- मुगलों के खिलाफ कृपाण से बहादुरी दिखाने पर नाम पड़ा था तेग बहादुर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: गुरु तेग बहादुर साहिब सिखों के नौवें गुरु थे। उनका पहला नाम त्याग मल था। सिख धार्मिक अध्ययन में उनका उल्लेख ‘संसार की चादर’ के रूप में किया गया है। जबकि भारतीय परंपरा में उन्हें ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है।
सिख इतिहासकार सतबीर सिंह अपनी पुस्तक ‘इति जिन करी’ में लिखते हैं, ‘गुरु तेग बहादुर का जन्म विक्रम संवत 1678 के पांचवें वैसाख के दिन हुआ था।
आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से ये दिन था शुक्रवार और तारीख थी एक अप्रैल, 1621’ उनके पिता थे सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब और उनकी मां का नाम माता नानकी था। गुरु तेग बहादुर जी का जन्म अमृतसर के गुरु के महल में हुआ था। गुरु तेग बहादुर, गुरु हरगोबिंद साहिब के सबसे छोटे बेटे थे। गुरु तेग बहादुर ने अपनी आरंभिक शिक्षा भाई गुरदास जी से और शस्त्र विद्या भाई जेठा जी से ली थी।
उनकी शादी मार्च 1632 में जालंधर के नजदीक करतारपुर के भाई लाल चंद और माता बिशन कौर की बेटी बीबी गुजरी से हुई थी। गुरु हरगोबिंद साहिब मुगलों के साथ करतारपुर की लड़ाई के बाद जब किरतपुर जा रहे थे, तब फगवाड़ा के पास पलाही गांव में मुगलों के फौज की एक टुकड़ी ने उनका पीछा करते हुए अचानक उन पर हमला कर दिया था।
मुगलों से इस युद्ध में पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ तेग (कृपाण) का जलवा दिखाने के बाद उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर हो गया। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पुस्तक ‘सिख इतिहास’ के अनुसार, सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब जी का देहांत हो गया था।
उसके बाद मार्च 1665 को गुरु तेग बहादुर साहिब अमृतसर के नजदीक कस्बा बकाला में गुरु की गद्दी पर बैठे और सिखों के नौवें गुरु बने। औरंगजेब के अत्याचारों से परेशान कश्मीर के पंडितों ने गुरु तेग बहादुर साहिब को औरंगजेब की हुकूमत द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन और अपनी तकलीफों की लंबी कहानी सुनाई थी। तब गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया था कि एक महापुरुष के बलिदान से हुकूमत के अत्याचार खत्म हो जाएंगे।
वहां खड़े उनके पुत्र बालक गोबिंद राय (जो गुरु पद प्राप्त कर खालसा पंथ की स्थापना के बाद गुरु गोबिंद सिंह बने) ने सहज ही अपने पिता के आगे हाथ जोड़ कर अनुरोध किया कि पिता जी आपसे अधिक ‘सत पुरुष और महात्मा’ कौन हो सकता है? बालक गोबिंद राय की बात सुनने के बाद उन्होंने कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का आश्वासन दिया था।
सिख इतिहास के अनुसार, गुरु तेग बहादुर खुद दिल्ली जाने की तैयारी करने लगे। सतबीर सिंह के अनुसार, 11 जुलाई 1675 को वे पांच सिखों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुए। इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब के कहने पर गुरु साहिब और कुछ सिखों को मुगलों ने रास्ते में ही पकड़ लिया और दिल्ली ले आए। उसके बाद गुरु तेग बहादुर पर हुकूमत के हमले शुरू हो गए।
पहले मौखिक रूप से धमकी दी गई और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। भाई दयाला, भाई मति दास और भाई सती दास को पहले गुरु जी के साथ गिरफ्तार किया गया था और उन्हें प्रताड़ित किया गया। गुरु साहिब की आंखों के सामने उनका बर्बर तरीके से कत्ल किया गया था। भाई मती दास जी को आरी से दो भागों में काटा गया था। फिर भाई दयाला जी को कड़ाही के उबलते पानी में डालकर उबाला गया था।
वहीं हुकूमत के जल्लादों ने भाई सती दास जी को रुई में लपेट कर आग लगा दी दी। सिख इतिहास के अनुसार, दिल्ली में लाल किले के सामने जहां आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब स्थित है, वहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का सिर शरीर से अलग कर दिया गया था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की किताब ‘सिख इतिहास’ के अनुसार, गुरु तेग बहादुर के सामने उनको मारे जाने से पहले तीन शर्तें रखी गई थीं
कलमा पढ़कर मुसलमान बनने की, चमत्कार दिखाने की या फिर मौत स्वीकार करने की। गुरु तेग बहादुर ने शांति से उत्तर दिया था, हम ना ही अपना धर्म छोड़ेंगे और ना ही चमत्कार दिखाएंगे। आपने जो करना है कर लो, हम तैयार हैं। इतिहासकार प्रोफेसर करतार सिंह अपनी पुस्तक सिख इतिहास-भाग 1 में लिखते हैं, 11 नवंबर 1675 को सैयद जलालुद्दीन जल्लाद ने अपनी तलवार खींची और गुरु जी का सिर तलवार से अलग कर दिया था।