Wednesday, June 26, 2024
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युवा जनसंख्या देश की बड़ी शक्ति

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DR VISHESH GUPTAपिछले दिनों नबंवर 2022 में वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू रिपोर्ट और यूनाइटेड नेशंस के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग की ओर से जारी-विश्व जनसंख्या संभावनाएं-2022 की रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.66 अरब होने की संभावनाएं व्यक्त की गईं थीं। साथ ही इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि भारत की यह जनसंख्या चीन की संभावित 1.33 अरब की जनसंख्या से काफी अधिक होगी। परंतु अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट-दि स्टेट ऑफ वर्ल्ड पापुलेशन-2023 ‘एट विलियन लाइब्स, इनफिनिट पॉसिविलिटीज: दि केस फॉर राइट्स एंड च्वाइस’ नामक शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित हुई है। इसमें भारत की जनसंख्या के एक अरब, 42 करोड़ , 86 लाख होने का अनुमान लगाया गया है।

दूसरी ओर चीन की जनसंख्या को एक अरब, 42 करोड, 57 लाख बताया गया है। यहां विश्व की जनसंख्या से जुड़े आंकड़ों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि विश्व में 7 अरब की जनसंख्या तक पहुंचने में लगभग 207 वर्षों का समय लगा।

दूसरी ओर इसके 7 से 8 अरब तक पहुंचने में मात्र 12 वर्ष ही लगे। विश्व स्तर पर आबादी की बढ़ती रफ्तार केवल विकासशील देशों के लिए ही नहीं, बल्कि विकसित राष्ट्रों के लिए भी बहुत बड़ी चिंता का विषय बनी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व स्तर पर अनेक ऐसे देश हैं जो अपनी सामाजिक व आर्थिक कामयाबी का परचम लहरा रहे हैं।

परंतु वहीं दूसरी ओर बढ़ती जनसंख्या और उनके मानव संसाधन के रूप में रूपान्तरित न होने के कारण से दुनिया के अनेक देश निरंतर बिगड़ते पर्यावरण, खाद्य आपूर्ति, पानी की समस्या, भुखमरी, बेरोजगारी, अवसाद,आत्महत्या तथा आतंकवाद जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

विश्व स्तर पर ऊर्जा की बढ़ती खपत और आक्रामक उपभोग के चलते दुनिया के अनेक शहर पर्यावरण प्रदूषण के साथ में ‘हीट आइलैंड’ बनकर रह गए हैं। भारत से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि भारत की जो आबादी 1951 में 36 करोड़ थी 72 वर्षों वह बढ़कर 1.42 अरब तक पहुंच गई है।

सच्चाई यह है कि भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या की 17.5 फीसदी है तथा विश्व की धरती का यहां दो प्रतिशत हिस्सा है। यह सच है कि भारत की यह जनसंख्या अमेरिका, जापान, रूस, इंडोनेशिया और ब्राजील सबकी जनसंख्या के बराबर है।

1.42 अरब की आबादी वाले भारत ने विशेषज्ञों की अनेक भविष्यवाणियों को नकारकर 2023 में ही जनसंख्या के मामले में हमसे बड़ी आबादी वाले देश चीन को पछाड़ दिया है।`2050 तक हम चीन से 30 करोड़ अधिक होकर 1.72 अरब हो जाएंगे। हाल के आंकड़े बताते हैं कि विगत दशक में जनसंख्या के बढ़ने की दर में कमी आई है।

पर्रंतु लिंगानुपात के मामले में अनेक उपायों के बाद भी भारत अभी विश्व के कई विकासशील देशों से पिछड़ा हुआ है। 0 से 6 वर्ष के मध्य बाल लिंगानुपात विश्व के 927 के मुकाबले यहां 919 ही रह गया है। साक्षरता के आंकड़े पूर्व की तुलना में बेहतर आए हैं।

अर्थात भारत में जहां पहले दो तिहाई से कम आबादी साक्षर थी, वहीं हाल के आंकड़ों के अनुसार आज लगभग तीन चौथाई आबादी साक्षर है। पिछले एक दशक में पुरुष साक्षरता में जहां मात्र दस फीसदी की वृद्धि हुई, वहीं स्त्री साक्षरता में इस बीच 25 फीसदी की वृद्धि निश्चित ही उल्लेखनीय कही जा सकती है।

