Wednesday, July 3, 2024
- Advertisement -
HomeEducationविश्व जनसंख्या दिवस और भारत

विश्व जनसंख्या दिवस और भारत

- Advertisement -

-डॉ.अनिल शर्मा ‘अनिल’ |

विश्व जनसंख्या दिवस प्रतिवर्ष 11 जुलाई को मनाया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस प्रतिवर्ष अलग अलग थीम पर मनाया जाता है। वर्ष 2023 के लिए वर्ल्ड पॉपुलेशन डे की इस साल की थीम (Theme of World Population Day 2023) इस वर्ष वर्ल्ड पॉपुलेशन डे के लिए यू.एन.एफ.पी.ए. की ओर से महिलाओं और बालिकाओं की सेहत की सुरक्षा तय किए जाने और कोविड 19 पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई है।

विश्व जनसंख्या दिवस मनाने के पीछे एक रोचक कहानी मिलती है। हुआ यूं था कि सन् 1987 में पूरी दुनिया में इस बात पर नजर रखी जा थी कि दुनिया की आबादी कब पांच बिलियन होगी और इसकी अनुमानित तिथि 11 जुलाई ही थी।

अगले साल संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल (यूएनडीपी) की ओर इस दिन की स्मृति में फाइव बिलियन डे मनाया गया था। विश्व में बढ़ती जनसंख्या एक समस्या के रुप में उभरने लगी। इस समस्या पर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए 1990 में यूएनओ ने 11 जुलाई को वर्ल्ड पॉपुलेशन डे घोषित कर दिया। तब से हर साल अलग अलग थीम पर यह दिवस आयोजित हो रहा है।

इस संबंध में अब एक तथ्य यह भी है कि भारतवर्ष विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है। एक अनुमान के अनुसार,एक जुलाई 2023 को भारत की आबादी संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, आबादी 1.429 अरब हो जायेगी, जो चीन से लगभग 30 लाख, (2.9 मिलियन) अधिक होगी।(जो कि अब तक और भी बढ़ चुकी है)

महिलाओं और बालिकाओं की बेहतरी सुरक्षा के आंकड़ों पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि दिसंबर 2021 में वर्ष 2019-2021 के लिए जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 1,000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं हैं।

हालाँकि, लिंगानुपात ही लैंगिक समानता का एकमात्र निर्धारक नहीं हो सकता है। स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की खराब पहुंच जैसे कई अन्य आंकड़े भारत में जन्म से ही महिलाओं की कमजोरी को प्रभावित करते हैं।

इसके अलावा यूनिसेफ की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनिया के सबसे अधिक बाल वधुओं का घर है। भारत में हर साल 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी होना स्वाभाविक है,अनुमान है कि भारत में हर साल 18 साल से कम उम्र की 15 लाख लड़कियों की शादी होती है।

इनमें से अधिकांश को रक्ताल्पता बनी ही रहती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है, जहां रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा आवश्यक स्तर से नीचे गिर जाती है, जिससे शरीर में लाल रक्त रसायन की ऑक्सीजन वहन करने की क्षमता बाधित हो जाती है, जिससे मानव शरीर के दिन-प्रतिदिन के कार्य प्रभावित होते हैं।

एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार, यह समस्या समान आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में महिलाओं (15-19 वर्ष) में अधिक है। उल्लेखनीय बात यह है कि 59.1 प्रतिशत महिलाएं एनेमिक मिली जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 31.1 प्रतिशत रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, एनीमिक महिला में एनीमिक और अल्पपोषित बच्चे का जन्म होने की संभावना होती है।

दूसरी ओर, देश में युवा महिलाओं (15-24 वर्ष) की प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है, जो अपने मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के सहज उपायों को प्रयोग करती हैं। 2015-16 (एनएफएचएस-4) में, 57.6 प्रतिशत महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छंद उपयोग की जानकारी मिली। 2019-21 (एनएफएचएस-5) में यह प्रतिशत 77.3 हो गया।

इस संदर्भ में इन आंकड़ों की अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत में प्रति दिन 67385 बच्चों का जन्म होता है जो कि पूरे विश्व में बच्चों के जन्म का छठाँ भाग है। हर मिनट इन नवजात में से एक की मृत्यु हो जाती है।

भारत विश्व में ऐसा अकेला बड़ा देश है जहाँ शिशुओं में लड़कियों की मृत्युदर लड़कों से ज्यादा है। बच्चों के जीवित बचने में लैंगिक अंतराल वर्तमान में 11 प्रतिशत है। लड़कों की तुलना में लड़कियों के अस्पतालों में कम भर्ती होने के आंकड़ों से समुदाय के दृष्टिकोण का पता चलता है कि कभी-कभी माता-पिता नवजात लड़कियों पर कम ध्यान देते हैं। केवल 2017 में एस एन सी यू में लड़कों की तुलना में 150,000 काम लड़कियां भर्ती हुई थीं।

भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्युदर लड़कों की तुलना में लड़कियों में 8.3 प्रतिशत अधिक है। वैश्विक स्तर पर यह लड़कों में 14 प्रतिशत अधिक है। (इन आंकड़ों का स्रोत है UNIGME चाइल्ड सर्वाइवल रिपोर्ट 2019)।

हमारे देश में बढ़ती स्वास्थ्य सेवाएं इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जिससे इस दशा में सुधार हो रहा है। अबभारत में मातृत्व मृत्युदर 8 अंक नीचे गिरकर 2014-16 के 130/ 100,000 जीवित जन्म से घटकर 2015-17 में 122/ 100,000 जीवित जन्म हो गया है(6.2 प्रतिशत की कमी)।

वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष गर्भ एवं बच्चों के जन्म से सम्बंधित कारणों से होने वाली महिलाओं और लड़कियों की मृत्यु में व्यापक कमी आयी है, 2000 में 451,000 की तुलना में 2017 में घटकर ये 295,000 हो गई है जो कि 38 प्रतिशत कम है।

भारत में प्रतिवर्ष गर्भ एवं बच्चों के जन्म से सम्बंधित कारणों से होने वाली महिलाओं और लड़कियों की मृत्यु में व्यापक कमी आयी है, 2000 में 103,000 की तुलना में 2017 में घटकर ये 35,000 हो गई है जो कि 55 प्रतिशत कम है।

प्रतिवर्ष 2.5 करोड़ बच्चों के जन्म के साथ भारत का हिस्सा विश्व के कुल बच्चों के जन्म का पांचवां भाग है। उनमे से प्रति मिनट एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है।
लगभग 46 प्रतिशत मातृत्व मृत्यु और 40 प्रतिशत नवजात मृत्यु प्रसव के दौरान या जन्म के पहले २४ घंटों के दौरान होती हैं।

नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण समय पूर्व प्रसव (35 प्रतिशत), नवजात संक्रमण (33 प्रतिशत) जन्म के दौरान दम घुटना (20 प्रतिशत) और जन्मजात विकृतियां (9 प्रतिशत) हैं। एनएफएचएस-5 के मुताबिक यदि भारत के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ो के बारे में बात करें तो भारत में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब है। पश्चिम बंगाल में 42 प्रतिशत महिलाएं ऐसी है जिनकी शादी जल्दी की गई। वहीं बिहार में यह आंकडा 40 फीसदी और त्रिपुरा 39 फीसदी है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की नई रिपोर्ट में देश की सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार महिलाओं से जुड़े कई अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं। यह सर्वे दो चरणों में किया गया है। पहला चरण 17 जून 2019 से 30 जनवरी 2020 तक किया गया। पहले चरण में 17 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेशों ने भाग लिया। दूसरा चरण 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 के दौरान हुआ जिसमें 11 राज्य और तीन केंद्र शासित राज्यों ने हिस्सा लिया। नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 18 से 29 साल की उम्र वाली महिलाओं में से 25 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल के होने से पहली कर दी गई थी।

द प्रिंट में प्रकाशित एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार 2019-21 के सर्वेक्षण में महिलाओं में यह दर 25 प्रतिशत है। 18-29 आयु के शादीशुदा पुरुषों में जल्दी शादी की दर 15 प्रतिशत है। 2019-21 के दौरान 15 से 49 साल की 11 फीसद महिलाओं ने जीवन में एक बार स्टिलबर्थ और अबॉर्शन का अनुभव किया है। 2015-16 में यह दर 12 प्रतिशत थी।

