विश्व खाद्य कार्यक्रम धरती से भूख खत्म करने के लिए काम करता है। 2015 में उसने 88 देशों में करीब दस करोड़ लोगों की मदद की जो कि भूख और खाद्य असुरक्षा के शिकार थे। इसके प्रयासों के बावजूद भूखों की संख्या 2019 में बढ़ कर तेरह करोड़ पचास लाख हो गई। ज्यादातर भूखे लोग उन देशों में रहते हैं जहाँ युद्ध और सशत्र संघर्ष होते रहते हैं। कुटिल राजनीति, युद्ध की क्रूरता, वैचारिक असंवेदनशीलता पहले युद्ध के हालात बनाती है, पीड़ितों को भुखमरी तक पंहुचाती है और उसके बाद भूखों के लिए काम करने वालों के लिए नोबेल पुरस्कार का ऐलान करती है! यह हमारा ही रचा हुआ जाल है। दुनिया एक साथ प्रचुरता और अभाव दोनों की समस्याओं से जूझ रही है। दो अरब लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं, और एक अरब से ज्यादा लोग ज्यादा खाकर बीमार पड़ते हैं या जंक फूड खा-खाकर मर जाते हैं। अपने पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों के साथ भोजन हमारे समय के सबसे गंभीर मुद्दों में से है। आॅक्सफैम की जुलाई 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक यदि तुरंत कोई उपाय नहीं किए गए तो भुखमरी वायरस की तुलना में ज्यादा लोगों की जानें लेगी। रिपोर्ट बताती है: वैश्विक महामारी करोड़ों लोगों के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होगी। ऐसे ही लोग क्लाइमेट परिवर्तन, असमानता और एक विखंडित खाद्य प्रणाली से जूझ रहे हैं। गौर करें कि भूख का कारण अन्न का अभाव नहीं, अन्याय है। सेहत के लिए उपयोगी कहे जाने वाले आहार को अब कई तरह से परिभाषित किया जा रहा है। प्राकृतिक भोजन, जड़ी-बूटियां, खनिज, विटामिन की दवाइयां, सप्लीमेंट और अब सुपरफूड के रूप में उनका नवीनतम चेहरा हमारे सामने है। इस नामकरण का कोई कानून या वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग अलग संस्कृतियों में भोजन का अर्थ भी अलग है। वुहान के वेट मार्केट में बिकने वाला भोजन हमारे यहां खाने की चीज ही नहीं, और इसी तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में रोज खाया जाने वाला भोजन नगालैंड और मेघालय में विचित्र समझा जाएगा। वीगन के लिए दूध और उससे बनी चीजें वही हैं जो शाकाहारी के लिए मांस है। पर इन सभी विरोधाभासी बातों के बीच यहां यही समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे सुपर फूड के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।
बेंगलुरु में रहने वाले पोषण एवं आहार विशेषज्ञ संजीव शर्मा मानते हैं कि सुपर फूड इन दिनों एक तरह का अंधविश्वास बने हुए हैं। जब तक आप किसी बीमारी की जड़ पर काम नहीं करते, तब तक उसके खत्म होने की संभावना बहुत कम होती है। सुपर फूड को ऐसे भोजन के रूप में विज्ञापित किया जाता है मानों उससे मोटापा, खनिज वगैरह की कमी, रक्तचाप, थायरॉइड, मधुमेह जैसी बीमारियां रफूचक्कर हो जाएंगी। संजीव बताते हैं कि ‘बाजार की कृपा’ से लहसुन से लेकर सिरका, किनोआ, हल्दी, मेथी और आॅलिव आयल, अलसी, तरबूज, खरबूज के बीज और नारियल तेल, सभी सुपर फूड की श्रेणी में आ गए हैं। वह कहते हैं कि यह जानने के लिए हमें विशेषज्ञ बनने की दरकार नहीं कि जब तक कारण मौजूद रहेगा, उसका असर भी देह पर आएगा ही। नींबू से कोई पतला होने से रहा, और मेथी दाने से मधुमेह जाने से रहा। सुपर फूड के विज्ञापन आम जनता को बुरी तरह गुमराह कर रहे हैं। साधारण से दिखने वाले कुट्टू का आटा जिसका उपयोग लोग व्रत में करते हैं, अब बकवीट के अंग्रेजी नाम से सुपर फूड में तब्दील हो गया है। जई जो सबसे पुराना अनाज है, ओट के अवतार में स्टेटस का प्रतीक बन गया है। कभी आम आदमी की थाली से हल्दी, लहसुन जैसी चीजें गायब होकर अचानक सुपर फूड बन कर ग्राहकों के बीच मारामारी का कारण बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए! कइयों को गेहूं के ग्लूटेन से एलर्जी है। गेहंू की ज्यादातर किस्में खत्म हो चुकी हैं और दस हजार साल पहले उगाया गया यह अनाज पिछले कुछ वर्षों से एक खास वर्ग के लिए त्याज्य अनाज बन चुका है। कई रसोइघरों में गेहंू के दर्द का फायदा उठाते हुए तेजी से बाजरा, रागी, जौ, जई और चना तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं। कई तरह के अनाज से बनने वाली मल्टी ग्रेन रोटी खाने वाले गर्व के साथ चलते हैं, क्योंकि आहार के मामले में यह उनकी बोधिप्राप्त दशा को दर्शाती है। नवउदारवाद की भाषा कारोबार और विज्ञापन की भाषा है और सुंदरता बढ़ाने के अपने नारों से वह स्त्रियों को लुभाने की कोशिश करता है।
सुपर फूड के दीवानों को यह समझने की जरूरत है कि शरीर को सिर्फ एक तरह के बीज, रेशे और खास तरह के एक ही अनाज की नहीं, बल्कि कई तरह के खनिज, सूक्ष्म खनिज और विटामिन की भी दरकार है। सुपर फूड के दीवाने नारियल के तेल को लेकर मानते हैं कि अल्झाइमर रोग, मधुमेह और थाइरॉइड को ठीक करने में यह कारगर है। यह वजन कम करने में भी सहायक है जबकि पोषण विशेषज्ञ इसे अन्य किसी भी अन्य तेल की श्रेणी में रखते हैं। भोजन के प्रति जागरूकता बहुत छोटी उम्र से ही जरूरी है। आम तौर पर दाल, रोटी,सब्जी और चावल का भारतीय भोजन बहुत ही पोषक और उम्दा होता है। प्रोटीन की कमी को तरह तरह के बीजों और सूखे मेवे से या फिर चने और दालों से पूरा किया जा सकता है। अंडे भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं और अब जर्दी भी कोलेस्ट्रॉल बढाने वाली नहीं मानी जाती, जैसा कि पहले माना जाता था। आहार के संबंध में स्कूलों में ही जानकारी दी जानी चाहिए चाहिए, क्योंकि शारीरिक सेहत के अलावा यह मन की सेहत भी बनता बिगाड़ता है। इसे लेकर शिक्षकों, अभिभावकों सभी को सामान रूप से सजग रहने की जरूरत है।