उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने 25 सितंबर को अपने दूसरे कार्यकाल का छह महीना पूरा किया है। अगर समग्रता में देखें तो पहली बार उन्होंने आबादी के लिहाज से सबसे बड़े और राजनीतिक लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील सूबे की कमान मार्च, 2017 को संभाली थी। इस तरह 25 सितंबर को उनके कार्यकाल के साढ़े पांच साल पूरे हो जाएंगे। बतौर मुख्यमंत्री उनके अब तक के कार्यकाल पर गौर करें तो इस दौरान साल तो बदले, पर योगी का संकल्प नहीं बदला। दरअसल योगी आदित्यनाथ गोरखपुर स्थित जिस गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं वह देश की तमाम अन्य पीठों से अलग है। जहां अधिकांश पीठों के पीठाधीश्वरों के लिए खुद की मोक्ष की कामना सर्वोपरि होती है, वही देश की प्रमुख पीठों में शुमार गोरक्षपीठ के लिए लोककल्याण सर्वोपरि रहा है। बेहतर शिक्षा, सस्ते में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं, और किसानों की बेहतरी पीठ के एजेंडे में सर्वोपरि रहे हैं। 1932 में योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी हर विधा की करीब चार दर्जन शिक्षण संस्थान पूर्वांचल में शिक्षा का अलख जगा रहीं हैं। गुरु श्री गोरखनाथ चिकित्सालय वर्षों से लोगों का सस्ते में अद्यतन इलाज कर रहा है। समय-समय पर संस्थान ग्रमीण क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य शिविर आयोजित करता है। गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय इसका नया प्रकल्प है। एक तरह से खुद में यह इंटीग्रेटेड यूनिवर्सिटी है। इसमें वेद से लेकर विज्ञान तक ही हर फैकल्टी है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी साल बदलते गये पर उनका संकल्प जस का तस रहा। उनके तमाम निर्णय किसान, गरीब, युवा और महिलाएं ही सर्वोपरि रहे। इनको केंद्र में रखकर मार्च 2017 में सत्ता संभालने के पहले दिन से जो काम शुरू हुए, उनका सिलसिला बिना रुके, बिना थके, बिना डिगे लगातार जारी है। यहां तक कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा।
योगी ने सत्ता संभालने के पहले दिन ही संकेत दे दिया कि यह सिर्फ नाम के नहीं, सचमुच के धरतीपुत्र हैं। राज्य सरकार के संसाधनों से 86 लाख लघु- सीमांत किसानों के 36 हजार करोड़ रुपये की कर्ज की माफी का फैसला खुद में अभूतपूर्व था। बाद में यह फैसला कई राज्यों के लिए नजीर बना। योगी के नेतृत्व में ही पहली बार किसी सरकार ने आलू किसानों को राहत देने के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की।
वर्ष 2019 में उनकी पहल पर कृषि कुंभ जैसा नायाब आयोजन लखनऊ में हुआ। देश-दुनिया में खेतीबाड़ी के क्षेत्र में जो हो रहा है, उसके लिए “द मिलियन फार्मर्स स्कूल” योजना से अब तक करीब एक करोड़ किसानों को खेती के उन्नत तौर-तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जा चुका है। वैश्विक महामारी कोरोना का ब्रेक नहीं लगता तो यह संख्या इससे अधिक होती। स्थानीय स्तर पर कृषि प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों की संख्या 69 से बढ़कर 89 हो गई। किसान कल्याण केंद्र भी इसी मकसद से बनाए जा रहे हैं।
मिशन किसान कल्याण कार्यकम ब्लॉक स्तर पर जारी हैं। कहने को तो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत साल में तीनों फसली सीजन (रबी, खरीफ एवं जायद) में 2000-2000 रुपये की बराबर किश्तों में मिलने वाली 6000 रुपये की सालाना मदद कम है, पर यह किसानों के जिस वर्ग को मिल रही है उसके लिए फसली सीजन में समय से खेत की तैयारी से लेकर खाद-बीज जैसे जरूरी कृषि निवेश के लिहाज से बड़ी मदद है। इस योजना में उत्तर प्रदेश, देश में नंबर एक है। अब तक 11 किश्तों में प्रदेश के करीब 2.60 करोड़ किसानों के खाते में 48 हजार 311 करोड़ रुपये जा चुके हैं। इस योजना के तहत 12वीं किश्त भी शीघ्र जारी होने वाली है।
