Friday, January 10, 2025
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एक बार फिर इस्राइल-फिलीस्तीन संघर्ष

Nazariya 22


ARVIND JAY TILAKपश्चिम एशिया (मध्य-पूर्व) एक बार फिर जंग के मैदान में है। गाजा पट्टी पर काबिज संगठन हमास ने जल-थल-नभ तीनों ओर से हमला बोलकर इस्राइल को दहला दिया है। उसने इस्राइल के दक्षिणी शहरों में तकरीबन सात हजार राकेट दागा है जिसमें इस्राइल के सैकड़ों लोगों की जान गई है। तकरीबन दो हजार से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। हमास ने इस्राइल के कुछ सैनिकों और नागरिकों को बंधक भी बना रखा है। उसने दावा किया है कि इस्राइल द्वारा अल-अक्सा मस्जिद को अपवित्र करने का बदला ले लिया है। इस्राइल-हमास संघर्ष ने दुनिया को दो खेमों में बांट दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सरीखे देश खुलकर इस्राइल के साथ हैं वहीं तुर्की, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब और लेबनान जैसे देश हमास का समर्थन कर रहे हैं। भारत ने इस्राइल पर हुए हमले की निंदा की है और कहा है कि इस कठिन समय में वह इस्राइल के साथ है। अगर यह जंग थमी नहीं तो दुनिया की शांति भंग हो सकती है। इसलिए और भी कि रूस और यूक्रेन पहले से ही युद्धरत हैं। दूसरी ओर अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बिगड़ते हालात ने अलग ही संकट खड़ा कर दिया है। उधर, चीन ताइवान को लगातार परेशान कर रहा है।
चूंकि इस्राइल ने हमास के हमले को चुनौती के तौर पर लिया है ऐसे में उसे कड़ा सबक सिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। मतलब साफ है कि यह जंग आसानी से थमने वाला नहीं है। अगर दोनों देशों के हालिया विवाद पर नजर दौड़ाएं तो हालात उस वक्त खराब हुए जब इस्राइली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी जेरुसलम के शेख जर्रा नामक स्थान से फिलीस्तीनियों के सात परिवारों को निकाले जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उन घरों को खाली करने का आदेश दिया जो 1948 में इस्राइल के गठन से पहले यहूदी रिलीजन एसोसिएशन के अधीन थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फलस्तीनियों को निकालकर यहूदियों को बसाने की तैयारी हो रही थी। इससे फलस्तीनी भड़क गए। नतीजतन इस्राइल के कई शहर और कस्बे दंगे की चपेट में आ गए। इन शहरों और कस्बों में अरब और यहूदियों के बीच मारकाट हुआ। लोद शहर जो कि अरब और यहूदियों की मिलीजुली आबादी वाला शहर है, वहां स्थिति सबसे अधिक खराब हुई। हिंसा की वजह से इमरजेंसी लगा दी गई।

इस्राइल और हमास के बीच मौजूदा जंग वर्ष 2014 की गर्मियों में 50 दिन तक चले युद्ध के बाद अब तक का यह सबसे बड़ी जंग है। अच्छी बात है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील करना शुरू कर दी है। लेकिन हालात सुधरेंगे इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि दोनों पक्ष एकदूसरे का इतिहास-भूगोल बदलने पर आमादा है। दोनों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय गोलबंदी की सच्चाई भी किसी से छिपी नहीं है। इस्राइल को अमेरिका का खुला समर्थन हासिल है वहीं फलस्तीन के हमास को सीरिया और ईरान का समर्थन हासिल है। ईरान इस्राइल के खिलाफ हमास की खुलकर मदद करता है। अमेरिका ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम और मौजूदा तनाव को लेकर पहले से ही भड़का हुआ है। ऐसे में वह नहीं चाहता है कि हमास फिलीस्तीन में मजबूत और इस्राइल कमजोर हो। गाजा पट्टी इस्राइल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तकरीबन 6-10 किमी चौड़ी और 45 किमी लंबा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इस्राइल का नियंत्रण है और दक्षिण में मिस्र है। यहां की आबादी तकरीबन 15 लाख के आसपास है।

पश्चिम एशिया के संकट को समझने के लिए इस्राइल और फिलीस्तीन के इतिहास में झांकना जरूरी है। पश्चिम एशिया में स्थित इस्राइल तीन ओर से अरब राज्यों से घिरा हुआ है। 29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलीस्तीन का विभाजन करके एक भाग ज्यूज यानी यहूदियों को तथा दूसरा भाग अरबों को दे दिया। 15 मई, 1948 को यहूदियों ने अपने हिस्से को इस्राइल नाम दिया। इस्राइल का क्षेत्रफल तकरीबन 21946 वर्ग किमी तथा आबादी तकरीबन 70 लाख के आसपास है। इस्राइलियों ने कठिन परिश्रम से अपने छोटे भू-भाग रेगिस्तान को हरा-भरा कर दिया। 1930 के दशक में जर्मनी में नाजी अत्याचारों के कारण भारी संख्या में यहूदी शरणार्थी यहां आकर बसे। इससे यहूदियों और अरबों में शत्रुता बढ़ गई। वह शत्रुता अब विकराल रुप धारण कर चुकी है।

गौरतलब है कि इस्राइल के अस्तित्व को अरब जगत स्वीकार नहीं करता है। उनका मानना है कि यहूदियों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर उन्हें बेदखल कर दिया। अरब जगत इस्राइल को एक खंजर की तरह मानता है जो अरब जगत को काटकर टुकड़ों में विभक्त कर दिया है। बता दें कि इस्राइल राज्य की स्थापना के साथ ही अरब-इस्राइल युद्ध शुरू हो गए और इस्राइल में रहने वाले तकरीबन 7 लाख अरब नागरिक भागकर पड़ोसी राज्यों में शरण लिए। तब 1948 में इस्राइल में बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा का निर्धारण हुआ जिसके तहत गाजा पट्टी में अरब जो सुन्नी मुस्लिम हैं, रहना सुनिश्चित हुआ। लेकिन 1948 से लेकर 1967 तक इस पर मिस्र का अधिकार रहा। 1967 की छ: दिन की लड़ाई में इस्राइल ने अरबों को निर्णायक रुप से पराजित कर इस पट्टी पर अपना अधिकार जमा लिया। किंतु 38 वर्ष बाद 2005 में इस्राइल ने फिलीस्तीनी स्वतंत्रता संस्था के साथ हुए समझौते के तहत गाजा पट्टी से बाहर हटने का निर्णय लिया और साथ ही उसने गाजा पट्टी और पश्चिमी तट पर स्थित यहूदी बस्तियों को हटाने का भी फैसला लिया। हमास का मकसद इस्राइल को समाप्त करना है।


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