एनएफएचएस-5 के मुताबिक अगर भारत के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ो के बारे में बात करें तो भारत में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब है। पश्चिम बंगाल में 42 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी जल्दी की गई। वहीं, बिहार में यह आंकड़ा 40 फीसद और त्रिपुरा 39 फीसदी है। झारखंड में 35 फीसदी, एक तिहाई महिलाओं की शादी कानूनी तय उम्र से पहुंचने से पहले ही कर दी गई। आंध्र प्रदेश में यह दर 33 फीसदी है। कानून द्वारा तय न्यूनतम उम्र से पहली शादी करने की दर असम में 32, दादर नगर हवेली और दमन दीव में 28 फीसदी, तेलंगाना में 27 फीसदी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 25 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के अनुसार कानूनी उम्र से पहले महिलाओं की शादी के संदर्भ में सबसे बेहतर स्थिति 4 फीसद के साथ लक्षद्वीप है। जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में ऐसी महिलाओं की संख्या छह फीसद है। हिमाचल, गोवा और नगालैंड में यह दर 7 प्रतिशत के उच्च करीब है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम उम्र में शादी करने का चलन कम हुआ है। 20 से 24 साल के आयुवर्ग में 23 प्रतिशत महिलाएं ऐसी है जिनकी शादी कानूनी उम्र से पहले कर दी गई। लेकिन 45-49 के आयु वर्ग में यह दर 47 फीसदी है। इसी तरह 45-49 उम्र वाले पुरुषों में 27 प्रतिशत की शादी 21 साल से पहले हुई और 25 से 29 आयु वाले में 18 प्रतिशत पुरुषों का विवाह तय आयु से पहले हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल जाने वाली महिलाओं की शादी में देरी देखी गई है। 25 से 49 साल की उम्र वाली स्कूल न जाने वाली महिलाएं में शादी की औसत उम्र 17.1 साल है, जबकि 12 साल या उससे ज्यादा समय तक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं में यह उम्र 22.8 दर्ज की गई।

महिलाओं के लिए मेंस्ट्रुअल हेल्थ एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। देश में आज भी माहवारी होने वाली महिलाओं में से बड़ी संख्या इस दौरान सैनटरी नैपकिन की जगह कपड़ा या अन्य चीजों का इस्तेमाल करती हैं।

द ट्रिब्यून में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक भारत में 15 से 24 साल की उम्र में महावारी होने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 64 प्रतिशत महिलाएं सैनेटरी नैपकिन, 50 प्रतिशत कपड़ा और 15 प्रतिशत स्थानीय स्तर पर बनने वाले नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 12 और उससे ज्यादा उम्र की स्कूल जाने वाली लड़कियां बिना स्कूल जाने वाली लड़कियों के मुकाबले पीरियड्स हाइजीन के प्रति ज्यादा सजग है। यह दर स्कूल जाने वाली में 90 प्रतिशत है जबकि स्कूल न जाने लड़कियों में केवल 44 प्रतिशत है।

यदि मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्रोटेक्शन में भारत के राज्य की स्थिति देखे तो बिहार (59 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (61 प्रतिशत) और मेघालय (65 प्रतिशत) में सबसे कम महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीन तरीकों को अपना पाती हैं।

इन तथ्यों के साथ विश्व जनसंख्या दिवस की थीम के मुताबिक अभी बालिकाओं की सेहत के प्रति बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य विभाग और आंगनबाड़ी की ओर से बालिकाओं और किशोरियों को आयरन, फोलिक एसिड की गोलियां मुफ्त उपलब्ध कराकर रक्ताल्पता से बचाने की योजनाएं चलाई जा रही है।

मासिक धर्म के दौरान हाइजीन सुरक्षा वाले सैनिटरी पैड भी किशोरियों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उच्च प्राथमिक स्कूलों में बालिकाओं को इनका नियमित वितरण किया जाता है। इतना ही नहीं गंदे सैनिटरी पैड्स के निस्तारण के लिए भी व्यवस्था की गयी है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए समय समय पर विशेष आयोजन होते रहते हैं।

इसमें एक और बिंदु आता है कोशिश -19 की रोकथाम। भारत ने तो इस क्षेत्र में,विश्व भर में अग्रणी भूमिका निभाई है न केवल एंटी कोशिश -19 वैक्सीन की खोज और निर्माण किया,वरन विश्व भर में उसकी उपलब्धता भी सुनिश्चित की है।

हम कह सकते हैं कि विश्व जनसंख्या दिवस की इस वर्ष की थीम महिलाओं और बालिकाओं की सेहत की सुरक्षा तय किए जाने और कोविड 19 पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित करना। इस संदर्भ में भारत विश्व में अग्रणी भूमिका में कार्यरत हैं।
(विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित)

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments