रमाकांत नाथ
इन दिनों रूस और उसके पड़ोसी यूक्रेन तथा इस्राइल और उसके पड़ोसी फिलिस्तीन (गाजा), लेबनान, ईरान, यमन आदि के बीच जिस तरह की क्रूर हिंसा जारी है, वह एक और विश्वयुद्ध की ओर इशारा कर रही है। विडंबना यह है कि इस बार देशों की सम्राज्यवादी लिप्सा के साथ-साथ हथियारों का दिन दूना, रात चौगुना फलता-फूलता धंधा भी है। क्या होगा, ऐसे महायुद्ध का नतीजा?
दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो चुका है। यह युद्ध क्या रूप लेगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है। एक तरफ रूस और चीन जैसे देश हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश। दुनिया के राष्ट्र दो गुटों में बंटे हुए हैं और अपने-अपने हितों की ओर बढ़ रहे हैं। उनकी महत्वाकांक्षा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दुनिया को परेशान कर रही है। दुनिया में आम लोगों के दमन ने शोषण को बढ़ा दिया है। अन्याय ने अत्याचार को जन्म दिया है। अशांति, भय, आतंक और आशंका के माहौल के कारण विश्व-शांति दूर की कौड़ी लगती है।
दुनिया में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए बने ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यूएनओ) ने ऐसा कुछ नहीं किया है और दुनिया की प्रमुख शक्तियों ने उससे ऐसा कुछ नहीं करवाया है। दुनिया में अशांति का कारण क्या है, हम बार-बार युद्ध क्यों झेल रहे हैं, राष्ट्रों के बीच संघर्ष क्यों हैं? निकी वॉकर की किताब ’हम क्यों लड़ते हैं? संघर्ष, युद्ध और शांति’ तथा स्टीव किलेलिया की पुस्तक ’अराजकता के युग में शांति’ ने हमें वर्तमान समस्याओं को हल करने के तरीके खोजने तथा विश्व में सतत विकास प्रक्रिया का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कई बातें उजागर की हैं।
जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था, तब यह माना गया था कि यह हफ्तेभर में समाप्त हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रूसी आक्रमण से यूक्रेन की रक्षा के लिए अमेरिकी सहायता ने अप्रत्यक्ष रूप से हथियारों के बाजार को लाभ पहुंचाया है तथा पूरे यूरोप में युद्ध, पलायन, विस्थापन और शरणार्थी मुद्दों के माहौल ने बहुत उथल-पुथल मचा दी है। यह युद्ध अब रूस के साथ चीन और ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (नाटो) के देशों के बीच युद्ध में बदल गया है, जो बहुत ही भयानक रूप लेने वाला है।
दुनिया के अमीर और परमाणु शक्ति संपन्न देशों के पास 10,000 से अधिक परमाणु हथियार हैं। उनमें से कुछ के ही उपयोग से मानव जीवन और मानव सभ्यता पूरी तरह से गायब हो जाएगी। यह जानते हुए भी तानाशाह लड़ते रहते हैं और परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी देते रहते हैं। मध्य-पूर्व में ईरान, तुर्की, जॉर्डन और लेबनान जैसे इस्लामी देश गाजा पट्टी और पश्चिमी तट पर इस्राइल के हमले के कारण इस्राइल के खिलाफ हैं। हमास-हूती-हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ इस्राइल की कार्रवाई और अमेरिका द्वारा उसके समर्थन ने अप्रत्यक्ष रूप से मध्य-पूर्व में विनाश को जन्म दिया है।
जब एक आतंकवादी संगठन तालिबान अफगानिस्तान जैसे देश को नियंत्रित कर शासन चला रहा है, तो यह असंभव नहीं है कि दुनिया के सभी आतंकवादी संगठन एकजुट होकर इस दुनिया से लोकतंत्र की मौत का कारण बनें। तानाशाहों, हिंसक आतंकवादियों के कारण आज दुनिया में शांति से रहना असंभव हो गया है। एकतरफावाद और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तानाशाहों और आतंकवादियों के पास कोई सिद्धांत या आदर्श नहीं होता। वे किसी धर्म को भी नहीं मानते। इसके बजाय, वे अपनी राय दूसरों पर थोपते हैं। तानाशाहों और आतंकवादियों की ताकतों के पीछे कारपोरेट हैं। वास्तव में कारपोरेट ताकत ही दुनिया पर राज कर रही है और यही आज की अशांति का मुख्य कारण है।
