- रालोद का हटा वेंटीलेटर, लेने लगा ठीक से सांस, जिंदा होने की उम्मीद लौटी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ढहती सियासत बचाने में आखिर जयंत चौधरी कामयाब होते दिखे। 2017 के चुनाव के बाद से ही राष्टÑीय लोकदल वेंटीलेटर पर चल रही थी। तब एक विधायक छपरौली से था, वह भी भाग गया था। इसके बाद रालोद ‘शून्य’ पर आ गई थी। इसके बाद जो स्थिति रालोद की हुई, पहले कभी नहीं हुई थी। अब रालोद का वेंटीलेटर हट गया हैं, ठीक से सांस आने लगे हैं। जिंदा होती हुई भी दिख रही हैं। एक तरह से जयंत चौधरी एक तरह से देखा जाए तो फिर से वापसी कर गए हैं। राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाने के लिए। एक तरह से देखा जाए तो जयंत चौधरी हार कर भी जीत गए हैं।
जयंत चौधरी का आंकड़ा अब ‘जीरो’ से ‘आठ’ पर पहुंच गया हैं। दरअसल, जयंत चौधरी ने पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी ऐसे समय संभाली हैं, जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पार्टी की हालात तो 2019 के चुनाव में ही खराब हो गई थी। तब चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर और जयंत चौधरी बागपत लोकसभा से हार गए थे। किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे थे।
राजनीति की लंबी-चौड़ी विरासत कभी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की हुआ करती थी, उस चौधरी चरण सिंह के परिवार के सामने ऐसा समय भी आया कि किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। यह कष्ट तो चल ही रहा था, ऐसे में चौधरी अजित सिंह कोरोना से ग्रस्त हुए और जिंदगी खत्म हो गई। परिवार और राजनीति को संभालने की जिम्मेदारी जयंत के कंधों पर आ गई। ढहती सियासत बचाने की उन पर बड़ी जिम्मेदारी थी, जिसकी परीक्षा 2022 के विधानसभा चुनाव में हुई।
इस परीक्षा में पूरी तरह तो जयंत चौधरी पास नहीं हुए, लेकिन ढहती सियासत को बचाने में अवश्य ही कामयाब होते दिखाई दिये। जहां भाजपा ने 2017 में क्लीन स्विंग किया था, वहां भाजपा के विजय रथ को रोकने में बड़ी भूमिका रालोद की रही। मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, सहारनपुर में विजय रथ को रोकने की कोशिश हुई। कई ऐसे प्रत्याशी रालोद के रहे जो कम अंतर से हारे, जिसमें बड़ौत के प्रत्याशी जयवीर तोमर मात्र तीन सौ वोटें के अंतर से हार गए। इसी तरह से अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी रालोद ने अच्छा चुनाव लड़ा।
जयंत चौधरी ने उतार-चढ़ाव की राजनीति के दौरान अपनी वापसी की। जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे राजनीति के दिग्गज भाजपा का पश्चिमी यूपी में चुनाव प्रचार कर रहे थे, वहीं जयंत चौधरी अकेले ही भाजपा के दिग्गजों का मुकाबला कर रहे थे। फिर पार्टी के पास कोई फंड नहीं और जमीनी स्तर पर संगठन भी नहीं था। ऐसे में भाजपा के दिग्गजों का मुकाबला करना और अपने कार्यकर्ताओं का साहस भी बढ़ाना, इस तरह से जयंत चौधरी ने भाजपा के सियासी तीरों का भी सामना किया।