Monday, April 28, 2025
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इस्लाम का अहम स्तंभ है जकात

Sanskar 6


37 5इस्लाम के पांच स्तंभों मे से एक मुख्य स्तम्भ जकात है। जकात अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ” ‘पाक (पवित्र) करना’। इस्लाम के अनुसार किसी भी धनवान व्यक्ति के लिए कोई भी धन जब तक पवित्र और प्रयोग करने योग्य नहीं है, जब तक वह अपने धन की जकात न निकाल दे।
जकात 2.5 प्रतिशत निर्धारित की गई है अर्थात प्रति 100 रुपये में से 2.5 रुपये या प्रति 1000 रुपये में से 25 रुपये। जकात सिर्फ धनवान पर फर्ज है। इस्लाम ने धनवान उस व्यक्ति को माना है, जिसके पास जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के अतिरिक्त 52.5 तोले चांदी (वर्तमान मे 612:.5 ग्राम ) या इसकी कीमत के बराबर नकद धनराशि, सोना, व्यापारिक वस्तुएं (बेचने के लिए खरीदी हुई जमीनें, दुकानें, मकान, मवेशी, दुकानों और गोदामो मे भरा माल ) हो और उस पर एक वर्ष गुजर जाए तो उस पर जकात फर्ज होगी।

दूसरा पैमाना 7.5 तोला सोना (वर्तमान मे 87. 48 ग्राम) है, लेकिन जिस दौर मे 52.5 तोले चांदी और 7.5 तोले सोने में से जिसकी कीमत कम होगी उसे ही पैमाना बनाया जाएगा ताकि अधिक से अधिक लोग जकात निकालें और अधिक से अधिक गरीब लोगों की मदद हो सके।

जकात फकीरों, गरीबों, मुसाफिरों, गुलामों और कैदियों की रिहाई, कर्जदारों का कर्ज उतारने, जकात के निजाम का प्रबंधन करने वालों आदि पर जकात खर्च की जा सकती है। इन सब मदों को आधार बना कर ही कुछ लोग जकात के पैसे से कोचिंग सेंटर और अस्पताल भी चला रहे हैं।

जकात देने के लिए कोई महीना या तारीख तय नहीं है, लेकिन अपनी सुविधानुसार कोई भी महीना तय कर लिया जाना चाहिए, जिससे आकलन करने मे आसानी रहे। अधिकतर लोग रमजान का महीना तय करते हैं। जकात एडवांस भी दी जा सकती है और किसी को यह बताए बिना भी दी जा सकती है कि यह धनराशि जकात की है। जरूरी नहीं कि जकात बहुत सारे लोगों को ही बांटी जाए। किसी एक को भी सारा पैसा दिया जा सकता है। जकात गुप्त रूप से भी दी जा सकती है और खुले रूप से भी।

जकात सही सही निकाली जाए, तो काफी हद तक समाज से अमीर और गरीब का अंतर कम किया जा सकता है। जकात के न निकालने से समाज मे असमानता फैलती है।

जकात न देने वालों पर कुरआज की सूर तौबा मे अल्लाह फरमाता है, वो लोग जो सोना चांदी (माल) को जमा करते रहते हैं और उसको अल्लाह के रास्ते मे खर्च नहीं करते हैं, उनके लिए दर्दनाक अजाब का ऐलान कर दीजिए। वो लोग उस दिन से डरें, जिस दिन इस सोना चांदी को गर्म करके उनके चेहरों और सीनों को जलाया जाएगा। इस्लाम धर्म का आर्थिक दर्शन यह है कि ज़्यादा से ज़्यादा माल अमीरों से गरीबों की तरफ जाए।


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