Friday, January 10, 2025
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हत्याओं के मुकाबले बढ़ रहीं आत्महत्याएं

 

Nazariya

 


Ali khanसमूचे विश्व और भारत में हत्याओं के मुकाबले आत्महत्याओं से मरने वालों की तादाद बेहद ज्यादा है। देश की सरकारें हत्याओं की तादाद को कम करने की कोशिश में पैसा और समय बखूबी खर्च करती हैं, लेकिन जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर एक लाख लोगों पर दो लोग हत्या में मारे जाते हैं, जबकि इससे पांच गुना ज्यादा मौतें आत्महत्या से होती हैं। यानी आज हमारे देश के ज्यादातर राज्यों में लोग हत्या से ज्यादा आत्महत्या से मर रहे हैं। बता दें कि इस रिपोर्ट में 5 मिलियन से ज्यादा आबादी वाले दुनिया के कुल 113 देशों का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि आज आत्महत्या, हत्या से भी बड़ा और गंभीर मुद्दा बन चुका है, जिसके बारे में सबसे कम बात होती है। लेकिन आज के हालात बता रहे हैं कि इस मुद्दे पर अब गंभीरता से विमर्श होना चाहिए। सरकारों के इसके प्रति गंभीर होना होगा।

भारत के संदर्भ में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में केरल में 323 लोग हत्या में मारे गए थे। जबकि इसी वर्ष 8 हजार 500 लोगों की मौत आत्महत्या से हुई। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 1024 लोग हत्या में मारे गए थे, जबकि आत्महत्या से मरने वालों की संख्या 7 हजार 710 थी। उत्तर प्रदेश में हत्या के मुकाबले आत्महत्या की घटनाएं 0.23 गुना ज्यादा होती हैं। जम्मू कश्मीर और नागालैंड में ये आंकड़ा एक-एक फीसदी है और सिक्किम में 25 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या से मर जाते हैं।

ऐसे में सवाल मौजूं है कि आखिर भारत में आत्महत्या की घटनाएं इतनी क्यों बढ़ रही हैं? जानकारों की मानें तो आत्महत्या की वजह सामाजिक, आर्थिक व चिकित्सकीय है। सामाजिक कारणों में अफेयर, शादीशुदा जिंदगी से जुड़ी चीजें, परिवार और मित्रों के साथ आने वाली दिक्कतों ने अवसाद और तनाव की स्थिति पैदा की जिसके चलते कई लोगों ने मौत को गले लगाया। आर्थिक कारणों में बिजनेस का डूबना, नौकरी का छूटना, आय का साधन न होना और कर्ज जैसी समस्याओं ने मानसिक स्वास्थ्य को खासा प्रभावित किया है।

वहीं चिकित्सकीय कारणों में लाइलाज शारीरिक और मानसिक बीमारी, गहरा डिप्रेशन, बुढ़ापे की परेशानी और अकेलापन शामिल हैं। ऐसी कई दुश्वारियों के चलते अवसाद की परिस्थितियां पनपी और आत्महत्या का रास्ता अपनाया।

भारत के अलावा दुनिया के अन्य देशों के हालातों पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि जापान में हत्या की तुलना में आत्महत्या की दर 60 फीसदी अधिक है। जापान में हर एक लाख लोगों पर 15 लोग आत्महत्या करते हैं, जबकि हर एक लाख लोगों पर वहां हत्या की एक घटना भी नहीं होती।

इसी तरह दक्षिण कोरिया में एक लाख लोगों पर हत्या की दर 0.58 है, जबकि आत्महत्या की दर 34 गुना ज्यादा 28.6 है। सिंगापुर में भी हत्या के मुकाबले आत्महत्या की घटनाएं 52 फीसदी ज्यादा होती हैं। हंगरी में यह आंकड़ा लगभग 24 गुना ज्यादा है, फ्रांस में साढ़े 9, स्पेन में 10, ब्रिटेन में 7, कनाडा में 5.4, रशिया में 2.2 और अमेरिका में हत्या के मुकाबले 2.2 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या से मरते हैं। दरअसल, उपर्युक्त सभी देश आज दुनिया के सबसे अमीर देशों की सूची में गिने जाते हैं और जहां का समाज बाकी देशों की तुलना में ज्यादा खुशहाल माना जाता है। लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि ये देश आर्थिक रूप से तो स्वस्थ हैं लेकिन यहां के लोगों का मन बहुत बीमार है।

दरअसल, कोविड-19 के आगमन के बाद से मानव कई प्रकार की परेशानियां झेल रहा है। आज मानव के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखने की है। पिछले कुछ समय से आत्महत्या, अवसाद, तनावग्रस्तता जैसे लफ्ज सुनने में कुछ ज्यादा ही आ रहे हैं। मानव की दुश्चिंताओं में दिनों-दिन बड़ी तेजी के साथ इजाफा हो रहा है।

इसके चलते मानसिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है, जिसका परिणाम है कि वह अपने आत्मविश्वास, सहनशक्ति और स्पष्ट जीवन लक्ष्य एवं संवेगों पर से नियंत्रण खो रहा है। मौजूदा तथाकथित प्रगतिशील दौर में मानव दुर्गति की ओर बढ़ रहा है। अवसाद और तनाव बढ़ाती जीवन शैली नकारात्मकता, निकम्मेपन और आत्महत्या जैसे विचारों को तरजीह दे रही है।

इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए कि कोविड-19 ने दुनिया के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था को धराशाई किया है। इन दिनों देश और दुनिया में महंगाई अपने शिखर पर है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि लगातार जारी है। कोविड-19 ने लोगों की आमदनी पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डाला है। इससे मुफलिस वर्ग का जीना दुभर हो गया है।

आर्थिक विषमताओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसी चलते देश में 2019 के मुकाबले 2020 में आत्महत्याओं के मामलों में इजाफा हुआ। लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि यह बढ़ोतरी आगे भी जारी रहेगी। जो वाकई चिंता का सबब है।

आज देश और दुनिया में हत्याओं को रोकने के लिए कानून बने हुए हैं, लेकिन आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोई कानून व्यवस्था नहीं है। लिहाजा, आत्महत्याओं को रोकने के लिए सरकारों को एक नई व्यवस्था तैयार करनी चाहिए। आज दुनिया की पहली प्राथमिकता अपराध को रोकना है। इसके लिए हर देश में पुलिस काम करती है। लेकिन हमें लगता है कि आज पूरी दुनिया को एक ऐसी वैक्सीन का इंतजार है, जो आत्महत्या को रोक सके।


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