय में नहीं, बल्कि आज से पांच हजार साल पहले भी श्रृंगार करती थीं और सजने, संवरने का उन्हें बहुत शौक था।
शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक एवं इतिहासकार डा. अमित राय जैन ने बताया कि महिलाएं आज से पांच हजार साल पहले भी श्रृंगार करती थीं।
जिनके हर जगह प्रमाण मिलते हैं। दुर्लभ मुद्राओं, मूर्तियों, पांडुलिपियों, कलाकृतियों में हर जगह मिलते हैं। सिनौली साइट पर चले उत्खनन के दौरान तांबे का शीशा, हड्डियों से बनी कंघी मिली थी। शोध के बाद पाया था कि यह दुर्लभ शीशा व कंघी पांच हजार साल पुरानी हैं।
ताम्रयुग में महिलाएं तांबे से बने शीशे में देखकर श्रृंगार किया करती थीं। पांच हजार साल पहले समय की ताम्रयुग की पुष्टि हो चुकी है, जिसे कोई नकार नहीं सकता है। सिनौली के अलावा बड़का व बरनावा में उत्खनन के दौरान जो दुर्लभ वस्तुएं मिली है, उनसे भी महिलाओं के श्रृंगार की पुष्टि हो चुकी है।
उन्होंने बताया कि आज से पांच हजार साल पहले ऐसी प्रथा थी कि महिलाओं के शव का अंतिम संस्कार करने से पूर्व उनके शव के पास शीशा, कंघा व श्रृंगार की अन्य सामग्री रखी जाती थी। इससे साफ पता चलता था कि महिलाओं को सबसे अधिक शौक श्रृंगार करने का था और उसी की सामग्री को उनके शव के पास रखा जाता है।
ताम्रयुग के लोग भी पुनर्जन्म को मानते थे। इसके अलावा उत्खनन से मिली दुर्लभ वस्तुओं से काफी बातों से परदा उठा है, जिनके बारे में लोग अभी तक अनभिज्ञ थे और वह सब इतिहास की किताबों में भी नहीं लिखा है। जो केवल शोध से ही पता चल रहा है। आज के समय में ऐतिहासिक कालों की जानकारी जुटाने में इतिहासकार व शोधकर्ता बहुत दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
सिनौली साइट से मिले हर एक प्रमाण ने पूरे विश्व के इतिहासकारों व शोधकर्ताओं को झकझोर करके रख दिया था। आज के समय में भी महिलाओं को सजने-संवरने का बेहद शौक है, लेकिन आज अंतिम संस्कार के दौरान महिलाओं के शव के पास ऐसा कुछ नहीं रखा जाता है।