Sunday, June 22, 2025
- Advertisement -

गांधी परिवार का गहलोत ने तोड़ा भरोसा

Nazariya 22


PRABHUNATH SHUKLAराजस्थान का राजनीतिक संकट कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए सबसे बड़ा सबब है। यह संकट एक तरफ सत्ता और दूसरी तरफ पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था का है। निश्चित रूप से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों का सामूहिक त्यागपत्र करा गांधी परिवार का भरोसा तोड़ दिया है। गांधी परिवार उन पर अटूट भरोसा और विश्वास करता था। यही वजह थी कि 2018 में सचिन पायलट की बगावत को शांत कर प्रियंका गांधी ने अशोक गहलोत का सियासी संकट खत्म कर दिया था। लेकिन बदली परिस्थितियों में गहलोत ने खुद संकट खड़ा कर दिया। उन पर अटूट भरोसे की वजह से ही कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उन्हें आगे लाया गया था। सोनिया गांधी को इसकी कभी उम्मीद नहीं रही होगी कि गहलोत उनकी दुर्गति करा देंगे। वर्तमान वक्त कांग्रेस के लिए संघर्ष का है। पार्टी के बेहद वफादार एक-एक करके टूटते चले जा रहे हैं। पूरे देश से कांग्रेस खत्म हो चली है। पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों ने गांधी परिवार और कांग्रेस का भरोसा खोया है। जिन लोगों को कांग्रेस ने अर्श से फर्श पर बिठाया उन्हीं लोगों ने पार्टी की पीठ में छुरा घोंप दिया। सत्ता की चाहत में गांधी परिवार की सबसे विश्वसनीय व्यक्तियों में एक अशोक गहलोत ने भी जो कार्य किया गांधी परिवार के लिए यह सबसे बड़ा झटका है। कांग्रेस की उम्मीद राहुल गांधी एक तरफ भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। देशभर से लोग यात्रा में जुड़ रहे हैं। यात्रा को भारी जनसमर्थन मिल रहा है। लेकिन राजस्थान में गहलोत और उनके विधायक बगावत पर हैं। गहलोत यह नहीं कह सकते कि सारे राजनीतिक घटनाक्रम में उनकी कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने साफ कहा है कि सचिन पायलट को हम किसी भी कीमत पर मुख्यमंत्री नहीं स्वीकार कर सकते हैं। यह बात सच है कि गहलोत के पास विधायक अधिक है। लेकिन अगर इसी बात पर पायलट भी अड़ जाएं तो क्या गहलोत मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। कोई भी पार्टी या संगठन अनुशासन, संतुलन और समायोजन से चलता है। व्यक्ति के अहम से नहीं।

कांग्रेस और गांधी परिवार के पास राजनीतिक संघर्ष के दिन है। अच्छे-अच्छे कांग्रेसी नेता पार्टी का साथ छोड़ते जा रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस को मुख्यमंत्री बदलना भारी पड़ता है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम सिंधु और आसाम में तरुण गोगोई और हेमंत विश्वा के झगड़े ने सम्बंधित राज्यों में कांग्रेस की जड़ें उखड़ कर रख दिया। संबंधित राज्यों के राजनेताओं ने आलाकमान नहीं सुनी। राजस्थान में उसी कहानी को अशोक गहलोत ने भी दोहराया है। कांग्रेस की मुख्यधारा से टूट कर जो लोग निकले हैं इतिहास गवाह है वह कुछ हासिल नहीं कर पाए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संगठन और आलाकमान का विश्वास तोड़ कर सत्ता के लिए सबसे बड़ी गद्दारी की है। यह वक्त कांग्रेस को फिर से खड़ा करने का है।

सत्ता के क्षत्रपों के लिए संगठन कोई मायने नहीं रखता। बदलते राजनीतिक परिवेश में कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व यानी सोनिया गाँधी की कोई अहमियत नहीं रह गई है। कांग्रेस में वह वक्त हुआ करता था जब आलाकमान की एक लाइन पार्टी का अंतिम फरमान साबित होती थीं। लेकिन राजस्थान का संकट यह साफ इशारा करता है कि अब वह दौर खत्म हो चुका है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसी भी स्थिति में पद नहीं छोड़ना चाहते। पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों रहना चाहते थे। लेकिन राहुल गांधी के दो टुक के बाद उन्होंने अपना नजरिया बदल दिया था। लेकिन सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की सुगबुगाहट से उन्होंने अपना दांव चल दिया।

राजस्थान के राजनीतिक हालात को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी को कड़े निर्णय लेने चाहिए। राजस्थान में कांग्रेस कहां जाएगी। उसका क्या होगा। तमाम ऐसे सवालों की चिंता छोड़ देनी चाहिए। अशोक गहलोत को हटाकर वहां नया मुख्यमंत्री चुनना चाहिए। अगर इससे के बाद भी बात नहीं बनती है तो मौन हो जाएं और खेल को देखें। कभी-कभी चुप रहना भी अच्छा होता है। सचिन पायलट जैसे नेताओं में राज्य का भविष्य दिखता है। सचिन युवा नेता है आने वाले कुछ सालों तक राजस्थान में कांग्रेस के लिए अच्छा काम कर सकते हैं। गहलोत को अब मुख्यमंत्री पद से हटा देना चाहिए। वैसे भी गहलोत अपने हरकत से कांग्रेस जैसे अध्यक्ष पद के लिए लायक भी नहीं हैं। सोनिया गांधी ने राज्य के प्रभारी अजय माकन, मलिकार्जुन खरगे और केसी वेणुगोपाल से लिखित रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट के आने के बाद निश्चित रूप से गहलोत के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। राज्य की सत्ता से गहलोत की विदाई मानी जा रही है।

अशोक गहलोत ने सत्ता की चाहत में सारा खेल बिगड़ दिया। सवाल उठता है कि संगठन में अगर लोग अपनी मर्जी के मालिक हो जाएंगे तो पार्टी कैसे चलेगी। कांग्रेस की संस्कति और शीर्ष नेतृत्व का क्या करेगा। अब वक्त आ गया है जब कांग्रेस को अनुशासन के मामले में और कठोर होना चाहिए। राजनीति के सूरमाओं को किनारे लगाना चाहिए। इस तरह के कठोर निर्णय से सोनिया गांधी और कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ऐसे हालात में कांग्रेस पास खोने के लिए क्या कुछ बचा है। नहीं फिर ऐसे लोगों को साफ करना ही अच्छा होगा। भविष्य में जो कांग्रेस आएगी उसके पास एक एक सोच, नई उम्मीद और नई उमंग होगी। निश्चित रूप से एक अच्छी कांग्रेस को खड़ा करने में वक्त लगेगा। लेकिन संघर्ष के दिनों को क्रांतिकारी बनाए रखने के लिए जोखिम भरे फैसले लेने की भी आवश्यकता है।


janwani address 6

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Salman Khan: बीमारी से जूझते हुए भी नहीं रुके सलमान, बोले-‘दर्द सहता हूं, पर काम नहीं छोड़ता’

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Viral Video: बच्ची संग गोविंदा का वीडियो वायरल, यूजर्स बोले ‘शर्मनाक हरकत’

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img