Sunday, July 20, 2025
- Advertisement -

वक्त के साथ अपनों की बेरुखी का शिकार हुआ घंटाघर

  • घंटाघर के आसपास गंदगी का माहौल
  • पानी की निकासी ठीक न होने से इमारत को पहुंच रहा नुकसान
  • एक जमाने में घंटाघर की घड़ी की आवाज 15 किमी तक सुनी जाती थी
  • इमारत की पहली मंजिल पर जलभराव और काई ने चुनौतियां खड़ी की

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: शहर का आन बान शान कहे जाने वाला घंटाघर अब शासन प्रशासन के साथ नगर निगम की उपेक्षा का शिकार हो चुका है। साफ सफाई से लेकर बरसात के पानी की निकासी कोई व्यवस्था नहीं होने से गंदगी का अंबार लगा हुआ है। साथ ही विद्युत विभाग की अनदेखी से तारों के जाल में घंटाघर फंस गया है। शासन प्रशासन से लेकर नगर निगम की उपेक्षा का दंश झेल रहा घंटाघर अब जहां बदसूरत दिखने लगा है तो वहीं इसके रख रखाव पर सवाल उठने लगा है।

दैनिक जनवाणी की टीम ने घंटाघर का ना केवल मौका मुआयना किया बल्कि कुछ खास लोगों से बातचीत भी है। क्या सुभाष चंद्र बोस के नाम से पहचान वाले इस घंटाघर के लिए एक क्रांति की दरकार है। पेश है एक पड़ताल रिपोर्ट…
वैसे तो मेरठ नगर निगम शहर शहर के विकास को लेकर एक से एक योजनाएं कागजों पर बनाता है मगर, शहर की आन बान और शान कहे जाने वाले घंटाघर को उसके हालात पर छोड़ दिया गया है।

नगर निगम की इस लापरवाही में जहां विद्युत महकमा भरपूर सहयोग कर रहा है तो वहीं पर्यटन विभाग भी साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। अब भला जिला प्रशासन पीछे क्यों रहे वह भी इस मसले पर कुंभकर्णी नींद में सोया हुआ है। एक जमाना था जब शहर में स्थित घंटागर की घड़ी हर आधे घंटे पर बजती थी तो पूरा का पूरा शहर घड़ी की सुई के साथ गतिशील हो जाता था, मगर अफसोस आज उसी घंटाघर की हालत पर जनप्रतिनिधियों से लेकर सरकारें और जिला प्रशासन को कभी तरस नहीं आई।

23 8

इस ऐतिहासिक इमारत को लेकर कभी कोई प्रयास न तो जनप्रतिनिधि करते हैं और न ही जिला प्रशासन, नतीजतन घंटाघर की इमारत के पहले फ्लोर पर जहां बरसात का पानी जमा रहता है जिसके कारण वहां काई और मिट्टी जमा हो रही है। तो वहीं घंटाघर से सटे विद्युत पोल पर इतने तार लिपटे हुए हैं मानो पूरे शहर की विद्युत सप्लाई यहीं से हो रही है। ब्रितानिया हुकूमत के दौरान साल 1913 में घंटाघर का निर्माण हुआ और इंग्लैंड से वेस्टन एंड वाच कंपनी की यह घड़ी 1914 में लगाई गई थी।

शहर के बीचो बीच होने के कारण घंटाघर क्षेत्र में आजादी की लड़ाई के लिए सभाएं होती थी, लेकिन आज की तारीख में घंटाघर ही बदहाल है। वयोवृद्ध शमसुल अजीज से जब हमने बात करनी शुरू की तो वो घंटाघर की शान के कसीदे पढ़ते पढते यादों के गलियारे में खो गए। इस घंटाघर की खासियत यह थी कि हर घंटे बाद इसके पेंडुलम की आवाज 15 किमी की परिधि तक पहुंचती थी। उस समय आज की तरह का शोरगुल नहीं था।

इसलिए इस घड़ी के पेंडुलम की आवाज को ही लोगों ने टाइम जानने का आधार बनाया हुआ था। लोग इस घड़ी की आवाज से अपना काम करते थे। अंग्रेजी शासन के दौरान घंटाघर की घड़ी ने अचानक समय बताना बंद कर दिया था। महीनों तक जब कोई कारीगर नहीं मिला तो तत्कालीन कलेक्टर ने जर्मनी की घड़ी कंपनी को इस समस्या के बारे में पत्र लिखा था। कंपनी ने जवाब भेजा कि मेरठ का रहने वाला अब्दुल अजीज एक बेहतरीन घड़ीसाज है, उसे इसकी मरम्मत के लिए भेजा जाएगा।

अब्दुल अजीज जब मेरठ पहुंचे तो कलेक्टर ने उन्हें इस घड़ी के रख रखाव की जिम्मेदारी दी। मेरठ का घंटाघर कितना प्रसिद्ध है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बॉलीवुड अभिनेता अपनी फिल्म ‘जीरो’ की शूटिंग पहले इसी लोकेशन पर करना चाहते थे। उन्होंने इस घड़ी को ठीक भी कराया था, लेकिन किन्हीं कारणों से बाद में इस मुंबई में ही घंटाघर का सेटअप तैयार किया गया था। शाहरुख की फिल्म ‘जीरो’ में मेरठ के घंटाघर को खास रूप से फोकस किया गया है।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Meerut News: कांवड़िये ऐसा काम ना करें, जो शरारती तत्व मुद्दा बनाएं: योगी

जनवाणी संवाददाता |मोदीपुरम: कांवड़ यात्रा भगवान शिव की भक्ति...

ED के वरिष्ठ अधिकारी कपिल राज का Resign, 16 वर्षों की सेवा के बाद अचानक लिया फैसला

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: देश के हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार मामलों...
spot_imgspot_img