- 2.67 प्रतिशत हिस्से पर ही मेरठ में बची है हरियाली, घना वन नहीं
- 200 फीट नीचे तक गिर चुका मेरठ में भूमिगत जल का स्तर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कोरोना की दूसरी लहर में जहां लोगों की सांसों का संकट रहा, वहीं चारों ओर आॅक्सीजन की कमी से भी सभी को गुजरना पड़ा, लेकिन उसके बावजूद लोग जागरूक होने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिसका अनुमान वन विभाग द्वारा हर साल किए जा रहे पौधरोपण से लगाया जा सकता है। मेरठ में कोरोना की दूसरी लहर का असर लोगों पर खूब देखने को मिला, क्योंकि यहां पेड़ पौधों की संख्या लगातार कम होने की वजह प्रदूषण अधिक बढ़ रहा है।
जिंदा रहने के लिए सभी को पानी और हवा चाहिए, लेकिन मेरठ में न तो साफ हवा है और न ही शुद्ध पानी। हरियाली की बात करे तो वह भी नाममात्र की है। वनीयकरण अभियान के वाबजूद हरियाली में मेरठ अभी अपने दो दशक पहले के स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। सूत्रों के मुताबिक मेरठ पौधों से मात्र 2.67 प्रतिशत ही हरा-भरा है। घने वन मेरठ में नहीं है।
इतना ही नहीं पानी की गुणवत्ता भी खराब है। साल के 12 महीने में कुल दो माह की लोगों को साफ हवा मिल पाती है। बाकी 10 माह मेरठ के लोग दूषित हवा के साथ सास लेते है। चौधरी चरण सिंह विवि के टॉक्सिकोलॉजी विभाग के असिस्टेंड प्रोफेसर डॉ. यशवेंद्र कुमार का कहना है कि मेरठ के भूमिगत जल में लैड, कैडियम और क्रोमियन जैसे विषैले तत्व मिल रहे है।
यह तीनों ही तत्व कैंसर समित गंभीर बीमारियों को पैदा करते है। मेरठ में भूमिगत जल 200 फीट नीचे तक गिर चुका है। विश्व पर्यावरण दिवस पर जल और हरियाली के यह आंकड़े डराने का काम जरूर करते हैं, लेकिन सच यही है। मेरठ में पानी से लेकर हवा तक खराब हो चुकी है।
नहीं बढ़ रहा मेरठ में हरियाली का स्तर
मेरठ की धरती की बात करे तो यहां तीन फीसदी भी हरियाली नहीं है। भले ही वन विभाग की ओर से हर साल लाखों की संख्या में पौधरोपण कराया जा रहा है। मगर आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं। 2019 की रिपोर्ट बताती है कि मेरठ में मात्र 2.67 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र हरा-भरा है। मेरठ में घना क्षेत्र 2001 के बाद गायब हो चुका है। 2559 वर्ग किमी भौगोलिक क्षेत्र वाले मेरठ में 34 वर्ग किमी मध्यम और 34.41 वर्ग किमी खुला वन क्षेत्र है। 2021 की रिपोर्ट की जानकारी अभी तक नहीं मिल सकी है।
मेरठ में प्रदूषण के कारक
- हरियाली का दिनो दिन कम होना और कैंट से अधिक शहर के हालात खराब हरियाली गायब।
- काली नदी का प्रदूषण आज तक नहीं रुका।
- 400 से अधिक ऊद्योगों का रसायन युक्त पानी नालों और नदियों में।
- थापरनगर, बेगमपुल, सिविल लाइन की हवा सबसे अधिक दूषित।