Friday, September 20, 2024
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ईश्वर की शरण में जाएं

Sanskar 5


परमात्मा जिसने सभी जीवों को इस संसार में भेजा है, सदा उसका धन्यवाद करते रहने से हमारी परेशानियां खुशियों में बदल जाती हैं। खामोशी से उनका सामना करने पर वे सामान्यत: कम हो जाती हैं। धैर्य धारण करने पर धीरे-धीरे समय बीतते-बीतते वे समाप्त हो जाती हैं। जीवन में परेशानियां चाहे कितनी भी क्यों न आ जाएं, यदि उनके बारे में सदा चिंता ही करते रहो अथवा सोचते रहो तो वे कम होने के स्थान पर बढ़ने लगती हैं। ऐसा करके मनुष्य अपने ही चारों ओर उदासियों का एक घेरा बना लेता है। फिर उससे बाहर निकलने के लिए छटपटाता हुआ हार-पैर मारता रहता है। वह सफल हो जाए, ऐसा आवश्यक नहीं।

मनुष्य के जीवन में अनेकानेक परेशानियां एक के बाद एक करके आती रहती हैं। वह अपने गिरते स्वास्थ्य या किसी बीमारी से आक्रांत होने पर जिसका इलाज संभव नहीं, से व्यथित होता है। अपने घर-परिवार के सदस्यों के आपसी वैमनस्य या दुर्व्यवहार को देखकर दुखी होता है। कभी वह अवज्ञा करने वाले बच्चों के कुमार्गगामी हो जाने के कारण टूटने लगता है। अपने आर्थिक हालातों के कारण अनमना-सा रहता है।

अपने कार्यक्षेत्र में आने वाली कठिनाइयों को सहने में अक्षम हो जाता है। ऐसे हालात जब बन जाते हैं तब उस गम के कारण उसके होंठ सिल जाते हैं और वह अपनी परेशानी को किसी से कह नहीं पाता। उसके मन में यह डर घर कर जाता है कि लोग उसके विषय में जानकर क्या सोचेंगे? यदि वह अपनी परेशानी किसी को बताएगा तो लोग पीठ पीछे उसका उपहास करेंगे।

यदि मनुष्य अपनी सभी परेशानियों से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे उनके बारे में हमेशा सोचने के स्थान पर उनका डटकर सामना करते हुए उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए। मनुष्य को किसी इंसान के दुख का कारण नहीं बनना चाहिए। दूसरे को दुख के सागर में धकेलने का विचार भी मन में नहीं लाना चाहिए। इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उससे कभी-कभी भूल तो हो ही जाती है।

उसे उसका प्रायश्चित कर लेना चाहिए और दूसरे के दुख को कुछ हद तक कम करने के लिए क्षमायाचना अवश्य कर लेनी चाहिए। दूसरे के मन में इससे कितना गहरा घाव हो जाएगा, इसका अनुमान भी लगाया नहीं जा सकता। जैसे समुद्र में पत्थर फैंकने पर यह कोई भी नहीं जान सकता कि वह फैंका गया पत्थर वहाँ कितनी गहराई में उतर गया होगा, उसी प्रकार मनुष्य के मन की टीस का अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता। पीड़ित व्यक्ति के मन से निकलने वाली आह किसी को भी नष्ट कर सकती है।

दुखों और परेशानियों को दूर करने के लिए ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। मन को शांत रखने के लिए मनुष्य को सदा अपने सद् ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। सज्जनों की संगति में रहकर अपने कष्टों को भोगने के लिए उचित मार्ग की तलाश करनी चाहिए।


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