किसी शहर में एक लुहार रहता था। वह अपना काम ईमानदारी और मेहनत से करता था। कुछ ही समय में उसने अपना एक चिह्न बना लिया। अब वह लोहे की कोई भी वस्तु बनाते समय उसमें अपना चिह्न अवश्य बनाता था। धीरे-धीरे वह काफी संपन्न हो गया। उसका व्यापार भी काफी बढ़ गया था। एक दिन चोरों ने उसके घर पर धावा बोला और उसे लोहे की बेड़ियों में जकड़ कर अंधेरी रात में कुएं के अंदर फेंक दिया। लुहार पूरी रात उस कुएं से निकलने के लिए संघर्ष करता रहा, लेकिन असफल रहा। दिन निकलने पर कुएं में सूर्य की किरणें पहुंचीं। अचानक लुहार की नजर अपने हाथों में बंधी लोहे की बेड़ियों पर पड़ी तो वह यह देखकर दंग रह गया कि वह बेड़ियां उसी के द्वारा बनाई हुई थीं। उसमें उसका चिह्न भी लगा हुआ था। लुहार को मालूम था कि उसके द्वारा बनाई हुई हर वस्तु मजबूत होती है। उसने उस बेड़ी को खोलने के अनेक प्रयास किए। फिर उसने सोचा कि जब वह अपनी कुशलता और मेहनत से मजबूत बेड़ी बना सकता है तो वह उसी कुशलता और मेहनत का प्रयोग कर उस बेड़ी से अपने हाथों को मुक्त भी कर सकता है। उसने कुएं में अपना सारा अनुभव, शक्ति और बुद्धि उस बेड़ी को खोलने में लगा दी। उसे याद आया कि लोहा, लोहे को काटता है। यह देखकर उसने बेड़ियों को आपस में जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। वह थक गया, लेकिन उसने उन बेड़ियों को रगड़ना जारी रखा। आखिर काफी देर बाद उसकी मेहनत रंग लाई और बेड़ी तेज रगड़ से खुलकर एक ओर गिर गई। यह देखकर लुहार अपनी बुद्धि और कुशलता पर अत्यंत खुश हुआ और उस कुएं से बाहर आ गया। बाहर आकर उसने जान लिया कि उसकी योग्यता, कुशलता और मेहनत ने ही उसे मुसीबत से बाहर निकाला है। वह और भी ज्यादा मेहनत से काम करने लगा।