कॉरपोरेट सत्ता आतंकवादी संगठनों के लिए हथियार बना रही है, कॉरपोरेट सत्ता ने तानाशाहों को विश्व व्यापार के लिए लालची बना दिया है, डॉलर से बांध दिया है और दुनिया की प्रमुख संस्थाओं ने ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष,’ ‘विश्व व्यापार संगठन,’ ‘विश्व बैंक’ आदि के माध्यम से कर्ज देकर तीसरी दुनिया को पूरी तरह से बांध लिया है। कॉरपोरेट सत्ता ने दुनिया के संसाधनों को हड़प लिया है और पूरी दुनिया में आतंक, अशांति, संघर्ष पैदा किया है जिसकी परिणति युद्ध में होती है। इस संबंध में डेविड कॉर्टन की एक बहुचर्चित पुस्तक है, ‘व्हेन कॉरपोरेशन्स रूल द वर्ल्ड।’ कॉरपोरेट शासन किस तरह वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और विश्व शांति को नुकसान पहुंचा रहा है, यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मध्य-पूर्व में कई वर्षों से चल रहे और हाल के युद्ध के पीछे अमेरिका अप्रत्यक्ष रूप से इस्राइल का समर्थन कर रहा है।
मौजूदा सरकार की इस्लाम विरोधी नीतियों के प्रचार और इस्लाम विरोधी कदमों के कारण भारत अब सभी इस्लामी देशों के साथ संघर्ष में उलझा हुआ है। इसी तरह, दक्षिण-एशिया में चीन के प्रभाव के कारण भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध खो चुका है और संघर्ष में पड़ गया है। यह असंभव नहीं है कि ये सभी संघर्ष आगे चलकर युद्ध में बदल जाएं, जिससे दक्षिण-एशिया में एक और युद्ध हो। यह असंभव नहीं है कि ताइवान पर चीन का लालच, तिब्बत पर चीन का अधिकार और कोरियाई प्रायद्वीप पर दो कोरिया के बीच युद्ध, उत्तर-कोरिया को दक्षिण-कोरिया पर हमला करने के लिए मजबूर कर देगा। दुनिया के 7-8 ऐसे मैदानी युद्ध, कुछ देशों के गृह-युद्ध विश्व शांति को व्यापक रूप से भंग कर देंगे, यह तय है।
दुनिया में दलीय व्यवस्थाएं, चाहे वे बहुदलीय हों, द्विदलीय हों या एकदलीय हों, सभी भ्रष्टाचार, व्यभिचार, झूठ और अंतत: मनमानी को बढ़ावा देती हैं। दलीय व्यवस्था व्यक्तिगत शासन में बदल गई है। एक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कुछ चापलूसों, चाटुकारों को लेकर शासन का जाल फैलाता है और आम लोग उस जाल में फंसते जाते हैं। यह व्यवस्था आज भी पूरी दुनिया में लागू है। जहां भी ऐसा हो रहा है, लोग उस व्यक्तित्व को हटा रहे हैं, उसे सत्ता से बेदखल कर रहे हैं, लेकिन दलीय व्यवस्था के भीतर कोई दूसरा व्यक्ति शासक बनकर उभरता है और शोषण तथा अत्याचार करना शुरू कर देता है। दलीय लोकतंत्र और व्यक्तिवाद लोकतंत्र के नाम पर काम कर रहे हैं। इससे दुनिया में कारपोरेट साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला है।
यह शासन व्यवस्था लोकतंत्र के चारों स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया को समाप्त करके तानाशाही चलाना चाहती है, जो वास्तव में ‘निगम के लिए, निगम द्वारा और निगम की’ है। इस शासन व्यवस्था ने करोड़ों लोगों के लिए अशांति पैदा की है, जीवन और मृत्यु की समस्याएँ पैदा की हैं। अब विकल्प लोक-लुभावनवाद है, जो विश्वशांति और लोकस्वराज स्थापित करने में मदद कर सकता है।
यह दुनिया से भय, भ्रम और आतंक को खत्म करने, नफरत, हिंसा, असहिष्णुता को मिटाने और युद्धों और संघर्षों को खत्म करने में मदद कर सकता है। कॉरपोरेट सत्ता को खत्म करने, गुटबाजी को मिटाने, सत्तावाद और अधिनायकवाद को हराने के लिए जनता की राजनीति, जनता का शासन जरूरी है। विश्व में स्थायी शांति, देश में शाश्वत प्रगति, राज्य में अपार समृद्धि और लोगों के जीवन में आशाजनक विकास के लिए जनता का शासन आवश्यक है।