Wednesday, June 26, 2024
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वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट और भारत

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Samvad


DR VISHESH GUPTAपिछले दिनों 20 मार्च को इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस के अवसर पर बर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2023 प्रकाशित हुई है। खुशहाली के मानकों पर 150 देशों की सूची में भारत को 126वां स्थान मिला है। खुशहाली के मामले में भारत ने पिछले साल के मुकाबले भले ही इस बार मात्र तीन अंकों की बढ़त बनाई है, लेकिन हैरत की बात है कि इस सूची में पाकिस्तान को 108वें, बांग्लादेश को 118वें, नेपाल को 78वें, म्यामांर को 72वें और चीन को 64वीं पायदान पर रखकर भारत से बेहतर आंका गया हैं। गौरतलब है कि खुशहाली से जुड़ी यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की यक एनजीओ संस्था सस्टेनेबल डेवलपमेन्ट सॉल्यूशंस नेटवर्क तैयार करती है। पहली वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2012 में जारी की गयी थी। इस बार इसका थीम-संकट के समय भरोसा और सामाजिक संपर्क रखा गया था।

2023 में भारत की यह रैंकिंग विगत तीन साल यानि 2020-2022 के औसत आधार पर लोगों के जीवन के मूल्यांकन पर आधारित है। खुशहाली के इस सूचकांक को मापने के लिए इसमें कई कसौटियां रखी गई हैं।

खासतौर पर इसमें जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता, भ्रष्टाचार का स्तर, सामाजिक स्वतंत्रता, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, अर्थव्यवस्था, उद्यम, रोजगार के अवसर, निजी स्वतन्त्रता, सामाजिक सुरक्षा तथा जीवन स्तर में होने वाले बदलाव जैसे मुद्दों को इसकी रैंकिंग का आधार बनाया गया है।

इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि इसमें वही मानक रखे गए हैं, जिन्हें लोगों को एक सामान्य जीवन जीने के लिए न्यूनतम माना गया है। परंतु अफसोस की बात है कि भारत इन मानकों पर खरा नहीं उतर पाया।।

इस रिपोर्ट की कुछ विडंबनाएं भी हैं कि फिनलैड जैसा छोटा देश, जिसकी आबादी मात्र 55 लाख है, वह खुशहाली के इन मानकों पर आज प्रथम स्थान पर टिका हुआ है। दूसरी ओर अफगानिस्तान सबसे निचली यानि 137वीं पायदान पर रहा है। डेनमार्क की आबादी केवल 58.6 लाख है, वह दूसरे स्थान पर और आइसलैंड जिसकी आबादी महज 3.73 लाख है, वह हैप्पीनेस के तीसरे स्थान पर टिका है।

अमेरिका के बाद ब्रिटेन 19वें पायदान पर रहा है। तकलीफदेय यह है कि भारत के मुकाबले चीन 64वें तथा पाकिस्तान 108वें स्थान पर रहकर इन दोनों देशों ने भारत जैसी विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था वाले देश को पछाड़ दिया है। गौरतलब है कि शीर्ष दस में सबसे अधिक आठ देश यूरोप से रहे हैं, जबकि शीर्ष 20 में एशिया का एक भी देश नहीं है।

दरअसल इस रिपोर्ट का असल मकसद विभिन्न देशों के शासकों को आईना दिखाते हुए यह बताना रहा है कि उनके देश की नीतियां आम लोगों के जीवन को खुशहाल बनाने में कितनी कारगर रहीं हैं।

कड़वा सच यह है कि वर्ल्ड हैप्पीनेस की यह हालिया रिपोर्ट कुछ संदेह पैदा करती है। मसलन, चीन की बात करें तो ज्ञात होगा कि वहां लोगों को सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक आजादी भी ठीक से नहीं मिली। कोरोना काल में दुनिया ने चीन को कटघरे में खड़ा किया।

फिर भी वह भारत के 126 के मुकाबले 64वें स्थान पर रहा है। आर्थिक रूप से बदहाल श्रीलंका में, जहां नागरिक अधिकारों को खुलेआम कुचला गया, वह हैप्पीनेस की सूची में आज भारत से बेहतर दर्शाया गया है।