योगी सदैव किसानों की आय दोगुनी करने के फार्मूले पर काम करते हैं। इसी फॉर्मूले को आगे बढ़ाते हुए मुजफ्फरनगर एवं लखनऊ में गुड़ महोत्सव, झांसी में स्ट्राबेरी, सिद्धार्थनगर में कालानमक चावल महोत्सव का आयोजन किया गया। इन आयोजनों में समय के अनुसार मुख्यमंत्री की एक्चुअल या वर्चुअल रूप से भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि वह किसानों के हितों के प्रति किस कदर संजीदा हैं। गेहूं, धान और गन्ने की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद और भुगतान का रिकॉर्ड भी योगी सरकार के ही नाम है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का किसानों को का अधिकतम लाभ मिले इसके लिए सरकार ने न केवल इसे लागत से जोड़कर दाम बढ़ाए, बल्कि खरीद का दायरा भी बढ़ा। प्रदेश में पहली बार, चना, मक्का, सरसों आदि की पहली बार खरीद हुई। मंडी शुल्क में 1 फीसद कमी, 45 कृषि उत्पादों को मंडी शुल्क से छूट, मंडियों का आधुनिकीकरण, जैविक प्राकृतिक या जीरो बजट की खेती को प्रोत्साहन, नई चीनी मिलों की स्थापना, पुरानी मिलों का आधुनिकीकरण एवं क्षमता विस्तार जैसे कार्य भी इसके प्रमाण हैं।
हालिया उदाहरण अगस्त के दूसरे हफ्ते का है। प्रदेश में औसत से कम बारिश होने पर मुख्यमंत्री ने ताबड़तोड़ बैठकें कर किसानों के हित में कई निर्देश दिए। मसलन दो करोड़ किसानों को निशुल्क तोरिया के मिनीकिट, उद्यान विभाग के सेंटर फॉर एक्सीलेंस एवं मिनी सेंटर ऑफ एक्ससिलेंस से सब्जियों के पौध एवं सब्जियों के मिनीकिट वितरण एवं नलकूपों के बकाये में बिजली न काटने एवं राजस्व वसूली पर रोक देने जैसे निर्देश दिये। इस दौरान कम बारिश के कारण हुई क्षति के आकलन का काम भी जारी है।
पहले की सरकारों की प्राथमिकता गन्ना मिलों को कौड़ी के दामों पर बेचने और उनको बंद करने की थी, जबकि योगी सरकार के कार्यकाल में गोरखपुर की पिपराइच और बस्ती की मुंडेरवा में आधुनिक चीनी मिलें लगीं। रमाला सहित 20 चीनी मिलों का आधुनिकीकरण भी कराया गया। योगी सरकार के अब तक के प्रयासों से स्थिति पलट गई। पिछली सरकारों की नीतियों के कारण गन्ने की जिस खेती से किसान किनारा करने लगे थे, वही अब उनकी पसंदीदा फसल बन गई। इस दौरान न केवल खेती का रकबा बढ़ा, बल्कि चीनी का परता भी बढ़ा। नतीजतन, गन्ना एवं चीनी के उत्पादन में उप्र लगातार देश में नम्बर वन है। वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान सभी 119 मिलों को चलाकर योगी सरकार ने नजीर कायम किया। इस दौरान कोरोना के खिलाफ जंग में प्रभावी हथियार के रूप में सेनेटाइजर का भी रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। इसका प्रदेश में तो उपयोग हुआ ही, दूसरे प्रदेशों में भी निर्यात हुआ।
कहा जाता है कि खेती सब कुछ की प्रतीक्षा कर सकती है, पर पानी की नहीं। फसल को पानी चाहिए, वह भी समय पर। योगी सरकार का सिंचाई पर खासा जोर रहा। इसका परिणाम है कि 46 साल से लंबित बाणसागर परियोजना के साथ, सरयू नहर एवं अर्जुन नहर सिंचाई परियोजना समेत सैकड़ों की संख्या में छोटी सिंचाई परियोजनाएं पूरी की गईं। किसानों को 80 से 90 फीसद अनुदान देकर सिंचाई की अपेक्षाकृत दक्ष विधाओं ड्रिप और स्प्रिंकलर के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। 30864 किसानों को 40 से 70 फीसद अनुदान पर सोलर पम्प दिया गया। बुंदेलखंड में सूखे के समय सिंचाई के लिए अब तक 24583 खेत तालाबों का निर्माण, डार्क जोन में नलकूप लगाने की अनुमति, बहुउद्देशीय गंगा तालाबों का निर्माण आदि इस क्षेत्र में सरकार की प्रमुख उपलब्धियां रहीं।
सरकार चाहती है कि प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में प्रदेश के युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के नाम से निःशुल्क कोचिंग की शुरुआत की गई। अब तक लगभग 5 लाख युवाओं को पूरी पारदर्शिता से सरकारी नौकरी। नौकरी पाने वालों में करीब एक लाख महिलाएं हैं। इसी तरह उनके कार्यकाल में 2 करोड़ से अधिक लोगों को स्वरोजगार मिल चुका है। सरकार एक परिवार, एक रोजगार के एजेंडे पर काम कर रही है।
महिलाओं के लिए मिशन शक्ति का कार्यक्रम चल ही रहा है। इस समय इस योजना का चौथा चरण चल रहा है। महिलाओं को सशक्त, स्वावलम्बी बनाने के लिए सरकार की अन्य योजनाएं भी चल रहीं हैं। इनसे प्रदेश की करोड़ों की संख्या में जरूरतमंद महिलाएं एवं बच्चियां लाभान्वित हो रहीं हैं। इन योजनाओं का दायरा एक बच्ची के जन्म से लेकर पढ़ाई, विवाह एवं मृत्युपर्यंत है।
इसी तरह चिकित्सा के क्षेत्र में भी सरकार की उपलब्धियां बेशुमार है। गोरखपुर में एम्स की स्थापना, इन्सेफेलाइटिस का लगभग उन्मूलन के बाद सरकार सबको पास में सस्ता एवं आधुनिक इलाज मुहैया कराने के लिए एक जिला एक मेडिकल कॉलेज की ओर मजबूत कदम बढ़ा चुकी है। इस बीच प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को भी सभी सुविधाओं से लैश किया जा रहा है ताकि लोगों को स्थानीय स्तर पर ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकें।