सर्दी अत्यधिक श्लेष्मा (श्लेष्मा का अर्थ होता सफेद रंग का पदार्थ जो गोंद की तरह दिखता है। ये अक्सर पेचिश रोग में मल त्याग के समय मे होता है।) उत्पन्न होने के कारण उत्पन्न होती है। दूषित तथा कुपित करने वाले पदार्थों को त्यागने के लिए शरीर को जो परिश्रम करना पड़ता है, उसी के फलस्वरूप श्लेष्मा उत्पन्न होती है। जब श्लेष्मा गले या सिर तक पहुंच जाती है, तब बहुत कष्ट होता है। श्लेष्मा की चिकित्सा करने का एकमात्र उपाय है श्लैष्मिक झिल्ली के सामान्य कार्य को फिर से चालू करना। कार्य को सामान्य रूप से चालू करने के लिए कुपित या उत्तेजित करने वाले कारणों को दूर कर शरीर को लाभ पहुंचाना चाहिए जिससे श्लेष्मा स्वाभाविक रूप से आंत के बाहर निकल जाए। सर्दी से बचाव हेतु नीचे कुछ उपाय दिए जा रहे हैं जिनका समुचित उपयोग करने पर सर्दी से बचा जा सकता है:
पैरों को सर्दी लगने से बचाइए। पैरों के ठंडेपन का प्रभाव हमारे शरीर के स्नायुओं पर बहुत जल्द पड़ता है जिससे पाचन क्रिया मंद हो जाती है तथा बहुत श्लेष्मा पाचन क्रिया प्रणाली में जमा हो जाती है। जो भी मनुष्य सर्दी की चपेट में आते हैं, उनके पहले पैर ही ठंडे होते हैं। यदि आपको इस प्रकार की शिकायत हो तो आप अपने दोनों पैरों को सोने से पहले ठंडे व गर्म जल से अच्छी तरह धोइए। इस प्रक्रिया के लिए एक मिनट तक पैरों को ठंडे व गर्म पानी में डुबो कर रखिये। दस मिनट तक पानी में रखने के बाद तौलिये से पैरों को अच्छी तरह से पोंछकर जुराब पहन लें। इससे सर्दी से बचा जा सकता है।
सुबह आठ से नौ के बीच खुली हवा में या फिर घर की छत पर पैदल चलिए। गहरी सांसें लीजिए। समय और स्थान अनुकूल हो तो ठंड में प्रतिदिन सूर्यस्नान करना भी शरीर के लिए फायदेमंद होता है। कब्ज के परिणामस्वरूप शरीर में श्लेष्मा की मात्र बढ़ने लगती है। आंत को साफ करने के लिए यदि रेचक पदार्थ की आवश्यकता हो तो भोजन लेने से पूर्व फल अथवा साग-सब्जियों का रस लेना उत्तम है। इससे पेट तो अच्छी तरह साफ होगा ही, श्लेष्मा भी बाहर निकल जाएगी।
श्लेष्मा बनाने वाले खाद्य पदार्थों का इस मौसम में पूर्णत: त्याग कीजिए। पनीर, मक्खन, दूध, खमीर से बनी रोटियां, तले हुए पदार्थ तथा कृत्रिम भोज्य पदार्थ पेट में श्लेष्मा बढ़ाने में सहायता पहुंचाते हैं, इसलिए कुछ सप्ताह के लिए जब तक आंत साफ न हो जाए, इन खाद्य पदार्थों को न खायें। वैसे ठंड के मौसम में इन्हें खाना फायदेमंद होता है पर इन्हें खाने से सर्दी-जुकाम आदि हो जाए तो इससे परहेज करना ही उचित होता है।
जीवनशक्ति प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों को आहार में स्थान दीजिए जैसे सलाद, फल, उबली हुई हरी पत्ती वाली सब्जियां, बादाम, अखरोट, खजूर इत्यादि। इसके साथ ही चाय, कॉफी या काढ़ा आदि का आहार में समावेश करने से ठंड नहीं लगती और जुकाम से भी बचाव होता है।
सब अन्न और रोटियों को लोचदार बनाइए। गेहूं की रोटी अन्य धान्य और धान्य के बने बिस्कुट से श्लेष्मा उत्पन्न करने वाले खमीर तथा कुकुरमुत्तों को नष्ट करने तथा सुगमता से पचने व उनके तत्वों को आत्मसात करने के विचार से अच्छी तरह सेंकना चाहिए। ठंड के मौसम में ज्वार-बाजरे की रोटी या मिस्सी रोटी खाना ठंड में लाभ पहुंचाता है, साथ ही जुकाम से भी बचाता है।
प्रतिदिन घर्षण स्नान करें। त्वचा को साफ रखने और उसके रक्त संचार को गतिमान करने तथा स्नायुओं की क्रिया को बनाए रखने और दूषित पदार्थों को नियमित रूप से त्याग करने के लिए प्रतिदिन सुबह के समय कुछ देर हवा में रहने के बाद अथवा जल से स्नान करने के बाद एक मोटे तौलिए से शरीर पोंछ डालिये। प्रत्येक शाम को हाथों पर मूंगफली के तेल से मालिश करनी चाहिए।
रोज सुबह कम से कम 15-20 मिनट तक शरीर को गर्म रखने वाला व्यायाम कीजिए। इसके लिए एक ही जगह पर खड़े होकर दौड़ना या रस्सी कूदना फायदेमंद होता है। इससे श्वसन क्रिया में तेजी आती है और फेफड़े आॅक्सीजन ज्यादा ग्रहण कर सकते हैं। आनंद कुमार अनंत