भारत में आज लगभग एक तिहाई आबादी 15 साल से कम उम्र की है, जबकि दूसरी ओर युवाओं की जनसंख्या 55 प्रतिशत से अधिक है। कुछ विशेषज्ञों ने युवाओं की बढ़ती इस जनसंख्या को जनसांख्यिकीय लाभांश तथा कुछ ने इसे जनसांख्यिकीय घाटा माना है।

इस जनसंख्या को लाभांश के रूप में स्वीकार करने वालों का तर्क यह है कि आज का अल्पायु किशोर कल का व्यस्क नागरिक बनेगा जिससे कार्यशील युवाओं की संख्या बढ़ेगी। दूसरी ओर पश्चिम के देशों जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन में जहां जनसंख्या के बढ़ने का स्तर शून्य हो चुका है, वहां भविष्य में वृद्धजनों की संख्या बढ़ेगी और कार्यशील जनसंख्या कम होती जाएगी, जिससे उत्पादन स्वत: ही घटेगा।

परंतु भारत में ऐसा नहीं है। ऐसी बढ़ती जनसंख्या को घाटा स्वीकार करने वालों का तर्क यह है कि इन बच्चों के युवा होने में कई वर्ष लग जाएंगे तथा उन्हें कार्यशील और कौशलयुक्त बनाने के लिए शिक्षा और शिक्षण के लिए अनेक संस्थाओं की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

उनके बेहतर स्वास्थ्य की देखभाल करते हुए पोषाहार के साथ में पहनने के लिए कपड़े और आवागमन के लिए यातायात साधन उपलब्ध कराने होंगे। स्पष्ट है कि ऐसे बच्चों के युवा होने तक उनके भरण-पोषण में काफी धन व्यय होगा जिसका प्रबंधन आसान नहीं होगा।

साथ ही परावलंबी लोगों का प्रतिशत जो अभी 32.2 है वह अमृतकाल समाप्त होने यानि 2047 तक बढ़कर 43.7 प्रतिशत हो जाएगा। तब इस आबादी के लिए सामाजिक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने पड़ेगें। भारत आज दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला पहला देश है। यह भी सत्य है कि आज दुनिया की धरती पर प्रत्येक छ: लोगों में एक भारतीय है।

किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि हमने अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप किस सीमा तक राष्ट्र, समाजोपयोगी व कौशलयुक्त मानव संसाधन के रुप में रूपान्तरित किया है। अनुमान है कि 2047 तक भारत में एक अरब से भी अधिक आबादी काम करने के योग्य होगी।

यहां खास बात यह है कि हमारी यह क्रियाशील आबादी यूरोप की कुल जनसंख्या से 1.6 गुना होगी। बल्डोमीटर के अनुसार 2050 में भारत में काम करने की आयु जहां 37 साल होगी, वहीं अमेरिका में यह आयु 40 साल, चीन में 49 साल, ब्रिटेन में 45 साल तथा जापान में यह आयु 52 साल होगी।

आज ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, इंडिया,जापान और चीन) में जन्म दर और जनसंख्या वृद्धि दर लगातार घट रही है। भविष्य में केवल भारत देश ही ऐसा होगा जहां कि कार्यशील और ज्ञानाश्रित व कौशलयुक्त युवा जनसंख्या सम्पूर्ण विश्व में अपना परचम लहराएगी।

इसलिए आज युवा जनसंख्या ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। समाधान के लिए एक ओर जहां भारत को इस समय अपनी इस युवा जनसंख्या को कौशलयुक्त संसाधन में रूपान्तरित करना होगा, वहीं दूसरी ओर देश हित में जनसंख्या नियंत्रण के लिए संसद में निजी विधेयक प्रस्तुत करने का जो सिलसिला 1983 से शुरू होकर नई जनसंख्या नीति 2000 तक आया है, उसे अटूट राजनीतिक इच्छाशक्ति से लागू किया जाना समय की मांग है। तभी हमारी आबादी हमारे लिए एक आदर्श जनसंख्या सिद्ध होगी।


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