देश की आजादी के अमृतकाल काल में विकास की ओर लगातार बढ़ रहे भारत से जुड़े तथ्यों के पक्षपाती विश्लेषण के आधार पर उसकी प्रसन्नता को कम आंकना देश की राजनैतिक सत्ता को चुनौती देने से कम नहीं हैं। अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए उसका विरोध होना स्वाभाविक ही है।

पिछले नौ सालों में देश में गरीबी 22 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत से भी नीचे आ गई। गरीबी की दर भी आज एक प्रतिशत से भी कम 0.8 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है। यहां प्रति व्यक्ति आय के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंड़ार भी दोगुना हुआ है। आजादी के 70 सालों में देश में केवल 6.37 लाख प्राइमरी स्कूल बने, जबकि पिछले आठ सालों में देश में 6.53 लाख स्कूलों का निर्माण हुआ।

देखा जाए तो देश में 2012-13 में देश में खाद्यान्न का जो उत्पादन 255 मिलियन टन था वह 2021-22 में बढ़कर 317 मिलियन टन हो गया है। कोविड़ से उत्पन्न विषम परिस्थितियों के बाद भी विगत वर्ष में 418 अरब डालर को रिकॉर्ड निर्यात हुआ।

यह बात सभी को ज्ञात है कि पिछले दो सालों में कोरोना काल तक में 3.40 लाख करोड़ रुपयों की लागत से देश के लगभग 80 करोड़ लोगों तक जरूरी राशन भी पहुंचा है। आज पूरी दुनिया में भारत की विदेश नीति की चर्चा बहुत सम्मान के साथ होती है।

इराक,यमन और अफगानिस्तान से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध तक भारत के राहत और बचाव अभियान की चर्चा पूरी दुनिया में हुई है। इसलिए इस सच को कहने में कोई हिचक नहीं कि एक ओर दुनिया के तमाम देश भारत की विश्व में लगातार बढ़ रही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक ताकत को महसूस कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रसन्नता और खुशहाली के मामले में भारत को कमजोर देशों तक से पीछे दिखाने का प्रयास लगातार जारी है।

ऐसा नहीं है कि देश में खुशहाली लाने के प्रयास नहीं किए गए। देश में पिछले आठ-नौ सालों में जन-धन योजना, उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, कौशल विकास, डिजिटल इंडिया, आयुष्मान भारत व ओडीएफ जैसी न जाने कितनी योजनाएं कार्यान्वित की गर्इं।

जिस कोविड काल को जोड़कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है, उस समय भारत ने अपने 100 करोड़ लोगों को डबल कोरोना वैक्सीन देने के साथ-साथ दुनिया को सुरक्षा किट और दवाइयों का मुफ्त वितरण भी किया। आज भारत में युवा निराश और हताश नहीं है। वह पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित और खुश है।

दरअसल, खुशहाली शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ एक मानसिक घटना भी है। शरीर की जरूरतें तो लोग जैसे-तैसे पूरी कर ही लेंगे, परंतु लोगों को वास्तविक सुख की अनुभूति मन के स्तर पर ही होती है।

परंतु इस वैश्विक रिपोर्ट में देश के केवल कुछ लोगों से प्रश्न पूछकर जिस प्रकार भारत के चहुंमुखी विकास और आज के भारतीय खुशहाल मन को नकारकर वास्तविक तथ्यों के साथ पक्षपात किया गया है, उस पर सवाल उठना और उठाना लाजमी है।

केंद्र सरकार को भी देश के असल विकास को नकारकर तैयार की गई इस रिपोर्ट का सच जानने के लिए गंभीर होने की आवश्यकता है। पिछले दिनों जिस प्रकार केंद्र सरकार के खिलाफ कुछ अभियानों को हवा दी गई, कहीं हैप्पीनेस रिपोर्ट भी भारत को कमतर आंकने की साजिश तो नहीं हैं?

निश्चित ही वैश्विक स्तर पर खुशहाली का यह सूचकांक देश के बहुआयामी विकास का एक आईना है। मगर भारत जैसे देश के समावेशी विकास को यदि यह विदेशी रिपोर्ट झुठलाती है, तो सरकार के साथ-साथ समाज के लिए भी यह मुद्दा गंभीर चिंतन और मनन का है।


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